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शनिवार, 15 सितंबर 2012

संस्कार और नयी पीढ़ी

         अक्सर हम संस्कार की बातें करते रहते हैं ,और नयी पीढ़ी को संस्कारहीन बताते हुए कोसते रहते हैं |परन्तु क्या वास्तव में हमने कभी संस्कार को सही अर्थों में समझने का प्रयास किया है ?शायद नहीं | संस्कार शब्द छोटा होते भी अपने में बहुत कुछ समाये हुए है |इस का अर्थ काफी गंभीर और विस्तृत है |इसी शब्द का विश्लेषण करने का प्रयास यहाँ किया गया है | संस्कार का मुख्य अर्थ है ,हम क्या खाते हैं ,क्या पहनते हैं ,क्या सोचते हैं ,क्या देखते हैं ,हम क्या और कैसे व्यव्हार करते हैं |परन्तु हम अक्सर धार्मिक संस्कारों को ही संस्कार मानते हैं .जबकि वास्तविकता यह है की प्राचीन समय में जब शिक्षा का विकास नहीं हुआ था ,प्रचार और प्रसार का कोई अन्य माध्यम नहीं था ,जनता तक अपने सन्देश को पहुँचाने का एक मात्र माध्यम धर्म ही था |अतः धर्म के माध्यम से ही जनता को सभी संदेशों का आदान प्रदान होता था , जिससे समाज को व्यवस्थित रखने का प्रयास किया जाता था |आज इसी कारण प्रत्येक धार्मिक कर्म कांड को ही संस्कार का नाम दिया जाता है और सिर्फ उन्हें ही संस्कार के नाम से जानते हैं .यही कारण है ,जब हमारी नयी पीढ़ी विकसित देशों की नक़ल कर बदलने का प्रयास करती है तो हम पाश्चात्य देशों का अपनी संस्कृति पर हमला मानते हैं | परिवर्तन आना मानव जीवन की स्वाभाविक क्रिया है और उन्नति एवं विकास का द्युओतक भी |यदि संस्कृति के नाम पर हम परम्पराओं को ही गले लगाये बैठे रहेंगे तो विश्व में सर्वाधिक पिछड़े देश के रूप में जाने जायेंगे.
              क्या संस्कृति के नाम पर विकास को अवरुद्ध कर देना उचित होगा ? क्या संकृति को अपनाने का मकसद अपने समाज को जड़ बना देना समाज के लिए लाभकारी होगा ? यदि हम परम्पराओं का हवाला देते हुए नयी पीढ़ी के प्रत्येक क्रियाकलाप पर अंकुश लगते रहेंगे तो नयी पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से दूरी बना लेगी |उसका पुरानी पीढ़ी में विश्वास कम हो जायेगा ,वह उसको अपना विरोधी समझने लगेगी .अतः यदि नयी पीढ़ी को सही राह दिखानी है ,उन्हें उन्नति के रास्ते पर प्रशस्त करना है, तो उन्हें विश्वास में लेना भी आवश्यक है .अतः नए परिवर्तनों को सिरे से ख़ारिज करने के स्थान पर गुण दोष के आधार पर अपना समर्थन देना अधिक सार्थक होगा |
          अतः परिवर्तन के विरुद्ध अपने फरमान सुनाने से अधिक अच्छा है उन्हें नैतिक मूल्यों के आधार पर नए बदलावों को अपनाने के लिए प्रेरित किया जाये.( इस कटु सत्य को स्वीकार करना होगा बदलाव पृकृति का नियम है परिवर्तन तो आते ही रहेंगे और किसी के रोकना से रुकने वाले भी नहीं हैं)आपके इस व्यव्हार से नयी पीढ़ी का आप पर विश्वास बनेगा ,उनकी उन्नति में बाधा भी नहीं आयेगी .दुनिया में प्रतिस्पर्द्धा में अपने को स्थापित कर पाएंगे .परिवार में आपका सम्मान बना रहेगा .साथ ही नयी पीढ़ी को भटकने से भी बचा पाएंगे
     अंत में भूतपूर्व भारतीय क्रिकेट कोच ग्रेग चैपल के वक्तव्य पर भी ध्यान देना आवश्यक है ,उनके शब्दों में “भारत में इस तरह की संस्कृति है की वहां कोई अपना सर उठा कर बात नहीं कर सकता ,यदि कोई ऐसा करे तो उसे तुरंत नीचा दिखा दिया जाता है ,इसलिए वे अपना सर नीचा करके रखना ही सीखते हैं ,और नेतृत्व क्षमता विकसित नहीं कर पाते ,जिम्मेदारी लेने की आदत नहीं बना पाते ” सोचने की बात यह है की आखिर विदेशी ने हमारे लिए ऐसी टिप्पड़ी क्यों की और हम नयी पीढ़ी को कहाँ ले जाना चाहते हैं ?क्या प्रत्येक बात पर दखल देना .या अपने सिद्धांतों पर चलने के लिए मजबूर करना उचित होगा? क्या नयी पीढ़ी के हित में होगा ?क्या यह उचित होगा की परंपरागत संस्कारों की रक्षा में, हमारी संतान एवं हमारा देश विश्व व्यापी प्रतिस्पर्द्धा में सबसे पीछे खड़ा रहे? 

2 टिप्‍पणियां:

sajjan singh ने कहा…

हमारे यहां बच्चों को संस्कार देने का मतलब होता है उसे अंधआज्ञाकारी, अंधविश्वासी, यौन विषयों में अज्ञानी बनाये रखना, बडों की इज्जत करने की शिक्षा देना । किसी की इज्जत करना अपने आप में बहुत ही निरर्थक बात है क्योंकि इज्जत उस भावना का नाम है जो किसी की अच्छाईयों से प्रभावित होकर स्वतः ही उस व्यक्ति के लिए आपके भीतर उत्पन्न होती है। हमें सभी के साथ संयमित और प्रेमपूर्ण व्यवहार करने की परम्परा विकसित करनी चाहिए जिसमें पल कर बच्चे स्वतः ही ऐसे बने। ना कि जबरन किसी बड़े की इज्जत करना सिखाया जाए क्योंकि वह व्यक्ति आपसे पहले पैदा हुआ था।

Unknown ने कहा…

BILKUL SAHI KAHA APNE DHANYVAD