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हमारे देश के संविधान में मीडिया को लोकतंत्र के चार मुख्य स्तम्भ में से एक माना गया है .अतः मीडिया की समाज के प्रति देश के प्रति बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी होती है .यह ऐसा मा ध्यम है जो आम जनता की आवाज को बुलंद करता है .जो जनता की आवाज को शासन स्तर तक पहुँचाने की क्षमता रखता है .यह माध्यम जनता के हर दुःख दर्द का साथी बन सकता है .लोकतंत्र के शेष सभी स्तंभों अर्थात विधायिका ,न्यायपालिका ,व् कार्यपालिका के सभी क्रियाकलापों पर नजर रख कर उन्हें भटकने से रोक सकता है ,उन्हें सही राह पकड़ने को प्रेरित कर सकता है .साथ ही उनके असंगत कारनामो को जनता के समक्ष उजागर कर जनता को सावधान कर सकता है .
हमारे देश में मीडिया को विचार अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता संविधान प्रदत्त है .ताकि वह अपने कार्यों को बिना हिचके .बे रोक टोक कर सके .परन्तु क्या मीडिया उसे मिली आजादी को पूरी जिम्मेदारी से जनहित के लिए निभा पा रही है ?क्या वह अपने कार्य कलापों में पूर्णतया इमानदार है ?क्या देश में व्याप्त बेपनाह भ्रष्टाचार के लिए वह भी कहीं न कहीं जिम्मेदार नहीं है ?क्या मीडिया स्वयं भी भ्रष्ट नहीं हो गया है ?क्या मीडिया जनता के दुःख दर्द पर कम , अपनी कमाई ,अपनी टी .आर .पी . के लिए अधिक चिंतित नहीं रहता ?इन्ही सब विषयों पर विचार विमर्श इस लेख के माध्यम से करने का प्रयास किया गया है .यहाँ मुख्य बात उल्लेखनीय है आज भी सारा मीडिया गैर जिम्मेदार नहीं है ,स्वच्छ ,इमानदार पत्रकार आज भी मौजूद हैं जो देश को सही दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं ,जनता की भलाई के लिए अपनी जान भी जोखिम में डाल देते हैं ,और कुर्बान भी हो जाते हैं ,ऐसे जांबाज पत्रकारों को मैं सेल्यूट करता हूँ .और उम्मीद करता हूँ जो मीडिया कर्मी अपने कर्तव्यों से भटक गए हैं अपनी जिम्मेदारियों को समझने का प्रयास करेंगे .
मीडिया के लिया विज्ञापन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ;
यह एक कटु सत्य है , आज के प्रतिस्पर्द्धा के युग में मीडिया प्रिंट का हो या इलेक्ट्रोनिक उसको अपने समस्त खर्चों को पूरा करने के लिए विज्ञपनों पर निर्भर रहना पड़ता है .परन्तु क्या कमाई के लिए दर्शकों एवं पाठकों के हितों तथा रुचियों को नजरंदाज कर देना उचित है ? .प्रत्येक चैनल , चाहे वह पेड़ हो या अनपेड हो ,कार्यक्रम ,या ख़बरें कम विज्ञापन अधिक समय तक प्रसारित किये जाते हैं .कभी कभी तो दर्शक यह भी भूल जाता है की वह क्या कार्यक्रम देख रहा था ,अर्थात किस विषय पर आधारित समाचार देख रहा था .कभी कभी तो कार्यक्रम पांच मिनट का होता है तो विज्ञापन भी पांच मिनट या उससे भी अधिक होता है .कार्यक्रम के कुल समय के 25%से अधिक विज्ञापन दिखाना दर्शकों के साथ अन्याय है ,ठीक इसी प्रकार प्रिंट मीडिया में देखने को मिलता है जब समाचार पत्र में ख़बरें कम विज्ञापन अधिक होते हैं .कभी कभी तो पूरा प्रष्ट ही विज्ञापन की भेंट चढ़ जाता है , कभी कभी तो विज्ञापन खबर के रूप में ही प्रकाशित किया जाता है .पाठक विज्ञापन को खबर समझ कर पढता है जो पाठकों के साथ धोखा है
पेड न्यूज़ का चलन ;
आज अनेक चैनलों एवं समाचार पत्र ,पत्रिकाओं में छापने वाली ख़बरों की कीमत वसूल की जाती है .इस प्रकार खबर का वास्तविकता से नाता टूट जाता है .कुबेर पति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए धन बल का प्रयोग कर आम जनता को धोखा देते हैं और मीडिया अपनी जिम्मेदारी से हटते हुए कुबेर पतियों के कठपुतली बन जाते हैं .दूसरे शब्दों में मीडिया वह खबर दिखता है जो धनवान दिखाना चाहता है ,इस प्रकार से एक साधारण व्यक्ति के साथ अन्याय होता है ,उसके हित में आवश्यक खबर के लिए मीडिया में स्थान नहीं मिल पाता.आम जनता की आवाज का एक मात्र मध्यम मीडिया ही होता है परन्तु उसकी आवाज दब कर रह जाती है
नकारात्मक ख़बरें ही सुर्खियाँ बनती हैं :
यह हमारे देश वासियों का दुर्भाग्य ही है ,जब हम सवेरे उठ कर अख़बार के समाचारों पर नजर दौड़ते हैं तो पढने को मिलता है की बीते दिन में दो , चार या अधिक हत्या हो गयीं ,कुछ स्थानों पर लूटमार हुई या डकैती पड़ी ,चेन खिंची .चोरी हुईं ,धोखा धडी हुई,अनेक लोग सड़क दुर्घटनों के शिकार हो गए,तो कुछ लोग आतंकवादियों के हमलों के शिकार हो गए ,कुछ अन्य प्रकार के हिंसा के अपराध हुए , और नजर आते हैं नित नए सरकारी विभागों में खुलते घोटाले .मुख्य प्रष्ट पर इस प्रकार के समाचारों को पढ़कर या चैनल की हेड लाइन के रूप में देख कर पूरे दिन के लिए मन उदास हो जाता है, मूड ख़राब हो जाता है ,पाठक अवसाद ग्रस्त हो जाता है उसका कार्य करने का उत्साह ठंडा पड़ जाता है .क्या इस प्रकार के नकारत्मक समाचारों को अतिरंजित कर , मुख्य प्रष्ट या मुख्य समाचार बनाकर जनता के समक्ष प्रस्तुत कर,मीडिया जनता को हतोत्साहित करने का कार्य नहीं कर रहा? जो देश की उत्पादकता को प्रभावित भी करता है ? क्या पूरे देश में सब कुछ गलत ही हो रहा है ,क्या अपराध ही मुख्य ख़बरों का आधार हैं ,क्या देश में समाज सेवियों,स्वयंसेवी संस्थाओं और उनके द्वारा किये जा रहे कार्यों का अकाल पड़ गया है .परन्तु समाज सेवी व्यक्तियों एवं संस्थाओं के सुखद कार्यों को जनता तक पहुँचाने का समय मीडिया के पास नहीं है .शायद उसकी सोच बन गयी है की गुंडा गर्दी ,हिंसा ,बलात्कार की ख़बरें उनकी टी .आर .पी . बढाती हैं . दर्शकों और पाठकों को आकर्षित करती हैं .यही कारण है किसी भी कार्य की आलोचना करना , नकारात्मक ख़बरों को परोसना मीडिया का एक मात्र उद्देश्य बन गया है .
यदि मीडिया अच्छे कार्य करने वालों की ख़बरों को मुख्य रूप से प्रकाशित करे तो आम जनता में सकारात्मक कार्य करने को प्रोत्साहित किया जा सकता है .एक सकारात्मक सोच का वातावरण देश और जनता के लिए सुखद और स्वास्थ्यप्रद हो सकता है .और अपराधियों के हौंसले पस्त किये जा सकते हैं ,देश को अराजकता के माहौल से मुक्ति मिल सकती है .इस प्रकार से देश के विकास में मीडिया अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है जो उसका परम कर्तव्य भी है.
भड़काऊ ख़बरों की अधिकता :
हमारे देश का मीडिया अपनी दर्शक संख्या बढ़ने के लिए ख़बरों को मिर्च मसाला लगा कर प्रस्तुत करता है ,ताकि देखने या पढने वाले को उत्सुकता पैदा हो और मीडिया से अधिक से अधिक पाठक वर्ग जुड़े .इसीलिए बलात्कार,धोखाधडी ,लूटमार की घटनाओं को विशेष आकर्षण के साथ प्रस्तुत किया जाता है.यदि पीड़ित कोई दलित वर्ग से है तो जनता को उकसाने के लिए विशेष तौर पर उसकी जाति का उल्लेख किया जाता है ,शायद दलित वर्ग होने से पीड़ा कुछ अधिक बढ़ जाती है .मकसद होता है खबर को प्रभावशाली कैसे बनाया जाय .यदि किन्ही दो पक्षों में कोई झगड़ा हो जाता है ,तो उनकी जाति या धर्म का विशेष तौर पर उल्लेख होता है ,अब यदि उससे शहर का या देश का माहौल ख़राब होता है तो मीडिया को कोई फर्क नहीं पड़ता .
क्या मीडिया को सिर्फ पाठकों की संख्या ,समाज में अराजकता की कीमत पर ,बढ़ाना उचित है ?क्या समाज में शांति व्यवस्था बनाये रखने की जिम्मेदारी सिर्फ प्रशासन की ही होती है ,मीडिया को सिर्फ आलोचना करने का ही हक़ है ?
समाज को विकृत करने वाले धारावाहिक ;
जबसे टी वी ने हमारे समाज में अपनी पकड़ बनायीं है,लगभग सभी चैनल दिन -रात (चौबीस घंटे ) प्रसारण करने लगे हैं .सभी में आपसी होड़ लगी है दर्शकों को अपनी ओर खींचने की.अतः दर्शकों को बांधे रखने के लिए धारवाहिकों का चलन बढा और गृहणियों ,बुजुर्गों , एवं घर पर ही रहने वाले लोगों के लिए धारवाहिक उनके जीवन के अंग बन गए .यदि मीडिया अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए समाज को स्वस्थ्य मनोरंजन प्रस्तुत करता तो समाज में व्याप्त विकृतियों ,कुरीतियों ,ढकोसलों से मुक्त किया जा सकता है .परन्तु चंद चैनलों को छोड़ कर अधिकतर चैनल का भड़काऊ ,षड्यंत्रकारी ,उत्तेजक एवं इर्ष्या पैदा करने वाले धारवाहिक प्रसारित करना उनका शगल बन गया है .इस प्रकार के धारावाहिकों में , नायक -नायिका का कोई चरित्र नहीं होता , कोई नैतिक मूल्य नहीं होता ,ये धारावाहिक, हिंसा , बलात्कार , अवैध सम्बन्ध ,धोखेबाजी से भरपूर होते हैं .क्या ज्ञान वर्द्धक ,स्वस्थ्य मनोरंजन देने वाले या हास्यप्रद धारवाहिक को देखने के लिए दर्शक नहीं मिलेंगे?फिर क्यों समाज को विकृत करने का प्रयास किया जा रहा है ?
आडम्बर,ढोंग को बढ़ावा देते हैं ?;
इक्कीसवी सदी के वैज्ञानिक युग में अनेक चैनल दर्शकों को सदियों से चली आ रही रूढ़ियों , ढोंग एवं आडम्बर की विचारधारा से युक्त सामग्री प्रस्तुत करते हैं .कुछ चैनल और समाचार पत्र नित्य रूप से ज्योतिष आधारित भविष्य वाणी जनता के सामने रखते हैं ,तो कहीं पर टेरो कार्ड की चर्चा होती है ,कहीं पर पंडित जी स्वयं आकर अपने अनर्गल उपायों से दर्शकों के भाग्य बदलने का दावा करते हैं ,किसी चैनल पर कोई बाबा टी .वी . दर्शकों पर कृपा बरसाते हुए देखे जाते हैं,चैनल संचालकों को तो सिर्फ आमदनी से मतलब है.जनता में भाग्यवाद को बढ़ावा मिले या ,निश्कर्मन्यता बढे इस बात से चैनल संचालकों का क्या लेना देना ? सारी गलती जनता की है जो ऐसे कार्यक्रम देखती है .क्या मीडिया द्वारा दिखाई जाने वाली दकियानूसी बातों से समाज का भला हो सकता है ?
प्रिंट मीडिया भी अपने व्यव्हार में पाक साफ नहीं है ,भविष्यफल दिखाना उनकी भी मजबूरी बनी हुई है .उनके विज्ञापन धोकेबजों के लिए जनता को लूटने का माध्यम बनते हैं.अनेक नीम हाकिम ,अनियमित फायनेंसर ,सर्वे कम्पनिया ,या घटिया उत्पाद बेचने वाले , समाचार पत्रों के विज्ञापनों द्वारा जनता तक पहुँचते हैं और जनता को लूटते हैं .क्या समाचार पत्रों को अपनी कठोर नियमावली बना कर विज्ञापन स्वीकार करने की जिम्मेदारी नहीं निभानी चाहिए ?.ताकि जनता भ्रमित न हो और ठगने से बच सके ?
सूचनाओं का प्रसारण सूचना से सम्बंधित व्यक्ति के प्रोफाइल पर आधारित ;
अक्सर देखने को मिलता है कोई भी घटना या दुर्घटना किसी बड़े नेता .व्यापारी उद्योगपति ,कुबेर पति के साथ घटित होती है तो मीडिया की खबर बनती है .उसे विशेष स्थान मिलता है , प्रत्येक समाचार पत्र ,प्रत्येक चैनल के लिए मुख्य खबर होती है .परन्तु जब कोई आम आदमी या गरीब आदमी पीड़ित होता है तो कोई उसकी आवाज को उठाने वाला नहीं होता .यदि किसी कारण वह खबर बनती भी है तो उसको नाम मात्र की कवरेज या स्थान प्राप्त होता है.जिससे स्पष्ट है की मीडिया में भी धन बल ,और बहु बल का बोलबाला बना रहता है .पूरा मीडिया सत्तासीन नेताओं और धनवानों का भौंपू बन कर रह गया है.क्या साधारण व्यक्ति के दुःख दर्द के प्रति मीडिया की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती ?
मीडिया को आलोचना सहन नहीं ;
क्योंकि मीडिया स्वयं प्रचार प्रसार का माध्यम है ,अतः कोई भी मीडिया स्वयं मीडिया के विरुद्ध छापने को तैयार नहीं होता ,उसके विरुद्ध प्रसारण करने को स्वीकृति नहीं देता .और मीडिया पर कटाक्ष करने वाले लेखों ,या टिप्पड़ियों को स्थान नहीं मिलता . यही कारण है मीडिया की कमी से ,उसके अन्दर व्याप्त अनियमितताओं से ,जनता अनभिग्य बनी रहती है.और ठीक भी है कोई स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारेगा?
विज्ञापनों के लालच में अवैध पंजीकरण ;
आज प्रत्येक शहर ,प्रत्येक देहाती क्षेत्र में सैंकड़ों अवैध समाचार पत्रों ,पत्रिकाओं ने पंजीकरण कराया होता है .अवैध से तात्पर्य है जिनका वास्विकता में कोई अस्तित्व नहीं होता सिर्फ सरकारी खातों में पंजीकृत होते है ताकि उन्हें सरकारी कागज का कोटा मिलता रहे संपादक के रूप में विशेष दर्जा मिलता रहे और सरकारी विभाग में अपना हस्तक्षेप बना रहे, उन्हें ब्लेकमेल करने का अवसर प्राप्त होता रहे.अर्थात अवैध पंजीकरण से अवैध कमाई,जो स्वयं जिम्मेदार मीडिया के लिए अभिशाप है.क्या मीडिया के संगठनों को ऐसे अवैध पंजीकरणों के विरुद्ध प्रयास नहीं करने चाहिए ?
पीत पत्रकारिता ;
कभी पत्रकार अपने स्वार्थ में ,कभी प्रबंधकों के दबाब में आकर पीत पत्रकारिता करते देखे जा सकते हैं ,सरकरी कर्मचारियों की भांति भ्रष्ट उद्योगपतियों ,भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों से धन वसूल कर उनके असंगत , अव्यवहारिक , भ्रष्ट आचरणों को अपने मीडिया द्वारा सहयोग करते हैं .इस प्रकार के आचरण जहाँ मीडिया की गरिमा को घटाते हैं दूसरी ओर जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी से विमुख होते हैं ,आम आदमी से अन्याय करते हैं .क्या भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए जिम्मेदार मीडिया को यह आचरण शोभा देता है ?
समाधान ;
मीडिया को सुधारने के लिए एक मात्र उपाय सरकारी नियंत्रण हो सकता है,जो मीडिया की आजादी पर कुठाराघात होगा ,वैसे भी देश की लगभग भ्रष्ट हो चुकी सरकारी मशीनरी द्वारा नियंत्रण,का अर्थ है. भ्रष्टाचार को खुली छूट देना .यह कदम न तो जनता के हित में होगा और ना ही देश के हित में और न स्वयं मीडिया की विश्वसनीयता के लिए हितकारी होगा .आज सही अर्थों में देश में लोकतंत्र के अस्तित्व का आधार मीडिया ही है.अतः मीडिया को स्वयं आत्म शुद्धि करने के उपाय करने होंगे . उसे स्वयं संगठित होकर मजबूत संगठनों का निर्माण करना होगा और अपनी कार्य शैली के लिए नियमावली बनाना होगी,स्व निर्मित ठोस कानून बनाने होंगे . ताकि उन नियमों का पालन करते हुए अपने क्षेत्र में व्याप्त कचरे को साफ किया जा सके . मीडिया को स्वयं ही विश्वसनीय एवं देश और जनता के लिए जिम्मेदार बनना होगा .सरकारी अंकुश लगाना देश का दुर्भाग्य होगा,लोकतंत्र का अपमान होगा
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