सैंकड़ो वर्ष पूर्व जब अंग्रेजों ने हमारे देश पर शासन स्थापित कर लिया , तो उन्हें शासकीय कामकाज के लिए क्लर्क तथा अन्य छोटे स्टाफ की आवश्यकता थी,जो अंग्रेजी में कार्य कर उन्हें सरकारी कामकाज में मदद कर सकें। उन दिनों देश में शिक्षा का प्रचार प्रसार बहुत कम था. अतः उन्होंने अपनी स्वार्थपूर्ती के लिए अनेक स्कूलों की स्थापना की. जिसमें सिर्फ अंग्रेजी की पढाई पर विशेष ध्यान दिया गया. स्थानीय भाषाओँ एवं हिंदी या अन्य विषयों की पढाई पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. अतः जन मानस में शिक्षित होने का अर्थ हो गया,जो अंग्रेजी का ज्ञाता हो,अंग्रेजी धारा प्रवाह बोल सकता हो वही व्यक्ति शिक्षित है.यदि कोई व्यक्ति अंग्रेजी नहीं जनता, तो उसका अन्य विषयों में ज्ञान होना, महत्वहीन हो गया, यही मानसिकता आजादी के करीब सत्तर वर्ष पश्चात् आज भी बनी हुई है.
वैश्विकरण के वर्तमान युग में हमारे देश में शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेजी भाषा का, अंतर्राष्ट्रीय भाषा होने के कारण दबदबा बढ़ता जा रहा है, यह एक कडवा सच है की आज यदि विश्व स्तर पर अपने अस्तित्व को बनाये रखना है और विकास की दौड़ में शामिल होना है ,तो अंतर्राष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी से विरक्त होकर आगे बढ़ना संभव नहीं है. देश में स्थापित अनेक विदेशी कम्पनियों में रोजगार पाने के लिए अंग्रेजी पढना समझना आवश्यक हो गया है,साथ ही दुनिया के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चलने के लिए अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखना जरूरी है.परन्तु अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी के महत्त्व को भी नहीं नाकारा जा सकता .राष्ट्र भाषा के रूप में हिंदी के विकास के बिना दुनिया में देश की पहचान नहीं बन सकती .राष्ट्रभाषा हिंदी ही देश को एक सूत्र में बांधने का कार्य कर सकती है.
असली समस्या जब आती है जब हम अपने अंग्रेजी प्रेम के लिए अपनी मात्र भाषा या राष्ट्र भाषा की उपेक्षा करने लगते हैं.यहाँ तक की अहिन्दी भाषियों द्वारा ही नहीं बल्कि हिंदी भाषियों द्वारा भी हिंदी को एवं हिंदी में वार्तालाप करने वालों को हिकारत की दृष्टि से देखते हैं ,उन्हें पिछड़ा हुआ या अशिक्षित समझते है.सभी सरकारी विभागों जैसे पुलिस विभाग,बैंक,बिजली दफ्तर,आर टी ओ इत्यादि में अंग्रेजी बोलने वाले को विशेष प्रमुखता दी जाती है,जबकि हिंदी में बात करने वाले को लो प्रोफाइल का मान कर उपेक्षित व्यव्हार किया जाता है.यह व्यव्हार हमारी गुलामी मानसिकता को दर्शाता है. जो अपने देश के साथ अन्याय है,अपनी राष्ट्र भाषा का अपमान है. क्या हिंदी भाषी व्यक्ति विद्वान् नहीं हो सकता? क्या सभी अंग्रेजी के जानकार बुद्धिमान होते हैं.?सिर्फ भाषा ज्ञान को किसी व्यक्ति की विद्वता का परिचायक नहीं माना जा सकता. अंग्रेजी का ज्ञान प्राप्त करना गलत नहीं है परन्तु हिंदी को नकारना शर्म की बात है.
अपने देश की भाषा हिंदी को राष्ट्र भाषा का स्थान देने से ,उसको अपनाने से सभी देशवासियों को आपस में व्यापार करना भ्रमण करना और रोजगार करना सहज हो जाता है साथ ही हिंदी भाषा का ज्ञान उन्हें भारतीय होने का गौरव प्रदान करता है और उनकी जीवनचर्या को सुविधाजनक बनाता है.यदि कोई भारतवासी अपने ही देश के नागरिक से संपर्क करने के लिए विदेशी भाषाओँ का सहारा लेता है,तो यह राष्ट्रिय अपमान है शर्म की बात है. अतः हिंदी में बोलने,लिखने समझने की योग्यता प्रत्येक भारतवासी के लिए गौरव की बात भी है.
आज भी हम अंग्रेजी को पढने और समझने को क्यों मजबूर हैं, इसका भी एक कारण है ,उसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है,मान लीजिये हम किसी बड़े कारोबारी,व्यापारी या दूकानदार से व्यव्हार करते है (जिसे हम एक विकसित देश की भांति मान सकते हैं)तो हम उसकी समस्त शर्तों को सहर्ष स्वीकार कर लेते है,जैसे उसके द्वारा लगाये गए समस्त सरकारी टेक्स,अतिरक्त चार्ज के तौर पर जोड़े गए पैकिंग,हैंडलिंग डिलीवरी चार्ज को स्वीकार कर लेते हैं,यहाँ तक की जब किसी बड़े रेस्टोरेंट का मालिक, ग्राहक को अपना सामान देने से पूर्व कीमत देकर टोकन लेने के लिए आग्रह करता है, तो हम टोकन लेने के लिए पंक्ति में लग जाते है,मेरे कहने का तात्पर्य है की हम उसकी समस्त शर्तो को मान लेते है,उसकी शर्तों पर ही उससे लेनदेन करते है,परन्तु जब हम किस छोटे कारोबारी या दुकानदार( अल्प विकसित या विकास शील देश की भांति) के पास जाते है तो वहां पर उसे हमारी सारी शर्ते माननी पड़ती हैं,अर्थात वह हमारी सुविधा के अनुसार व्यापार करने को मजबूर होता है.वहां पर हमारी शर्तें प्राथमिक हो जाती हैं.
इसी प्रकार जब हमारा देश पूर्ण विकसित हो जायेगा तो विदेशी व्यापारी स्वयं हमारी भाषा हिंदी में व्यापार करने को मजबूर होंगे।फिर सभी देश हमारी शर्तों पर हमसे व्यापार करने को मजबूर होंगे. हमें अंग्रेजी या अन्य विदेशी भाषा पढने की मजबूरी नहीं होगी। तत्पश्चात हिंदी भाषा सर्वमान्य ,राष्ट्रव्यापी भाषा बन जाएगी।प्रत्येक भारत वासी के लिए हिंदी का अध्ययन करना उसके लिए आजीविका का साधन होगा और उसके लिए गौरव का विषय होगा।परन्तु देश के विकसित होने तक हमें अपनी राष्ट्र भाषा हिंदी को अपनाना, सीखना, समझना होगा,उसे पूर्ण सम्मान देना होगा.तब ही हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाएंगे.