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मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

चक्र व्यूह में फंसा भारतीय लोकतंत्र

  
  2005 में जनता को सरकारी विभागों से सूचना पाने का अधिकार ( R.T.I. i.e. RIGHT TO INFORMATION) मिल जाने के पश्चात् नित्य नए घोटाले जनता के समक्ष आने लगे और नेताओं की कारगुजारियों से जनता उद्वेलित होने लगी थी.कुछ घोटाले तो बहुत ही चर्चित और भारी भरकम राजस्व के घोटाले प्रकाश में आ रहे थे, जैसे आदर्श सोसायटी घोटाला,राडिया टेप घोटाला,२जी स्पेक्ट्रम घोटाला,कोल माइन आंवटन घोटाला, इत्यादि जिन्होंने आम जन के मन में सरकार के प्रति  अविश्वास की लहर पैदा कर दी थी. इसी सन्दर्भ को लेकर अन्ना हजारे ने सरकार से संपर्क साधा और राजनैतिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध कदम उठाने का आग्रह किया,साथ ही विकल्प के रूप में उन्होंने अपना बनाया हुआ जनलोक पाल बिल को संसद में पास कराने का सुझाव दिया. परन्तु सरकार ने इसमें कोई रूचि नहीं दिखाई. जब वार्तालाप के सभी प्रयास विफल हो गए, तो अन्ना जी ने आन्दोलन का सहारा लेकर,सरकार पर दबाव बनाने और जनता को जागरूक करने का संकल्प लिया, और 5, अप्रेल २०११ को  अन्ना हजारे जी ने जंतर-मंतर नयी दिल्ली पर अपने आन्दोलन को भूख हड़ताल कर प्रारंभ किया. और देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रचार प्रसार किया और इस आन्दोलन के माध्यम से अन्ना जी ने भ्रष्टाचार खत्म  के लिए जन लोकपाल की व्यवस्था की मांग की, ताकि कोई भी राजनेता अथवा सरकारी कर्मी भ्रष्टाचार करने की हिम्मत न जुटा सके. इसके साथ ही पूरे देश में धरना, प्रदर्शन रेलियाँ की गयी और सोशल मीडिया द्वारा जनजागरण कर आन्दोलन को देश व्यापी बनाया गया. इस बीच बाबा रामदेव ने विदेशों में जमा कालाधन वापसी की मांग के समर्थन सरकार के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद की. करीब तीन माह तक अन्ना जी के नेतृत्व में यह आन्दोलन चला, देश की जनता का भारी समर्थन इस आन्दोलन को मिला. हर वर्ग का व्यक्ति अन्ना जी के आन्दोलन के समर्थन में खड़ा हो गया. तत्कालीन सत्तारूढ़ दल कांग्रेस ने जनता के व्यापक समर्थन को देखते हुए, भ्रष्टाचार मिटाने के लिए अपना संकल्प व्यक्त तो किया,परन्तु जनलोकपाल बिल को लाने और उसे पास कराने का सिर्फ नाटक किया और किसी  प्रकार आन्दोलन को निष्प्रभावी करने की योजना बनाते रहे.जो जनता को भ्रमित करने की रणनीति का हिस्सा थी. विरोधी पक्ष में अन्य सभी विरोधी पार्टियों की भांति सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भा.ज.पा भी अन्ना हजारे का समर्थन करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. जिसने जनता को यही सन्देश दिया की इस हमाम में सब नंगे हैं सबको भ्रष्ट आचरणों की आवश्यकता है, सभी नेता सिर्फ धन बटोरने के लिए राजनीति करते हैं. देश की और जनता की किसी को फ़िक्र नहीं है. बाद में नाटकीय तौर पर जनता को भ्रमित करने के लिए जो तथाकथित लोकपाल बिल सरकार की ओर से  लाया गया, वह इतना कमजोर था की उसके आने से भ्रष्टाचार को लगाम लग जाएगी ऐसा संभव नहीं था. अतः अन्ना जी का आन्दोलन अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर सका. और अन्ना जी ने अपने आन्दोलन को समाप्त करना ही उचित समझा. परन्तु उनके आन्दोलन से देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आक्रोश चरम पर पहुँच गया और सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस पार्टी के विरुद्ध जनमत बनने लगा,साथ ही सभी विरोधी पक्ष की पार्टियों के लिए भी जन आक्रोश गहराता गया. अतः भविष्य में कांग्रेस के सत्तारूढ़ होने की सम्भावना लगभग समाप्त हो चुकी थी.क्योंकि भा.ज पा ने भी अन्ना का समर्थन करने का साहस नहीं दिखाया था, अतः कांग्रेस समेत सभी पार्टियाँ जनता के कटघरे में थी और खिचड़ी  सरकार बनने की सम्भावना प्रबल थी. जो जनता के लिए भी निराशाजनक और दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति थी.परन्तु उसी समय आर.एस.एस. ने साहस दिखा कर गुजरात में अपनी ईमानदारी और कर्तव्य निष्ठां के कारण लोकप्रियता के झंडे गाढ़ चुके नरेन्द्र मोदी को देश का भावी प्रधान मंत्री बनाने का बीड़ा उठाया और अपनी सारी ताकत उन्हें जिताने में लगा दी.क्योंकि मोदी की छवि एक ईमानदार और कर्तव्य निष्ठ शासक की थी, उसे भारत की जनता ने हाथो हाथ लिया और सभी समीकरणों को झुठलाते हुए मोदी जी को अप्रत्याशित समर्थन देकर भारी बहुमत से भा.ज पा. को जिता दिया.और नरेंद्र मोदीजी को प्रधान मंत्री के पद पर सुशोभित किया. भारतीय जनता ने बहुत ही उम्मीदों के साथ नरेंद्र मोदी जी को प्रधान मंत्री बनाने के लिए अपना मत दिया और आशा जागी थी, की अब हमारे देश का और देश की जनता का कल्याण होगा देश को एक उचित दिशा प्रदान होगी और हमारा देश विकसित देशो की श्रेणी में गिना जा सकेगा,देश का विश्व में गौरव बढेगा. भारतीय जनता के कष्टों के दिन शीघ्र ही समाप्त होंगे.गरीबी, बेरोजगारी,भ्रष्टाचार जैसे अभिशापों से मुक्ति मिल सकेगी.
विरोधी पार्टियों ने सदन को बंधक बनाया 

         गत अडसठ वषों के दौरान आये अधिकतर शासकों ने देश के विकास की ओर कम अपने विकास पर अधिक ध्यान दिया और देशहित और जनहित को दर किनार कर दिया था. देश में भ्रष्टाचार, अकर्मण्यता,बेरोजगारी,गरीबी,भुखमरी से जनता को त्रस्त किया, न्याय और कानून धनी व्यक्तियों,बाहु बलियों,अपराधियों के लिए उपलब्ध हो कर रह गया. आजादी का लाभ सिर्फ अनैतिक आचरण करने वालो को ही मिल पाया. धीरे धीरे अपराधियों की धमक सत्ता तक पहुँच गयी जो अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते हैं, उन्हें जनता को मूर्ख बना कर चुनाव जीतना और फिर काला धन एकत्र कर विदेशों में जमा कर, अपनी अगली सात पीढ़ियों की सुख सुविधा जुटाने का उद्देश्य बन कर रह गया. इसी मानसिकता का परिणाम आज के शासको (मोदी सरकार) को भुगतना पड रहा है. सभी विपक्षी पार्टियों ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार के किसी भी जनहित के कार्य में व्यवधान पैदा करना अपना मकसद बना लिया है,कारण उन्हें सत्ता से दूर रहकर रोटी हजम नहीं हो रही. उनकी व्याकुलता इतनी बढ़ गयी है की शायद वे अपनी कब्र स्वयं खोदने को तैयार हो गए हैं. उनकी रणनीति है की यदि मोदी सरकार अपने मकसद में कामयाब हो गयी और जनता को उचित दिशा मिल गयी,उसकी आकांक्षाएं पूर्ण होने लगीं, तो उनके दोबारा सत्ता में आने की उम्मीदें धूमिल होती जाएँगी.भा.ज.पा का शासन काफी समय तक चलेगा. क्योंकि उन्होंने कभी देश हित के लिए,देश के विकास के लिए सोचने की आवश्यकता ही नहीं समझी.उनका सदैव मकसद रहा है की जनता को भ्रमित कर या मूर्ख बनाकर वोट बटोर कर सत्ता प्राप्त करो और अपने स्वार्थ सिद्ध करो. इसी मानसिकता के कारण,आज स्थिति यह हो गयी है की सदन को न चलने और हंगामा करने के अवसर ढूंढे जाते हैं और सरकारी विधेयकों को पास करने में व्यवधान पैदा किये जा रहे हैं.सदन न चल पाने के कारण सरकारी राजस्व का भारी नुकसान देश को उठाना पड रहा है.क्योंकि राज्यसभा में सत्ताधारी पार्टी को पर्याप्त बहुमत नहीं है अतः विपक्षी पार्टियों के समर्थन के बिना विधेयकों को राज्यसभा से पास नहीं कराया जा सकता, इसी स्थिति का लाभ विरोधी पक्ष उठा रहा है और सरकार के विकास कार्यों में रोड़ा साबित हो रहा है.और जनता के लिए दुर्भाग्य बन गया है. मोदी जी के अपने उद्देश्यों (जनता को किये गए वायदों )को पूरे करने में पसीने छूट रहे हैं.जी एस टी जैसे बिलों को पास करने में जितना विलम्ब होगा देश का विकास पिछड़ता जायेगा.एक प्रकार से विरोधी पार्टियों ने सदन को बंधक बना दिया है,और भारतीय लोकतंत्र का मजाक बनाया जा रहा है.एक लोकतान्त्रिक पद्धति से चुनी सरकार को न चलने देना लोकतंत्र का अपमान है, विकास कार्यों में अपने अड़ंगे पैदा करना देश को देश की जनता के साथ धोखा है.

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(इस लेख के शेष भाग में आप पढेंगे-- चुनाव पद्धति में खामिया और जनता की गाढ़ी कमाई की लूट)   

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