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शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

निश्छल और पारदर्शी व्यक्तित्व का महत्त्व

निश्छल और पारदर्शी व्यक्तित्व का महत्त्व शिक्षा के प्रचार –प्रसार के साथ साथ इन्सान की तर्कशक्ति भी बढती जा रही है .जिसने इन्सान की उन्नति के अनेकों नए आयाम खोले हैं ,वहीँ पर बढती प्रतिस्पर्द्धा एवं बढ़ते भौतिकवाद ने उसे कपटी ,बेईमान ,स्वार्थी जैसे गुणों से अलंकृत भी किया है . आज सिद्धांतों पर आधारित जीवन जीने की चाह रखने वाला व्यक्ति भयाक्रांत रहता है . कहीं उसे इस अनैतिकता भरे समाज में हाशिये पर न धकेल दिया जाय . उसे लगता है आज एक व्यक्ति की उन्नति की राह उसकी शैक्षिक योग्यता से भी अधिक चतुर , चालक ,कपटी ,स्वार्थी जैसी योग्यता में निहित हो गयी है .अर्थात सिद्धांत वादी व्यक्तित्व योग्यता का मापदंड बनता जा रहा है . आज भी बुजुर्ग समाज में अनेक व्यक्ति ऐसे मौजूद हैं जिन्होंने अपना जीवन इमानदारी ,निष्कपट एवं पारदर्शिता के आधार पर व्यतीत किया है .शायद इसी कारण वे अपने जीवन में ऊंचाइयों को नहीं छू सके . शायद उनकी संतान उन्हें दुनिया में जीने के लिए योग्य भी करार दे ,क्योंकि उसके लिए सिद्धांतों के आधार पर जीना असंभव हो चुका है .या यह कहा जाय आज की बढती महत्वाकांक्षाओं के कारण सिद्धांतो पर डटे रहना बीते दिनों की बातें लगने लगी हैं . ऐसा नहीं है की सभी लोग सिद्धान्तहीन हो गए हैं ,या पहले सभी लोग सिद्धांतवादी होते थे .अंतर यह है की पहले सिद्धांतवादी अधिकतर लोग होते थे और सिद्धांत हीन कम लोग होते थे परन्तु आज सिद्धान्तहीन लोगों की बहुतायत हो गयी है और सिद्धांतवादी लोग उँगलियों पर गिने जा सकते हैं . यह एक कडुवा सच है की इन्सान का और मानवता का विकास इमानदारी ,पारदर्शिता ,सच्चाई के बिना संभव नहीं है .हमारा समाज कितना भी अनैतिक हो जाय आदर्श और सिद्धांतों का महत्त्व काम नहीं हो सकता . सिद्धांत हमेशा ही प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे .बिना इमानदारी और सच्चाई के आज भी आम जीवन संभव नहीं है .क्योंकि प्रत्येक सिद्धान्तहीन व्यक्ति को भी कहीं न कहीं इमानदारी का साथ निभाना पड़ता है .इस सन्दर्भ को कुछ उदाहरणों से स्पष्ट किया जा सकता है . जैसे रिश्वत लेना एक सामाजिक अपराध है ,और गैरकानूनी भी है परन्तु हर रिश्वत खोर व्यक्ति या भ्रष्टाचारी जिससे रिश्वत का लाभ प्राप्त करता है उसके कार्य को इमानदारी से पूर्ण करता है यदि किसी कारण वह कार्य पूर्ण नहीं कर पता तो वह पूरी इमानदारी से रिश्वत की रकम को लौटा देता है .अर्थात रिश्वत प्रदाता के साथ बफदारी और ईमानदारी निभाता है .इसी प्रकार से कानून की निगाह में अवैध कार्य करने वाले व्यापारी अपने लेन देन में पूरी इमानदारी रखते हैं .एक डकैत जो पेशे से खूंखार और हिंसक होता है वह भी अपने कुछ सिद्धांतों का पालन करता है ,हर परिस्थिति में निभाता है .व्यापार ,या उद्योग चलाने वाला कितना भी दुष्ट या अपराधी क्यों न हो अपने ग्राहकों के लिए पूर्णतयः ईमानदार ,बफादार और पारदर्शी रहता है या रहने को मजबूर होता है .अन्यथा उसका कारोबार चल पाना संभव नहीं होता .उसे आम आदमी के समक्ष अपनी छवि को उज्जवल ही रखना होता है .क्योंकि गुंडागर्दी , बेइमानी और दुष्टता के बाल पर कोई भी कारोबार संभव नहीं है .नेता लोग कितने भी भ्रष्ट क्यों न हो जाएँ ,जनता के समक्ष उन्हें बेहद बफादार और ईमानदार होने का ढोंग ही करना पड़ता है .जनता से वोट प्राप्त करने के लिए ईमानदार दिखना आवश्यक है .बिना सड़क के नियमों ,कानूनों का इमानदारी से पालन किया , अपने को सड़क पर सुरक्षित रहा पाना संभव नहीं है . उपरोक्त सभी बातों से स्पष्ट है की सिद्धांतों के बिना कुछ भी संभव नहीं है .छल ,कपट ,बेइमानी क्षणिक लाभ तो दे सकते है परन्तु दीर्घावधि तक इसी व्यव्हार से जीवन चला पाना आसान नहीं होता .जो व्यापरी इमानदारी और उच्च आदर्शों के सहारे अपना व्यापार चलते हैं वे ही व्यापार में सर्वाधिक ऊंचाइयों पर पहुँच पाते हैं .जो नेता देश भक्ति और ईमानदारी ,पारदर्शिता को अपनाते हुए देश का नेत्रित्व करते हैं वे ही देश को उत्थान की ओर अग्रसर कर सकते हैं . वर्तमान समय में किसी भी हिंसक ,बेईमान ,धोखेबाज को अधिक साधन संपन्न देखा जा सकता है परन्तु वे हमेशा कानूनी भय ,या सामाजिक अपराध बोध से त्रस्त रहते हैं .मानसिक तनाव हमेश बना रहता है .जबकि निष्कपट ,इम्मंदर ,सच्चा व्यक्ति आत्म संतोष की पूँजी के साथ सुखी रहता है .यह भी कडुवा सत्य है वर्तमान परिस्थिति में किसी व्यक्ति को अपने सिद्धांतों पर अडिग रहा कर जीवन चलाना आसान नहीं होता ,उसका जीवन एक तपस्या बन जाता है .परन्तु जो आत्म संतोष उसे प्राप्त होता है वह सबसे बड़ा धन है . अतः निश्छल , ईमानदारी ,पारदर्शिता का महत्त्व कभी ख़त्म नहीं होने वाला.

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

विश्व में आर्थिक असमानता क्यों ?


पृथ्वी पर समय के साथ सिर्फ मानव ही ऐसा जीव है जो अपनी बुद्धि के बल पर विकास कर सका, और दुनिया के हर क्षेत्र पर अपना अधिपत्य जमा लिया. विकास यात्रा में वह लौह युग से चल कर जेट युग और फिर कंप्यूटर युग में प्रवेश कर गया.अफ़सोस यह है की आज भी अनेक देशों के करोडो लोग ऐसे हैं जिन्हें जीवन की सभी आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए साधन उपलब्ध नहीं हैं. कुछ लोगों को तो दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो पाती, जबकि एक वर्ग ऐसा भी है जो आवश्यकताओं से अधिक साधनों से संपन्न है.इसी प्रकार विश्व में अनेक देश कहीं अधिक संपन्न है जो अपने नागरिकों की सभी आवश्यकताओं को पूरा कर पाने में सक्षम हैं.और कुछ देश बहुत गरीब हैं.जहाँ हर वर्ष भूख से अनेकों जानें चली जाती हैं.
उन देशों के प्रत्येक नागरिकों का जीवन स्तर एवं देश का बुनियादी ढांचा अन्य गरीब या अविकसित देशों के मुकाबले जमीन असमान के अंतर लिए हुए है.ये देश विकसित दशों की श्रेणी में आते हैं और अन्य देशों को गरीब मुल्क कहा जाता है.
आखिर विकसित देशों और अविकसित देशों में ऐसा क्या है जो इतना बड़ा अंत दिखाई देता है, क्यों कुछ देश पहले विकसित हो गए और अन्य देश अपने नागरिकों के लिय भोजन की व्यवस्था भी नहीं कर पाए . इतनी बड़ी खाई (असमानता) का कारण क्या है. क्या गरीब मुल्कों के पास प्राकृतिक संसाधनों का अभाव है ?क्या गरीब मुल्कों के लोग महनत नहीं करना चाहते?क्या गरीब मुल्क में बुद्धिमान लोग पैदा नहीं होते. आखिर क्यों विकसित देशों के मुकाबले में विकसित नहीं हो पाए.क्या वे अनुसन्धान कर पाने में अक्षम हैं? क्या उन देशों की बढती आबादी देश को विकसित होने में रूकावट बन रही है? क्या उन देशों की जलवायु या प्राकृतिक वातावरण उन्हें पनपने नहीं देता?
उपरोक्त सभी प्रश्नों का उत्तर सिर्फ है. मानवीय विकास में असमानता क्यों? कारण है जो विकसित देश हैं वे या तो धनवानों द्वारा बसाये गए वे मुल्क हैं, जो स्थानीय जाति को नष्ट कर स्वयं काबिज हो गए, दूसरे वे देश हैं जिन्होंने सैंकड़ों वर्षों तक विश्व के अनेक देशो को गुलाम बनाकर रखा और उनकी धन दौलत से अपने देशों को मालामाल कर दिया अर्थात गुलाम देशों के वाशिंदों द्वारा की गयी कमाई ने इन देशों को आमिर बना दिया.वर्तमान सन्दर्भ में जब विश्व में लगभग सभी देश स्वतन्त्र हो गए हैं तो भी विकसित देश अनेक अड़ंगे लगा कर उनको विकसित होने से रोकते हैं या वे अपनी धन दौलत का रोब जमा कर कुछ विकास शील देशो को उभरने से रोकते रहते है, दो विकास शील देशों को आपस में लडवा कर अपना उल्लू सीशा करते हैं..अब कई देश, अपने दम पर विकास की ओर धीरे धीरे लौटने लगे हैं और अब ऐसा लगता है की विश्व में समानता परचम शीघ्र ही लहराएगा.परन्तु विश्व में असामनता का मुख्य कारण कुछ देशों द्वारा अपनाये जा रहे अमानवीय कार्य हैं.जो मानवता के अभिशाप बने हुए हैं.विकसित देशों को मानवता के दायरे में सोच कर पूरी मानव सभ्यता के कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए.

शनिवार, 15 सितंबर 2012

संस्कार और नयी पीढ़ी

         अक्सर हम संस्कार की बातें करते रहते हैं ,और नयी पीढ़ी को संस्कारहीन बताते हुए कोसते रहते हैं |परन्तु क्या वास्तव में हमने कभी संस्कार को सही अर्थों में समझने का प्रयास किया है ?शायद नहीं | संस्कार शब्द छोटा होते भी अपने में बहुत कुछ समाये हुए है |इस का अर्थ काफी गंभीर और विस्तृत है |इसी शब्द का विश्लेषण करने का प्रयास यहाँ किया गया है | संस्कार का मुख्य अर्थ है ,हम क्या खाते हैं ,क्या पहनते हैं ,क्या सोचते हैं ,क्या देखते हैं ,हम क्या और कैसे व्यव्हार करते हैं |परन्तु हम अक्सर धार्मिक संस्कारों को ही संस्कार मानते हैं .जबकि वास्तविकता यह है की प्राचीन समय में जब शिक्षा का विकास नहीं हुआ था ,प्रचार और प्रसार का कोई अन्य माध्यम नहीं था ,जनता तक अपने सन्देश को पहुँचाने का एक मात्र माध्यम धर्म ही था |अतः धर्म के माध्यम से ही जनता को सभी संदेशों का आदान प्रदान होता था , जिससे समाज को व्यवस्थित रखने का प्रयास किया जाता था |आज इसी कारण प्रत्येक धार्मिक कर्म कांड को ही संस्कार का नाम दिया जाता है और सिर्फ उन्हें ही संस्कार के नाम से जानते हैं .यही कारण है ,जब हमारी नयी पीढ़ी विकसित देशों की नक़ल कर बदलने का प्रयास करती है तो हम पाश्चात्य देशों का अपनी संस्कृति पर हमला मानते हैं | परिवर्तन आना मानव जीवन की स्वाभाविक क्रिया है और उन्नति एवं विकास का द्युओतक भी |यदि संस्कृति के नाम पर हम परम्पराओं को ही गले लगाये बैठे रहेंगे तो विश्व में सर्वाधिक पिछड़े देश के रूप में जाने जायेंगे.
              क्या संस्कृति के नाम पर विकास को अवरुद्ध कर देना उचित होगा ? क्या संकृति को अपनाने का मकसद अपने समाज को जड़ बना देना समाज के लिए लाभकारी होगा ? यदि हम परम्पराओं का हवाला देते हुए नयी पीढ़ी के प्रत्येक क्रियाकलाप पर अंकुश लगते रहेंगे तो नयी पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से दूरी बना लेगी |उसका पुरानी पीढ़ी में विश्वास कम हो जायेगा ,वह उसको अपना विरोधी समझने लगेगी .अतः यदि नयी पीढ़ी को सही राह दिखानी है ,उन्हें उन्नति के रास्ते पर प्रशस्त करना है, तो उन्हें विश्वास में लेना भी आवश्यक है .अतः नए परिवर्तनों को सिरे से ख़ारिज करने के स्थान पर गुण दोष के आधार पर अपना समर्थन देना अधिक सार्थक होगा |
          अतः परिवर्तन के विरुद्ध अपने फरमान सुनाने से अधिक अच्छा है उन्हें नैतिक मूल्यों के आधार पर नए बदलावों को अपनाने के लिए प्रेरित किया जाये.( इस कटु सत्य को स्वीकार करना होगा बदलाव पृकृति का नियम है परिवर्तन तो आते ही रहेंगे और किसी के रोकना से रुकने वाले भी नहीं हैं)आपके इस व्यव्हार से नयी पीढ़ी का आप पर विश्वास बनेगा ,उनकी उन्नति में बाधा भी नहीं आयेगी .दुनिया में प्रतिस्पर्द्धा में अपने को स्थापित कर पाएंगे .परिवार में आपका सम्मान बना रहेगा .साथ ही नयी पीढ़ी को भटकने से भी बचा पाएंगे
     अंत में भूतपूर्व भारतीय क्रिकेट कोच ग्रेग चैपल के वक्तव्य पर भी ध्यान देना आवश्यक है ,उनके शब्दों में “भारत में इस तरह की संस्कृति है की वहां कोई अपना सर उठा कर बात नहीं कर सकता ,यदि कोई ऐसा करे तो उसे तुरंत नीचा दिखा दिया जाता है ,इसलिए वे अपना सर नीचा करके रखना ही सीखते हैं ,और नेतृत्व क्षमता विकसित नहीं कर पाते ,जिम्मेदारी लेने की आदत नहीं बना पाते ” सोचने की बात यह है की आखिर विदेशी ने हमारे लिए ऐसी टिप्पड़ी क्यों की और हम नयी पीढ़ी को कहाँ ले जाना चाहते हैं ?क्या प्रत्येक बात पर दखल देना .या अपने सिद्धांतों पर चलने के लिए मजबूर करना उचित होगा? क्या नयी पीढ़ी के हित में होगा ?क्या यह उचित होगा की परंपरागत संस्कारों की रक्षा में, हमारी संतान एवं हमारा देश विश्व व्यापी प्रतिस्पर्द्धा में सबसे पीछे खड़ा रहे? 

रविवार, 9 सितंबर 2012

मीडिया अपनी भूमिका जिम्मेदारी से निभा रहा है ?

       
मेरे नवीनतम लेख अब वेबसाइट WWW.JARASOCHIYE.COM पर भी उपलब्ध हैं,साईट पर आपका स्वागत है.
 हमारे देश के संविधान में मीडिया को लोकतंत्र के चार मुख्य स्तम्भ में से एक माना गया है .अतः मीडिया की समाज के प्रति देश के प्रति बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी होती है .यह ऐसा मा ध्यम है जो आम जनता की आवाज को बुलंद करता है .जो जनता की आवाज को शासन स्तर तक पहुँचाने की क्षमता रखता है .यह माध्यम जनता के हर दुःख दर्द का साथी बन सकता है .लोकतंत्र के शेष सभी स्तंभों अर्थात विधायिका ,न्यायपालिका ,व् कार्यपालिका के सभी क्रियाकलापों पर नजर रख कर उन्हें भटकने से रोक सकता है ,उन्हें सही राह पकड़ने को प्रेरित कर सकता है .साथ ही उनके असंगत कारनामो को जनता के समक्ष उजागर कर जनता को सावधान कर सकता है . हमारे देश में मीडिया को विचार अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता संविधान प्रदत्त है .ताकि वह अपने कार्यों को बिना हिचके .बे रोक टोक कर सके .परन्तु क्या मीडिया उसे मिली आजादी को पूरी जिम्मेदारी से जनहित के लिए निभा पा रही है ?क्या वह अपने कार्य कलापों में पूर्णतया इमानदार है ?क्या देश में व्याप्त बेपनाह भ्रष्टाचार के लिए वह भी कहीं न कहीं जिम्मेदार नहीं है ?क्या मीडिया स्वयं भी भ्रष्ट नहीं हो गया है ?क्या मीडिया जनता के दुःख दर्द पर कम , अपनी कमाई ,अपनी टी .आर .पी . के लिए अधिक चिंतित नहीं रहता ?इन्ही सब विषयों पर विचार विमर्श इस लेख के माध्यम से करने का प्रयास किया गया है .यहाँ मुख्य बात उल्लेखनीय है आज भी सारा मीडिया गैर जिम्मेदार नहीं है ,स्वच्छ ,इमानदार पत्रकार आज भी मौजूद हैं जो देश को सही दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं ,जनता की भलाई के लिए अपनी जान भी जोखिम में डाल देते हैं ,और कुर्बान भी हो जाते हैं ,ऐसे जांबाज पत्रकारों को मैं सेल्यूट करता हूँ .और उम्मीद करता हूँ जो मीडिया कर्मी अपने कर्तव्यों से भटक गए हैं अपनी जिम्मेदारियों को समझने का प्रयास करेंगे .
 मीडिया के लिया विज्ञापन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ;
 यह एक कटु सत्य है , आज के प्रतिस्पर्द्धा के युग में मीडिया प्रिंट का हो या इलेक्ट्रोनिक उसको अपने समस्त खर्चों को पूरा करने के लिए विज्ञपनों पर निर्भर रहना पड़ता है .परन्तु क्या कमाई के लिए दर्शकों एवं पाठकों के हितों तथा रुचियों को नजरंदाज कर देना उचित है ? .प्रत्येक चैनल , चाहे वह पेड़ हो या अनपेड हो ,कार्यक्रम ,या ख़बरें कम विज्ञापन अधिक समय तक प्रसारित किये जाते हैं .कभी कभी तो दर्शक यह भी भूल जाता है की वह क्या कार्यक्रम देख रहा था ,अर्थात किस विषय पर आधारित समाचार देख रहा था .कभी कभी तो कार्यक्रम पांच मिनट का होता है तो विज्ञापन भी पांच मिनट या उससे भी अधिक होता है .कार्यक्रम के कुल समय के 25%से अधिक विज्ञापन दिखाना दर्शकों के साथ अन्याय है ,ठीक इसी प्रकार प्रिंट मीडिया में देखने को मिलता है जब समाचार पत्र में ख़बरें कम विज्ञापन अधिक होते हैं .कभी कभी तो पूरा प्रष्ट ही विज्ञापन की भेंट चढ़ जाता है , कभी कभी तो विज्ञापन खबर के रूप में ही प्रकाशित किया जाता है .पाठक विज्ञापन को खबर समझ कर पढता है जो पाठकों के साथ धोखा है
  पेड न्यूज़ का चलन ;
आज अनेक चैनलों एवं समाचार पत्र ,पत्रिकाओं में छापने वाली ख़बरों की कीमत वसूल की जाती है .इस प्रकार खबर का वास्तविकता से नाता टूट जाता है .कुबेर पति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए धन बल का प्रयोग कर आम जनता को धोखा देते हैं और मीडिया अपनी जिम्मेदारी से हटते हुए कुबेर पतियों के कठपुतली बन जाते हैं .दूसरे शब्दों में मीडिया वह खबर दिखता है जो धनवान दिखाना चाहता है ,इस प्रकार से एक साधारण व्यक्ति के साथ अन्याय होता है ,उसके हित में आवश्यक खबर के लिए मीडिया में स्थान नहीं मिल पाता.आम जनता की आवाज का एक मात्र मध्यम मीडिया ही होता है परन्तु उसकी आवाज दब कर रह जाती है
  नकारात्मक ख़बरें ही सुर्खियाँ बनती हैं
 यह हमारे देश वासियों का दुर्भाग्य ही है ,जब हम सवेरे उठ कर अख़बार के समाचारों पर नजर दौड़ते हैं तो पढने को मिलता है की बीते दिन में दो , चार या अधिक हत्या हो गयीं ,कुछ स्थानों पर लूटमार हुई या डकैती पड़ी ,चेन खिंची .चोरी हुईं ,धोखा धडी हुई,अनेक लोग सड़क दुर्घटनों के शिकार हो गए,तो कुछ लोग आतंकवादियों के हमलों के शिकार हो गए ,कुछ अन्य प्रकार के हिंसा के अपराध हुए , और नजर आते हैं नित नए सरकारी विभागों में खुलते घोटाले .मुख्य प्रष्ट पर इस प्रकार के समाचारों को पढ़कर या चैनल की हेड लाइन के रूप में देख कर पूरे दिन के लिए मन उदास हो जाता है, मूड ख़राब हो जाता है ,पाठक अवसाद ग्रस्त हो जाता है उसका कार्य करने का उत्साह ठंडा पड़ जाता है .क्या इस प्रकार के नकारत्मक समाचारों को अतिरंजित कर , मुख्य प्रष्ट या मुख्य समाचार बनाकर जनता के समक्ष प्रस्तुत कर,मीडिया जनता को हतोत्साहित करने का कार्य नहीं कर रहा? जो देश की उत्पादकता को प्रभावित भी करता है ? क्या पूरे देश में सब कुछ गलत ही हो रहा है ,क्या अपराध ही मुख्य ख़बरों का आधार हैं ,क्या देश में समाज सेवियों,स्वयंसेवी संस्थाओं और उनके द्वारा किये जा रहे कार्यों का अकाल पड़ गया है .परन्तु समाज सेवी व्यक्तियों एवं संस्थाओं के सुखद कार्यों को जनता तक पहुँचाने का समय मीडिया के पास नहीं है .शायद उसकी सोच बन गयी है की गुंडा गर्दी ,हिंसा ,बलात्कार की ख़बरें उनकी टी .आर .पी . बढाती हैं . दर्शकों और पाठकों को आकर्षित करती हैं .यही कारण है किसी भी कार्य की आलोचना करना , नकारात्मक ख़बरों को परोसना मीडिया का एक मात्र उद्देश्य बन गया है . यदि मीडिया अच्छे कार्य करने वालों की ख़बरों को मुख्य रूप से प्रकाशित करे तो आम जनता में सकारात्मक कार्य करने को प्रोत्साहित किया जा सकता है .एक सकारात्मक सोच का वातावरण देश और जनता के लिए सुखद और स्वास्थ्यप्रद हो सकता है .और अपराधियों के हौंसले पस्त किये जा सकते हैं ,देश को अराजकता के माहौल से मुक्ति मिल सकती है .इस प्रकार से देश के विकास में मीडिया अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है जो उसका परम कर्तव्य भी है.
  भड़काऊ ख़बरों की अधिकता :
 हमारे देश का मीडिया अपनी दर्शक संख्या बढ़ने के लिए ख़बरों को मिर्च मसाला लगा कर प्रस्तुत करता है ,ताकि देखने या पढने वाले को उत्सुकता पैदा हो और मीडिया से अधिक से अधिक पाठक वर्ग जुड़े .इसीलिए बलात्कार,धोखाधडी ,लूटमार की घटनाओं को विशेष आकर्षण के साथ प्रस्तुत किया जाता है.यदि पीड़ित कोई दलित वर्ग से है तो जनता को उकसाने के लिए विशेष तौर पर उसकी जाति का उल्लेख किया जाता है ,शायद दलित वर्ग होने से पीड़ा कुछ अधिक बढ़ जाती है .मकसद होता है खबर को प्रभावशाली कैसे बनाया जाय .यदि किन्ही दो पक्षों में कोई झगड़ा हो जाता है ,तो उनकी जाति या धर्म का विशेष तौर पर उल्लेख होता है ,अब यदि उससे शहर का या देश का माहौल ख़राब होता है तो मीडिया को कोई फर्क नहीं पड़ता . क्या मीडिया को सिर्फ पाठकों की संख्या ,समाज में अराजकता की कीमत पर ,बढ़ाना उचित है ?क्या समाज में शांति व्यवस्था बनाये रखने की जिम्मेदारी सिर्फ प्रशासन की ही होती है ,मीडिया को सिर्फ आलोचना करने का ही हक़ है ?
  समाज को विकृत करने वाले धारावाहिक
जबसे टी वी ने हमारे समाज में अपनी पकड़ बनायीं है,लगभग सभी चैनल दिन -रात (चौबीस घंटे ) प्रसारण करने लगे हैं .सभी में आपसी होड़ लगी है दर्शकों को अपनी ओर खींचने की.अतः दर्शकों को बांधे रखने के लिए धारवाहिकों का चलन बढा और गृहणियों ,बुजुर्गों , एवं घर पर ही रहने वाले लोगों के लिए धारवाहिक उनके जीवन के अंग बन गए .यदि मीडिया अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए समाज को स्वस्थ्य मनोरंजन प्रस्तुत करता तो समाज में व्याप्त विकृतियों ,कुरीतियों ,ढकोसलों से मुक्त किया जा सकता है .परन्तु चंद चैनलों को छोड़ कर अधिकतर चैनल का भड़काऊ ,षड्यंत्रकारी ,उत्तेजक एवं इर्ष्या पैदा करने वाले धारवाहिक प्रसारित करना उनका शगल बन गया है .इस प्रकार के धारावाहिकों में , नायक -नायिका का कोई चरित्र नहीं होता , कोई नैतिक मूल्य नहीं होता ,ये धारावाहिक, हिंसा , बलात्कार , अवैध सम्बन्ध ,धोखेबाजी से भरपूर होते हैं .क्या ज्ञान वर्द्धक ,स्वस्थ्य मनोरंजन देने वाले या हास्यप्रद धारवाहिक को देखने के लिए दर्शक नहीं मिलेंगे?फिर क्यों समाज को विकृत करने का प्रयास किया जा रहा है ?
  आडम्बर,ढोंग को बढ़ावा देते हैं ?;
 इक्कीसवी सदी के वैज्ञानिक युग में अनेक चैनल दर्शकों को सदियों से चली आ रही रूढ़ियों , ढोंग एवं आडम्बर की विचारधारा से युक्त सामग्री प्रस्तुत करते हैं .कुछ चैनल और समाचार पत्र नित्य रूप से ज्योतिष आधारित भविष्य वाणी जनता के सामने रखते हैं ,तो कहीं पर टेरो कार्ड की चर्चा होती है ,कहीं पर पंडित जी स्वयं आकर अपने अनर्गल उपायों से दर्शकों के भाग्य बदलने का दावा करते हैं ,किसी चैनल पर कोई बाबा टी .वी . दर्शकों पर कृपा बरसाते हुए देखे जाते हैं,चैनल संचालकों को तो सिर्फ आमदनी से मतलब है.जनता में भाग्यवाद को बढ़ावा मिले या ,निश्कर्मन्यता बढे इस बात से चैनल संचालकों का क्या लेना देना ? सारी गलती जनता की है जो ऐसे कार्यक्रम देखती है .क्या मीडिया द्वारा दिखाई जाने वाली दकियानूसी बातों से समाज का भला हो सकता है ? प्रिंट मीडिया भी अपने व्यव्हार में पाक साफ नहीं है ,भविष्यफल दिखाना उनकी भी मजबूरी बनी हुई है .उनके विज्ञापन धोकेबजों के लिए जनता को लूटने का माध्यम बनते हैं.अनेक नीम हाकिम ,अनियमित फायनेंसर ,सर्वे कम्पनिया ,या घटिया उत्पाद बेचने वाले , समाचार पत्रों के विज्ञापनों द्वारा जनता तक पहुँचते हैं और जनता को लूटते हैं .क्या समाचार पत्रों को अपनी कठोर नियमावली बना कर विज्ञापन स्वीकार करने की जिम्मेदारी नहीं निभानी चाहिए ?.ताकि जनता भ्रमित न हो और ठगने से बच सके ?
  सूचनाओं का प्रसारण सूचना से सम्बंधित व्यक्ति के प्रोफाइल पर आधारित ;
 अक्सर देखने को मिलता है कोई भी घटना या दुर्घटना किसी बड़े नेता .व्यापारी उद्योगपति ,कुबेर पति के साथ घटित होती है तो मीडिया की खबर बनती है .उसे विशेष स्थान मिलता है , प्रत्येक समाचार पत्र ,प्रत्येक चैनल के लिए मुख्य खबर होती है .परन्तु जब कोई आम आदमी या गरीब आदमी पीड़ित होता है तो कोई उसकी आवाज को उठाने वाला नहीं होता .यदि किसी कारण वह खबर बनती भी है तो उसको नाम मात्र की कवरेज या स्थान प्राप्त होता है.जिससे स्पष्ट है की मीडिया में भी धन बल ,और बहु बल का बोलबाला बना रहता है .पूरा मीडिया सत्तासीन नेताओं और धनवानों का भौंपू बन कर रह गया है.क्या साधारण व्यक्ति के दुःख दर्द के प्रति मीडिया की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती ?
  मीडिया को आलोचना सहन नहीं ;
 क्योंकि मीडिया स्वयं प्रचार प्रसार का माध्यम है ,अतः कोई भी मीडिया स्वयं मीडिया के विरुद्ध छापने को तैयार नहीं होता ,उसके विरुद्ध प्रसारण करने को स्वीकृति नहीं देता .और मीडिया पर कटाक्ष करने वाले लेखों ,या टिप्पड़ियों को स्थान नहीं मिलता . यही कारण है मीडिया की कमी से ,उसके अन्दर व्याप्त अनियमितताओं से ,जनता अनभिग्य बनी रहती है.और ठीक भी है कोई स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारेगा?
  विज्ञापनों के लालच में अवैध पंजीकरण ;
 आज प्रत्येक शहर ,प्रत्येक देहाती क्षेत्र में सैंकड़ों अवैध समाचार पत्रों ,पत्रिकाओं ने पंजीकरण कराया होता है .अवैध से तात्पर्य है जिनका वास्विकता में कोई अस्तित्व नहीं होता सिर्फ सरकारी खातों में पंजीकृत होते है ताकि उन्हें सरकारी कागज का कोटा मिलता रहे संपादक के रूप में विशेष दर्जा मिलता रहे और सरकारी विभाग में अपना हस्तक्षेप बना रहे, उन्हें ब्लेकमेल करने का अवसर प्राप्त होता रहे.अर्थात अवैध पंजीकरण से अवैध कमाई,जो स्वयं जिम्मेदार मीडिया के लिए अभिशाप है.क्या मीडिया के संगठनों को ऐसे अवैध पंजीकरणों के विरुद्ध प्रयास नहीं करने चाहिए ?
  पीत पत्रकारिता ;
कभी पत्रकार अपने स्वार्थ में ,कभी प्रबंधकों के दबाब में आकर पीत पत्रकारिता करते देखे जा सकते हैं ,सरकरी कर्मचारियों की भांति भ्रष्ट उद्योगपतियों ,भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों से धन वसूल कर उनके असंगत , अव्यवहारिक , भ्रष्ट आचरणों को अपने मीडिया द्वारा सहयोग करते हैं .इस प्रकार के आचरण जहाँ मीडिया की गरिमा को घटाते हैं दूसरी ओर जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी से विमुख होते हैं ,आम आदमी से अन्याय करते हैं .क्या भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए जिम्मेदार मीडिया को यह आचरण शोभा देता है ?
  समाधान ;
 मीडिया को सुधारने के लिए एक मात्र उपाय सरकारी नियंत्रण हो सकता है,जो मीडिया की आजादी पर कुठाराघात होगा ,वैसे भी देश की लगभग भ्रष्ट हो चुकी सरकारी मशीनरी द्वारा नियंत्रण,का अर्थ है. भ्रष्टाचार को खुली छूट देना .यह कदम न तो जनता के हित में होगा और ना ही देश के हित में और न स्वयं मीडिया की विश्वसनीयता के लिए हितकारी होगा .आज सही अर्थों में देश में लोकतंत्र के अस्तित्व का आधार मीडिया ही है.अतः मीडिया को स्वयं आत्म शुद्धि करने के उपाय करने होंगे . उसे स्वयं संगठित होकर मजबूत संगठनों का निर्माण करना होगा और अपनी कार्य शैली के लिए नियमावली बनाना होगी,स्व निर्मित ठोस कानून बनाने होंगे . ताकि उन नियमों का पालन करते हुए अपने क्षेत्र में व्याप्त कचरे को साफ किया जा सके . मीडिया को स्वयं ही विश्वसनीय एवं देश और जनता के लिए जिम्मेदार बनना होगा .सरकारी अंकुश लगाना देश का दुर्भाग्य होगा,लोकतंत्र का अपमान होगा
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रविवार, 2 सितंबर 2012

सोशल मिडिया पर अंकुश कितना उचित?


  सोशल मिडिया पर अंकुश कितना उचित?
    

        एक समय था जब लोगों तक अपनी बात पहुँचाने का माध्यम समाचार पत्र या पत्रिका हुआ करते थे. जब सरकार द्वारा जनता तक अपना सन्देश पहुँचाने के लिए डंका या नगाडा बजा कर गली गली अपने आदेशों, संदेशों  या चेतावनी को प्रचारित किया जाता था.उसके पश्चात रेडियो ने यह स्थान ले लिया जो जनता को नियंत्रित करने अर्थात सरकार को शासन-व्यवस्था चलाने में सहायक बने. जब टी.वी.और फिल्मों का दौर आया तो प्रचार प्रसार का माध्यम और भी प्रभावकारी हो गया. परन्तु कंप्यूटर की खोज ने तो विचार क्रांति पैदा कर दी और पूरी दुनिया एक मंच पर एकत्र हो गयी. इलेक्ट्रोनिक मीडिया और सोशल मीडिया ने जनता को सरकार की हर गतिविधी की जानकारी उपलब्ध करनी शुरू कर दी. अन्ना और बाबा रामदेव के आन्दोलन को प्रचारित करने और जनता को आन्दोलन से जोड़ने में इलेक्ट्रोनिक और सोशल मिडिया की मुख्य भूमिका रही. पिछले वर्ष अनेक अफ़्रीकी और खड़ी के देशों की क्रांति का श्रेय भी इन्ही नवसृजित माध्यमों को ही जाता है. इसी प्रकार असम में हुई जातीय हिंसा की आग को मुंबई हैदराबाद या बंगलौर तक पहुँचाने में सोशल मिडिया का ही कारनामा दिखा. हमारे देश की सरकार तो पहले से ही जो जनता में भ्रष्टाचार के लिए फजीहत की शिकार होने के कारण सोशल मिडिया को मानती है.उसे अपना दुश्मन मानकर इस पर नियंत्रण करने के मूड में थी. वर्तमान घटना ने उसे एक बहाना दे दिया,अपने मिडिया पर नियंत्रण के प्रस्ताव को उचित मानने का , सोशल मिडिया के नकेल कसने का , अपने विरोधियों को चित्त करने का. उसकी पहले से ही मंशा रही है सभी प्रचार माध्यम सत्तारूढ़ पार्टी और सरकार के पक्ष में ही अपनी बात जनता के समक्ष रखे अर्थात सभी माध्यम स्वतन्त्र अभिव्यक्ति का जरिया न होकर सरकरी भोंपू बन जाएँ और सत्तारूढ़ पार्टी के नेता अपने हितों की साधने के लिए घोटाले करते रहें और उसकी सत्ता पर पकड़  भी बनी रहे. इस प्रकार  लोकतंत्र के सबसे सशक्त स्तंभ को अपनी मुट्ठी में कर ले,और जनता को लूटने के अवसर उसे मिलते रहें,चुनावों में उसकी जीत सुनिश्चित होती रहे.
  कोई भी नयी वैज्ञानिक खोज होती है तो उसके लाभ आम आदमी को मिलते है तो यही खोजे और तकनीकें अपने साथ कुछ नुकसान भी लेकर आती हैं.परन्तु उसके नुकसान से घबरा कर उन खोजों से मानवता को वंचित नहीं कर दिया जाता. विकास के रास्ते बंद नहीं कर दिए जाते बल्कि उसमे व्याप्त खामियों को दूर करने के प्रयास किये जाते हैं,समाधान खोजे जाते हैं, जिससे उस नयी खोज से मानवता के नुकसान को रोका जा सके.और उसके लाभ मानव जाति  को उपलब्ध हो सकें.
   बिजली का अन्वेषण होने के पश्चात अनेक लोग उसके झटके के शिकार हुए,अनेकों को जान से हाथ धोना पड़ा, तो अनेक लोग घायल हुए.परन्तु क्या बिजली का उपयोग बंद कर दिया गया? बल्कि जनता को उसको उपयोग करते समय सावधानियां बरतने के लिए शिक्षित किया गया.और आज विशाल के कारखानों का अस्तित्व बिजली पर ही निर्भर है.
  सड़क पर अनेक कार, बस, ट्रक और अन्य वाहन आये और सड़क दुर्घटनाओ ने नित लोगों के जान से हाथ धोना पड़ा,और आज भी अनेकों सड़क हादसे होते रहते हैं. तो क्या सडक बंद कर दी गयीं.यदि आवागमन को बाधित कर दिया जाये तो मानव विकास एक दम रुक जायेगा.अतः आवागमन को बाधित न कर,सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के उपाय खोजे गए,और आज भी शोध  जारी है.
  इसी प्रकार से वायुयान हो या अंतरिक्ष यान अन्य अनेक नए अविष्कार सभी अनेक प्रकार की सुविधाओं के साथ साथ समस्याओं और खतरों  को भी लेकर आये, परन्तु सब समस्याओं के समाधान भी खोजे गए और मानव हित में उनका उपयोग किया गया.और आज मानव विकास का माध्यम बने.
   ठीक इसी प्रकार से लोकतंत्र में जनता की अभिव्यक्ति की आजादी को किसी  भी प्रकार से रोक देना उचित नहीं माना जा सकता.तो क्या सोशल मिडिया से होने वाले नुकसान को आंख मूँद कर बैठे देखा जा सकता है? इस विषय पर कुछ प्रश्न विचारणीय हैं
क्या अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ है
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१,कोई भी किसी को गाली देने,व्यक्तिगत आक्षेप लगाने या उसका अपमान करने को स्वतन्त्र है.
२,प्रेस,या इलेक्ट्रोनिक मिडिया,सोशल मिडिया की आजादी का लाभ जनता में वैमनस्यता फैलाने के लिए किया जाय.
३,कोई विदेशी ताकत हमारे देश की एकता ,अखंडता,और सुरक्षा के साथ खिलवाड करे.
४,कोई भी व्यक्ति या समुदाय जनता में धार्मिक विद्वेष या जातीय नफरत,अफवाह फ़ैलाने को स्वतन्त्र हो जाय.देश की एकता अखंडता और सार्वभौमिकता पर चोट करता रहे

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   परन्तु क्या  देश और समाज की सुरक्षा के नाम पर, जनता को व्यवस्थित करने के नाम पर सोशल मिडिया पर अंकुश लगाने की स्वीकृति दे दी जाय?

१,क्या सोशल मिडिया के दुरूपयोग को रोकने के लिए, इस पर लगाम लगाने के लिए, सरकार को सम्पूर्ण अधिकार देना उचित होगा?
२.क्या सोशल साइट्स के विरुद्ध बनाये गए नियम, सरकार को निरंकुश नहीं बना देंगे ?
३,क्या अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाकर देश में लोकतंत्र बाकी रह जायेगा.१९७५ की आपात स्थिति सरकार द्वारा प्रेस की आजादी पर लगाम लगा देने के कारण ही बनी थी.
४, सोशल मिडिया एक साधारण से साधारण व्यक्ति के लिए अपनी आवाज,अपनी मांग,अपने मान व्याप्त क्रोध को सरकार और दुनिया तक पहुँचाने का एक मात्र माध्यम है.लोकतांत्रिक देश में आम आदमी के मुहं पर ताला लगा देना उचित होगा.क्या उसकी अभिव्यक्ति की आजादी छीन लेने से आम आदमी कुंठाग्रस्त नहीं हो जायेगा.क्योंकि प्रेस और अन्य इलेक्ट्रोनिक मीडिया के द्वारा आम आदमी नहीं जुड सकता 

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तो क्या हों समाधान?;

       तो फिर क्या समाधान हो,ताकि सरकार की निरंकुशता भी जनता को न सहनी पड़े और देश और समाज की सुरक्षा भी बनी रहे.
१ ,सरकार प्रत्येक आपत्ति जनक सामग्री की व्यख्या स्पष्ट करे और उनको लागू करने के लिए आवश्यक नियम बनाये.नियम और कानून पूर्णतयः पारदर्शी हों ताकि कोई भी सत्तानशीं व्यक्ति या अधिकारी उन्हें अपने हितों के अनुसार परिभाषित न कर सके, अपने  व्यक्तिगत द्वेष के लिए,या अपने हितों को साधने के लिए उन नियमों का उपयोग न कर सके.
२ ,प्रत्येक सोशल साईट चलाने वाले को जिम्मेदारी सौंपी जाये की वह अपने साइट्स पर आने वाली सामग्री की  निरंतर समीक्षा करे और आपत्ति जनक सामग्री को तुरंत हटाये तथा आपति जनक सामग्री डालने वाले पर अपना शिकंजा कसे.
३,कोई भी ऐसा सोफ्टवेयर विकसित  किया  जाय जो स्वतः सरकार द्वारा परिभाषित  आपतिजनक सामग्री को हटा दे अथवा चेतावनी दे दे.
४,जनता को उसकी जिम्मेदारी के प्रति जागरूक किया जाय और बताया जाए किस प्रकार की आपतिजनक सामग्री उसे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा जा सकती है.
५.एक निगरानी समिति बनायी जाये, जो सरकार द्वारा निश्चित की गयी आपत्ति जनक सामग्री की निरंतर समीक्षा कर सके और उसे प्रकाशित  करने वालो पर अंकुश लगा सके,उन्हें दण्डित करने के लिए आवश्यक उपाए कर सके.


    उपरोक्त उपायों को करने के लिए सत्ताधारी नेताओं की दृढ इच्छा शक्ति की आवश्यकता है .तत्पश्चात असम जैसी घटनाओं की पुनरावृति को जा सकता है.और देश को विदेशी चालों से सुरक्षित किया जा सकता है 
                 सत्य शील अग्रवाल,           


रविवार, 1 जुलाई 2012

नरेन्द्र मोदी संभावित भावी प्रधान मंत्री.


नरेन्द्र मोदी संभावित भावी प्रधान मंत्री.
     वर्तमान समय में जिस प्रकार से सत्तारूढ़ कांग्रेस नेतृत्व वाली यू.पी.ए सरकार भ्रष्टाचारों, घोटालों के चक्रव्यूह में घिर चुकी है,नित नए घोटाले जनता के समक्ष आ रहे है,देश की अर्थव्यवस्था रसातल में जा रही है,महंगाई जनता की कमर तोड़ रही है,रूपए का मूल्य निम्नतम स्तर पर आ चुका है,जनता का कांग्रेस सरकार के प्रति मोह भंग हो चुका है.ऐसे समय में जनता को किसी अच्छे  विकल्प की तलाश होगी, जो कांग्रेस से बहतर ,भ्रष्टाचार मुक्त शासन दे सके.क्योंकि देश में भारतीय जनता पार्टी ही मुख्य एवं सबसे बड़ी राष्ट्रिय विपक्ष पार्टी है.स्वाभाविक है सभी की आकांक्षाएं इसी पार्टी से बन रही हैं.२०१४ के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता मिलने की सम्भावना बनती नजर आ रही है.जो पार्टी के सभी दिग्गज नेताओं के लिए कोतुहल पैदा कर रही है.लाल कृष्ण अडवाणी ,सुषमा स्वराज ,नितीश कुमार ,नितिन गडकरी जैसे अनेको नेता प्रधान मंत्री के सपने देखते रहे हैं. .हर बड़ा नेता स्वयं को प्रधान मंत्री की दौड़ में शामिल करने को उत्सुक है.प्रत्येक कद्दावर नेता अपने  भाग्य को चमकाने का अवसर समझ रहा है.बार बार ऐसे आशावादी नेताओं के मन में प्रश्न उठ रहा है,क्या वह प्रधान मंत्री की कुर्सी तक पहुँच पायेगा ?दशकों से राजनीती में अपनी  बिसात बिछाए बैठे बड़े बड़े नेता इस मौके को अपने  पक्ष में करने को उतावले हैं.
      प्रधान मंत्री पद की  इस दौड़ में गुजरात के वर्तमान मुख्य मंत्री का नाम प्रमुख रूप से उभर कर आ रहा है.कारण है, उनका गुजरात प्रदेश में अपने कामकाज,और कार्य शैली के कारण देश भर में उनकी बढती लोकप्रियता. उनके कार्यकाल में गुजरात प्रदेश को  देश के सर्वाधिक उन्नत प्रदेशों में गिना जाना. इसी लोकप्रियता के कारण वे भा.ज.पा.के प्रणेता बन गए हैं.परन्तु पार्टी के अन्य महत्वकांक्षी नेताओं को उनका नाम रास नहीं आ रहा,क्योंकि वे स्वयं अपने  नाम को प्रधान मंत्री के दावेदारों में शामिल करना चाहते हैं.इसलिय ये नेता नरन्द्र मोदी की उभरती छवि से परेशान हैं,हैरान हैं.और विरोधी पार्टियों के साथ उनको साम्प्रदायिक बता कर अपने लक्ष्य को साधना चाहते हैं.अब कुछ नेताओं ने उन्हें हठी,निरंकुश नेता बता कर प्रधानमंत्री पद के अयोग्य बताने का प्रयास कर रहे हैं.इस प्रकार नेताओं की आपसी लड़ाई ने महत्वपूर्ण मोड ले लिया है जो जनता के समक्ष अनेक ज्वलंत प्रश्न खड़े कर रहा है ;
१,क्या नरेन्द्र मोदी को साम्प्रदायिक नेता कहाँ उचित है?
२. क्या नरेन्द्र मोदी को विकास पुरुष के साथ साथ तानाशाह भी कहना चाहिए?
३,जिस प्रकार से मोदी जी ने अपने कार्यकाल में गुजरात को देश के अग्रणी राज्यों में ला खड़ा किया,क्या किसी साम्प्रदायिक नेता के लिए संभव था?
४,क्या मोदी जी में तथाकथित सहन शक्ति का अभाव उन्हें प्रधान मंत्री के अयोग्य ठहराता है?क्या देश को मनमोहन सिंह जैसा चुपचाप बैठे रहने वाला,असीमित धैर्य और सहन शक्ति वाला  प्रधान मंत्री चाहिए.जो देश को रसातल में जाता देखता रहे और कुछ न बोले?
५,क्या मोदी के गुजरात में मुस्लमान भयभीत जीवन जी रहे हैं,क्या उन्हें वहाँ पर नागरिक अधिकारों से वंचित किया जा चुका है ?क्या वे इस राज्य में उन्नति नहीं कर रहे हैं?क्या राज्य की उन्नति का लाभ उन्हें नहीं मिल रहा?
६, क्या गुजरात में २००२ में मोदी के शासन में हुए दंगों के कारण उनको सांप्रदायिक करार  देना उचित होगा? क्या गोधरा कांड की स्वाभाविक जन प्रतिक्रिया, गुजरात दंगों का कारण नहीं थी?
७,काग्रेस के शासन काल में १९८४ के सिक्ख विरोधी  दंगो का जिम्मेदार कौन था? इस प्रकार से क्या कांग्रेस साम्प्रदायिक पार्टी नहीं मानी जानी चाहिए?
८,१९९१ में जब बाबरी ढांचा गिराया गया तब केंद्र में किसकी सरकार थी? क्या तत्कालीन कांग्रेस सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं थी,फिर वह साम्प्रदायिक पार्टी क्यों नहीं?
९.आजादी के पैसंठ वर्षों में अधिक तर देश के शासन की बागडोर कांग्रेस के हाथों में रही फिर क्यों रह रह कर  देश में अनेक शहर साम्प्रदायिकता की आग में झुलसते रहे?
१०.क्या इस देश में हिंदू हित की बात करना साम्प्रदायिकता है और मुस्लिम तुष्टिकरण की बात करना धर्मनिरपेक्षता है?
       उपरोक्त सभी साक्ष्यों से स्पष्ट है की हमारे देश में यदि किसी  की छवि धूमिल करनी हो तो उसे साम्प्रदायिक करार दे दो.इसी षड्यंत्र के अंतर्गत मोदी साहेब के विरुद्ध माहौल तैयार किया जा रहा है.यदि उनके इरादे सफल होते है,तो देश का दुर्भाग्य होगा जो उसे एक योग्य, कर्मठ, ईमानदार, विकासशील, प्रधान मंत्री से वंचित कर देगा. (SA-72C)
   सत्य शील अग्रवाल,  532/6, शास्त्री नगर मेरठ 
         

रविवार, 24 जून 2012

कितना फितरती है इन्सान

<अपने स्वार्थपूर्ति अथवा तथाकथित आत्मसम्मान की संतुष्टि के लिए , हम एक दुसरे का शोषण करते हैं ,रौब ज़माते हैं और अपनी शर्तें मनवाते हैं .इस प्रकार का व्यव्हार कर हम कौन सी सभ्यता और आधुनिकता का परिचय दे रहे हैं ?’जियो और जीने दो ’की धारणा को भूल गए हैं .इन्सान अपने भौतिक विकास को देख कर अभिभूत है .,परन्तु इसी भौतिक विकास ने समाज को नैतिक पतन की खाई में धकेल दिया है .यह कटु सत्य है बिना सामाजिक उत्थान के , बिना नैतिक मूल्यों के ,बिना इंसानियत का परचम लहराए सारी भौतिक उपलब्धियां औचित्यहीन हो जाती हैं . मानव विकास का मुख्य एवं मूल उद्देश्य मानव जीवन को सुविधा जनक एवं शांति दायक बनाना होता है .सामाजिक अशांति ,अत्याचार ,व्यभिचार ,के रहते मानव जाति सुखी नहीं हो सकती .बिना मानसिक शांति के सारी सुख सुविधाएँ अर्थहीन हो जाती हैं . आज प्रत्येक घर परिवार प्रतिद्वंद्विता एवं युद्ध का अखाडा बनता जा रहा है ,जहाँ अन्याय की पूजा हो रही है .पति पत्नी पर रौब गांठता है ,मर्दानगी दिखता है ,उससे अनेक कार्य बलपूर्वक करवाने का प्रयास करता है ,मौका मिलने पर अपमान करता है .परन्तु यदि किसी परिवार में पति शांति और न्याय का समर्थक है ,सबका सम्मान करने में विश्वास करता है ,तो पत्नी हावी होने लगती है ,बात बात पर ताने मारना एवं पति को लज्जित करने में अपनी शान समझने लगती है .शिक्षा के क्षेत्र में या कार्य क्षेत्र में अधिक सफल भाई बहन अपने से कम सफल या असफल ,कम शिक्षित भाई या बहन की उपेक्षा करने लगता है .उनका अपमान करने लगता है ,मजबूरी में फंसने पर उनका शोषण भी करता है .इसी प्रकार यदि परिवार का मुखिया तानाशाही प्रवृत्ति का है तो सभी परिजनों को अपनी उँगलियों पर नाचने का प्रयास करता है .परन्तु इसके विपरीत यदि मुखिया शांत पृकृति तथा न्याय प्रिय है तो परिवार का बेटा आर्थिक सक्षम होते ही अपने पिता को लज्जित करने से संकोंच नहीं करता ,और सभी परिजनों को अपने प्रभाव में लेना चाहता है . अपनी इच्छानुसार परिवार को चलाना चाहता है , अर्थात अपनी इच्छाएं पूरे परिवार के सदस्यों पर थोपना चाहता है आईये अब परिवार से निकाल कर गली मोहल्लों में झांक कर देखते हैं .यहाँ पर कुछ दबंग लोग पूरे समाज को मोहल्ले को अपने रौब में रखने की कोशिश में लगें हैं .ऐसे दबंग लोग अपनी गुंडई के बल पर अपने स्वार्थों की पूर्ती करते देखे जा सकते हैं .ये लोग पूरे समाज के लोगों का शोषण करने में लगे रहते हैं .यदि एक बाहुबली किसी कारण वश शांत हो जाता है तो कोई अन्य बाहुबली उसका स्थान ले लेता है .ऐसे दबंग लोग और उनका गिरोह पूरे समाज के लिए सिरदर्द बना रहता है. और तो और सभी देश अपने बर्चस्व के लिए एक दुसरे देश को अपनी धौंस में रखना चाहते हैं किसी पडोसी देश को उन्नति करते हुए नहीं देख सकते . जब कुछ बस नहीं चलता तो छापामार की लडाई शुरू कर दी जाती है जिसे आतंकवाद के रूप में जाना जाता है .और आज पूरा विश्व इस समस्या से प्रभावित है .प्रत्येक देश उन्नत से उन्नत हथियारों से लेस हो कर विश्व को धमका कर रखने को प्रयास रत है .अमेरिका जैसे देश तो पूरी दुनिया को अपने इशारों पर नाचना चाहता है बल्कि नाचता भी है.
  एक और अन्य वीभत्स रूप भी हमारे समाज में मौजूद है . आजादी के पश्चात् हजारों वर्षों से दबे कुचले अर्थात , दलितों को देश की मुख्य धारा में लाने के लिए ,उनके उत्थान के लिए संविधान में अनेकों कानूनी अधिकार प्रदान किये गए , आरक्षण की व्यवस्था कर शिक्षा एवं रोजगार के अवसर दिए गए ताकि आजाद देश में सम्मान पूर्वक जीने के अवसर मिल संकें . परन्तु आज वे दलित लोग ही समाज उच्च वर्ग पर अत्याचार करने लगे हैं . कानून भंग करने को उत्सुक रहते हैं और अपनी मनमानी करते हैं कानून द्वारा मिले संरक्षण का दुरूपयोग करते हैं.अपने मोहल्लों में स्थित व्यापारियों ,व्यवसायियों , कारोबारियों को अपने शोषण का शिकार बनाते रहते हैं .उनके प्रतिष्ठानों में चोरी ,कर आग लगा कर या रंगदारी वसूल कर उनको परेशान करते हैं ,उनकी आजीविका पर हमला करते हैं .क्या समाज ने ,स्वतंत्र भारत के कानून ने उन्हें शोषण मुक्त इसलिए किया था की अब वे अन्य लोगों का शोषण करने लगें ? और देखिये ,पिछले पचास वर्षों में नारी उत्थान के लिए कानून बना कर उनके कल्याण के लिए मार्ग प्रशस्त किया गया ,ताकि नारी वर्ग जो हजारों वर्षों से प्रताड़ित ,अपमानित ,शोषित जीवन जी रहा था ,उसे मुक्ति मिल सके .उसे पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त हो सकें ,वह सम्मान पूर्वक जी सके .परन्तु नारी ने उसके पक्ष में बने कानूनों को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर अपने तुच्छ स्वार्थों की पूर्ती करना शुरू कर दिया .अब वह पति एवं ससुराल पक्ष को शोषित करने लगी . आज वह आत्महत्या की धमकी देकर अपनी असंगत बातों को भी मनवाने का प्रयास करती है .किसी विवाहिता की असामयिक मौत हो जाने पर उसके मैके वाले दहेज़ हत्या के झूंठे आरोप लगाकर पूरे ससुराल पक्ष को जेल जाने को मजबूर कर देते हैं ,जिसके लिए जमानत भी कम से कम छः माह पश्चात् होती है .अक्सर पति को तो छः माह पश्चात् भी जमानत नहीं मिल पाती .और बाद में अदालत द्वारा केस झूंठा साबित होता है.मजबूरन आज ‘पति परिवार कल्याण संस्थानों’ के गठन होने लगे हैं .आज तो महिलाएं नारियां इतनी दबंग हो गयी हैं , की अपनी तुच्छ स्वार्थ पूर्ती के लिए अपने परिजन या ससुराल पक्ष के व्यक्तियों की हत्या भी कर देती हैं .कहने का आशय है उन्होंने भी अपराध की दुनिया में कदम रख दिया है, हजारों वर्षों से घर की दहलीज न लांघने वाली नारी अत्याचार का दामन थमने लगी है ,क्या उन्हें यही सब कुछ करने के लिए कानूनी संरक्षण दिया गया है. उपरोक्त विश्लेषण संकेत दे रहे हैं की इन्सान ने कितनी भी प्रगति कर ली हो उसकी मानसिकता में अभी भी शोषण, तानाशाही ,अन्याय करने की भावना पाषाण युग के समान बर्बर ही है. यही कारण है आज के उच्च विकसित समाज में हर क्षेत्र हर स्तर पर अन्याय व्याप्त है .जब एक व्यक्ति को ,एक समुदाय को शोषण मुक्त किया जाता है वही वर्ग या समुदाय नए शोषक के रूप में उभरने लगता है ,समाज का तिरस्कार करने लगता है .अतः हम सभी को आत्म मंथन कर इस प्रकार की बुराईयों से उबरना होगा तब हम एक शोषण मुक्त ,सभ्य समाज का निर्माण कर सकेंगे .विकास का सार्थक लाभ पूरे समाज को मिल सकेगा,जो मानव विकास का वास्तविक उद्देश्य है .

बुधवार, 13 जून 2012

खरीदारी की समझदारी

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हमारी सभी भौतिक आवश्यकताएं हमारे अथवा हमारे प्रियजनों द्वारा अर्जित धन से पूरी होती हैं .धन का अर्जन करना कोई आसान कार्य नहीं होता .सतत परिश्रम द्वारा ही हम अपनी एवं अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करते हैं .अब यदि परिश्रम से कमाए धन को व्यय करने में भी संयम एवं समझदारी से काम लें तो शायद अपने धन का अधिक सदुपयोग कर सकते हैं .समान खर्चे में अधिक सेवाएं और अधिक वस्तुएं प्राप्त कर सकते हैं .प्रस्तुत लेख में विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है की ,खर्च करते समय क्या रणनीति अपनाई जाय ताकि हमें अपने धन का अधिक से अधिक मूल्य प्राप्त हो सके .और अपनी या अपने परिजन की गाढ़ी कमाई को बेकार जाने से रोक सकें .

समाज में आए स्तर के अनुसार तीन भागों में विभाजित किया गया है उन्हें अपनी खरीदारी के निर्णय अपनी आए सीमा के अंतर्गत लेने पड़ते हैं ,चतुर्थ वर्ग में खरीदार की आए नहीं बल्कि उसका आवश्यकतानुसार निर्णय महत्वपूर्ण होता है .
प्रथम भाग ;- इस श्रेणी में उच्चतम आए वर्ग के उपभोक्ताओं को रखा गया है . यह वर्ग खरीदारी करते समय सिर्फ उच्चतम क्वालिटी को ध्यान में रख कर खरीदारी करता है ,अर्थात अपनी पसंद और उच्च गुणवत्ता खरीदारी का उद्देश्य होता है .वस्तु या सेवा की उच्चतम कीमत उन्हें वस्तु की उच्च क्वालिटी का आभास कराती है .
द्वितीय वर्ग ;-इस वर्ग में हमने मध्यम आए वर्ग के उपभोक्ताओं को रखा है .इस वर्ग के व्यक्ति खरीदारी करते समय वस्तु या सेवाओं की गुणवत्ता और मूल्य दोनों का समान रूप से विश्लेषण कर ही अपना निर्णय लेते हैं .हर पहलु से जाँच परख करने के कारण अपने धन का सदुपयोग कर पाने में सर्वाधिक सफल रहते हैं .
तृतीय वर्ग ; -अल्प आए वर्ग अथवा निम्न आए वर्ग खरीदारी करते समय सिर्फ वस्तु की कीमत पर ध्यान देते हैं .इस वर्ग के लोग सिर्फ कम से कम खर्च में अधिक से अधिक वस्तु प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं .इसी कारण निम्न गुणवत्ता की वस्तु खरीद लेना महंगा भी पड़ जाता है क्योंकि निम्नतम गुणवत्ता की वस्तुएं कम टिकाऊ होती हैं , और उन वस्तुओं में बहुत बड़ा भाग प्रयोग करने लायक ही नहीं होता .
चतुर्थ वर्ग ;-इस वर्ग के अंतर्गत की खरीदारी अथवा व्यय सभी आए वर्ग के व्यक्तियों द्वारा करनी पड़ती है .यह खरीदारी परिस्थितियों की विवशता के कारण करनी पड़ती है अनेक बार मान सम्मान अथवा शारीरिक -मानसिक रुग्णता में मजबूरी वश करनी होती है ,और बाजार मूल्य से कहीं अधिक खर्च कर अपनी आवश्यकता पूर्ण करनी पड़ती है ,कभी कभी अपनी आर्थिक सामर्थ्य से भी अधिक व्यय करना पड़ता है .वस्तु की कीमत से अधिक उसकी आवश्यकता पर ध्यान देना होता है .जैसे बीमारी की आकस्मिकता ,किसी प्रिय बच्चे की जिद पूर्ण करने की मजबूरी ,किसी आगंतुक या अतिथि के साथ खरीद करते समय ,कुछ दुर्लभ परिस्थितियों में जैसे देर रात के समय आटो न मिलने की स्थिति , दुर्घटना हो जाने पर अपने प्रियजन की जन बचाने की स्थिति में ,किसी शुभ अवसर पर अपनी चिर प्रतीक्षित अभिलाषा पूर्ण करने की स्थिति ,यात्रा के समय आने वाले अनेक दुर्लभ पलों में इत्यादि .
कैसे हो समझदारी से खरीदारी ;-
प्रथम वर्ग ;इस वर्ग के पास धन की कोई सीमा नहीं होती अतः उनकी खरीदारी का लक्ष्य सिर्फ उच्चतम क्वालिटी या अपनी पसंद होता है .उच्चतम मूल्य की वस्तु खरीदना उन्हें गौरव प्रदान करता है . उनकी इसी सोच का व्यापारी ,दुकानदार या सेवा प्रदाता लाभ उठाते हैं .वे क्वालिटी में 10% प्रतिशत की बढ़ोतरी कर कीमत दो गुनी या उससे भी अधिक कर देते हैं .इस वर्ग के सौभाग्यशाली उपभोक्ता यदि अपनी समझदारी से कीमत एवं गुणवत्ता का ध्यान कर अपनी खरीदारी करें तो कुछ पैसा व्यापारी की जेब में जाने से रोककर अपने अधीनस्थ गरीब व्यक्ति का जीवन स्तर सुधारने का प्रयास कर सकते हैं .या फिर किसी अनाथ व्यक्ति के भरण पोषण की जिम्मेदारी निभाकर सामाजिक प्रतिष्ठा बढा सकते हैं और आत्मसंतोष का सुख प्राप्त कर सकते हैं .
द्वितीय वर्ग ;-इस वर्ग के अंतर्गत आने वाले खरीदार काफी समझदारी से अपनी सीमित आए को खर्च करते हैं ,ताकि अपनी आए और व्यय में संतुलन बनाये रख सकें साथ ही वस्तु भी गुणवत्ता वाली प्राप्त कर सकें .कभी कभी गुणवत्ता की जानकारी के अभाव में नुकसान उठाना पड़ता है .उदाहरण के तौर पर मार्केट में आलू 14/ kilo और 10/ kilo दो भाव में उपलब्ध है ,यदि 10/ kilo आलू लेने पर उसमें 300gram आलू ख़राब निकाल जाता है अर्थात सिर्फ 700gram आलू उपयोग में आ पाता है और आलू सस्ता खरीदना महंगा पड़ता है .उसकी छंटाई में श्रम एवं समय अलग से व्यय करना पड़ा .इसी प्रकार कोई कपडा खरीद कर अनेक वर्षों तक चलता है परन्तु अधिक दिन पहनने के कारण उससे मन खीजने लगता है ,महंगा होने के कारण शीघ्र बदलना भी संभव नहीं होता ,यदि कम टिकाऊ परन्तु सस्ता कपडा लिया जाय तो उसी कीमत में दो या तीन जोड़ी कपडे खरीदना संभव होगा और नित्य बदल बदल कर कपडे पहनना संभव हो सकेगा
इसी प्रकार फेशन बदलने के कारण महंगा कपडा खरीदना नुकसानदेह सिद्ध हो सकता है .
तिर्तीय वर्ग ;इस वर्ग में आने वाले खरीदार आर्थिक रूप से अत्यंत सीमित दाएरे में रहकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ती करते हैं .अतः वे गुणवत्ता पर अधिक ध्यान नहीं देते .उन्हें सिर्फ सस्ते संसाधन जुटा लेने की तमन्ना रहती है . वस्तु की मात्रा भी कम से कम खरीदनी पड़ती है ,ताकि कम खर्च से सभी आवश्यक वस्तुएं खरीद सकें .कम मात्रा में वस्तु खरीदने से उन्हें अपेक्षाकृत अधिक कीमत चुकानी पड़ती है
और उन्हें आर्थिक हानि उठानी पड़ती है .सस्ती वस्तु अनेक बार इतनी घटिया क्वालिटी की होती है उसे बार बार खरीदना पड़ता है ,या क्वालिटी ख़राब होने के कारण कम उपयोगी हो पाता है .जैसे कम मूल्य वाला दूध मिलावटी हो सकता है ,सब्जियों में गली सड़ी अधिक मात्रा में हो सकती हैं .अतः खरीदारी करते समय सिर्फ मूल्य देख कर लेना महंगा पड़ जाता है .अपने धन का पूरा मूल्य वसूल हो सके यह देखना भी आवश्यक है .ताकि आपकी परिश्रम से अर्जित की गयी आए का भरपूर सदुपयोग हो सके यदि आवश्यक हो तो किसी अनुभवी मित्र से सलाह लेना उचित हो सकता है .सीमित आए होने के बावजूद यदि प्रत्येक वस्तु को मासिक खपत के आधार पर लेने की आदत डालें तो तो बड़ी मात्रा में वस्तु लेने के कारण सस्ती पड़ सकेगी .इस कार्य के लिए एक एक कर वस्तुओं का संग्रह करने की योजना बनाये. धीरे धीरे आपके मासिक खर्च का चक्र बन जायेगा और आपके अपने बजट में ही अतिरिक्त वस्तुएं खरीद पाने का लाभ उठा सकेंगे.
चतुर्थ वर्ग ;इस वर्ग के अंतर्गत खरीदारी करने में अत्यधिक समझदारी का परिचय देना होता है . क्योंकि निर्णय लेने के लिए अधिक समय नहीं होता अतः आवश्यक वस्तु या सेवा प्राप्त करने के लिए अपने बजट से अधिक खर्च करना पड़ता है .यह जानते हुए की अमुक वस्तु या सेवा महँगी होने के साथ साथ अपनी क्षमता से अधिक है फिर भी समय की जटिलता को देखते हुए ,कठिन परिस्थितियों के कारण अपनी सीमायें तोड़ कर व्यय करने को विवश होना पड़ता है .ऐसे दुर्लभ अवसरों पर कीमतों का विश्लेषण करना या उचित अनुचित देखना ठीक नहीं होता ,मध्यम आए वर्ग एवं अल्प आए वर्ग के लिए संतुलित निर्णय लेना समझदारी होगी
उपरोक्त विश्लेषण से निष्कर्ष निकलता है की प्रत्येक वर्ग के खरीदार को समय की नजाकत ,कीमत ,परिमाण एवं गुणवत्ता में संतुलन बना कर खरीदारी करनी चाहिए ,क्योंकि समझदारी से की गयी खरीदरी आपकी अपरोक्ष रूप से आए बढा देती है आपका धन अधिक मूल्यवान साबित होता है

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कुछ महत्वपूर्ण बातें;
१,अपने परिवार की कुल आये में से कम से कम १०% प्रति माह बचाना भी आवश्यक है ताकि आकस्मिक आने वाले खर्चो से निबटा जा सके ,जैसे बीमारी या अन्य कोई आकस्मिक खर्च.जो व्यक्ति अपने बजट में बचत को महत्त्व देते है उन्हें जीवन में आर्थिक कठिनाईयों का सामना करने में कम कष्ट होते हैं.
२,हमारे घर का बजट कितना भी बड़ा न हो, घर के बजट अर्थात अपनी आर्थिक सामर्थ्य एवं प्रत्येक खर्चे की वरीयता निश्चित कर खरीदारी करना समझदारी का कदम है.किसी वस्तु या सुविधा पर खर्च करना अधिक आवश्यक है और किस पर नहीं. साथ ही, किस वस्तु पर हम कितना व्यय करने की क्षमता रखते है,इसका विश्लेषण करना भी आवश्यक होता है.
३,अपने घर के बजट का एक अंश, दान के लिए भी रखना उचित होगा,यह अंश दो से पांच प्रतिशत तक अपनी इच्छा के आधार पर रखा जा सकता है. परन्तु दान किसी सुपात्र यानि ऐसे व्यक्ति को दिया जाय जिसे वास्तव में उसकी अपनी मूल आवश्कताओं की पूर्ती के लिए आवश्यक हो.