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गुरुवार, 27 अक्तूबर 2016

क्यों न मनाएं शालीनता से दिवाली?

  {मनोरंजन के  नाम पर भारी  आतिशबाजी कर अपनी गाढ़ी कमाई को नष्ट तो करते ही हैं, साथ ही अपने जीवन और स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ करते हैं. आतिश बाजी  से  होने वाली दुर्घटनाओं के कारण  ही हर दीवाली पर अनेक लोगों की आँखों की ज्योति हमेशा के लिए चली जाती है या आग की लपटों में जल कर भयंकर कष्ट झेलने को मजबूर हो जाते हैं.यदि आग ने विकराल रूप धारण कर लिया तो घर बार दुकान इत्यादि को भारी नुकसान उठाना पड़ता है.}

       धर्मों के उद्भव काल में इंसान के मनोरंजन के साधन सीमित होते थे। अतः धर्माधिकारियों ने इंसान को कार्य की निरंतरता और कार्य की एकरूपता की ऊब से मुक्ति दिलाकर प्रसन्नता के क्षण उपलब्ध कराये, ताकि मानव अपने समाज में सामूहिक रूप से परिजनों और मित्र गणों के साथ कुछ समय सुखद पलों के रूप में बिता सके। त्यौहारों, उत्सवों के रूप में मनाकर  मानव गतिविधि को एक तरफ तो अपने इष्टदेव की ओर आकृष्ट किया गया  (पूजा-अर्चना-नमाज,प्रेयर आदि) तो दूसरी ओर अनेक पकवानों का प्रावधान कर, मेल-जोल की परम्परा देकर मानव जीवन में उत्साह का संचार किया गया। जिसने आमजन में फिर से कार्य करने की क्षमता वृद्धि की और मानसिक प्रसन्नता से जीने की लालसा बढ़ी। अनेक धार्मिक मेलों का आयोजन कर बच्चों, बड़ों का विभिन्न क्रियाकलापों द्वारा मनोरंजन किया गया। पहले त्यौहार आने की खुशी मानव को सुखद अनुभूति कराती है तो बाद में त्यौहारों से जुड़ी यादें उसे कार्यकाल के दौरान भी उत्साहित करती रहती हैं। साथ ही अपने इष्ट देव से सम्बद्ध होने का अवसर भी मिलता है।
      विश्व में विद्यमान प्रत्येक धर्म में पर्व मनाये जाते हैं, जैसे हिन्दू धर्म में मुख्य रूप से दिवाली, होली, रक्षाबन्धन आदि, मुस्लिम धर्म में ईद-उल-फितर, ईद-उल-जुहा, ईसाई धर्म में मुख्यतः त्यौहार क्रिसमस, सिख धर्म में गुरु पूरब, लोहड़ी, बैसाखी इत्यादि इनके  अतिरिक्त हमारे देश में कुछ क्षेत्रीय त्यौहार भी मनाये जाते हैं जैसे महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी, बंगाल में दुर्गा पूजा, केरल में ओणम, तमिलनाडू में पोंगल,  असम में बीहू आदि त्यौहारों की लम्बी लिस्ट है. तात्पर्य यह है अलग-अलग देशों,अलग अलग क्षेत्रों  में, विद्यमान अलग-अलग धर्म एवं मान्यताओं के अनुसार,समय समय पर सदियो से विभिन्न त्यौहार मनाये जाते रहे हैं।
       हिन्दुओं के त्योहारों में दीपावली के त्यौहार का महत्त्व सर्वाधिक होता है,इस त्यौहार के माह को ही उत्सव माह माना जाता है.इस त्यौहार पर जनता का उत्साह अद्वितीय होता है, यही कारण है मात्र इस त्यौहार के कारण ही अनेक उद्योगों में अपने उत्पादन बढाने के लिए महीनों पूर्व तैय्यारी प्रारंभ कर दी जाती हैं. इस अवसर पर अनेक कंपनियां ग्राहकों को लुभाने के लिए नयी नयी स्कीम लाती हैं.इस त्यौहार पर प्रत्येक हिन्दू नागरिक अपनी क्षमता के अनुसार अपने घरों,दुकानों,वाणिज्य प्रतिष्ठानों को साफ़ सुथरा करता है,रंग रोगन कराता है और फिर सजाता है और नयी नयी वस्तुओं की खरीदारी कर अपने परिवार की खुशियों में वृद्धि करता है. यदि इस पर्व को शुचिता का पर्व कहा जाय तो गलत न होगा. सभी लोग अपने संगी साथियों परिजनों को उपहार  देकर उन्हें अपनी प्रसन्नता में शामिल करते हैं.व्यापारी अपने ग्राहकों को अनेक उपहार देकर अपने व्यापार को नयी ऊँचाइयाँ प्रदान करने का प्रयास करते हैं.
       दीपावली के दिन लक्ष्मी की पूजा के अतिरिक्त अनेक प्रकार के मिष्ठान एवं पकवानों का उपभोग कर पर्व का आनंद लिया जाता है, साथ ही अनेक प्रकार की आतिशबाजी कर मनोरंजन किया जाता है और रौशनी से पूरे घर को सजाया जाता है, जो प्रत्येक व्यक्ति के उत्साह को दोगुना कर देता है.यद्यपि आतिशबाजी अर्थात पटाखों का उपयोग करना वर्तमान परिस्थितियों में अप्रासंगिक है.जहाँ हम बढती आबादी घटते जंगलों और कारखानों,वाहनों  द्वारा किया जा रहे प्रदूषण से नित्य प्रति अनेक रोगों को आमंत्रित कर रहे हैं,और अनेक प्राकृतिक आपदाओं को झेल रहे हैं,ऐसे वातावरण में मनोरंजन के  नाम पर भारी  आतिशबाजी कर अपनी गाढ़ी कमाई को नष्ट तो करते ही हैं, साथ ही अपने जीवन और स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ करते हैं. आतिश बाजी  से  होने वाली दुर्घटनाओं के कारण  ही हर दीवाली पर अनेक लोगों की आँखों की ज्योति हमेशा के लिए चली जाती है या आग की लपटों में जल कर भयंकर कष्ट झेलने को मजबूर हो जाते हैं.यदि आग ने विकराल रूप धारण कर लिया तो घर बार दुकान इत्यादि को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. आतिशबाजी के कारण ही दीपावली के दिन इतना अधिक प्रदूषण हो जाता है की इन्सान के लिए साँस लेना भी दुष्कर हो जाता है,शोर शराबे से ध्वनी प्रदूषण अपनी सभी सीमायें पार कर लेता है. क्या ही अच्छा हो यदि हम इस ख़ुशी के अवसर पर,इस वर्ष अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए पटाखों के उपयोग पर लगाम लगायें, सीमित करें,एक निश्चित समय तक ही इनका आनंद लें, देर रात तक आतिशबाजी करना बच्चों, बूढों और रोगियों के लिए कष्टदायक हो जाता है. संयमित आतिशबाजी से बचे हुए धन को कही अधिक उपयोगी कार्यों पर लगायें या फिर किसी गरीब परिवार का भला करें,उसके घर को रोशन करें.उसके घर को दीवाली की खुशियों से भर दें. इस प्रकार से त्यौहार का आनंद और अधिक बढ़ जायेगा.इस त्यौहार पर एक और विसंगति है कुछ लोग इस पावन पर्व पर जुआ खेलने को महत्वपूर्ण मानते हैं,यह तो निश्चित है जुआ खेलने वाले सभी लोग जीत नहीं सकते. अतः जुआ खेलने वाले अनेक लोग दिवाली पर अपना दिवाला निश्चित कर लेते है और जीवन भर अभिशाप झेलते हैं.इसी प्रकार नशे की वस्तुओं का प्रयोग भी त्यौहार की गरिमा को कम करता है. ख़ुशी का त्यौहार सुखद यादें छोड़ कर जाए यही हमारा मकसद होना चाहिए अतः जुआ जैसी बुराई से दूर रह संभावित विनाश से बच सकते हैं. अतः त्यौहार की खुशिया मनाये,स्वयं सुरक्षित रहें अपने परिवार और समाज की सुरक्षा का भी ध्यान रखें,सीमा में रह कर किया गया खर्च आपको शेष माह को खुशहाल रखेगा.      
     आज के वातावरण में (उन्नतिशील समाज) जब अनेकों मनोरंजन के साधन विकसित हो चुके हैं, नये नये खान-पान मानव जीवन में जुड़ गये हैं। उनकी हर समय सुलभता बढ़ गयी है। सामूहिक भावना का अभाव हो गया है, मनुष्य आत्म केन्द्रित होता जा रहा है। अतः त्यौहारों का महत्व अप्रासंगिक होता जा रहा है। क्योंकि यदि आज आपके पास धन है तो रोज दीवाली मना सकते है पूरे वर्ष सभी वस्तुएं और सुवधाएँ उपलब्ध हैं.फिर कोई त्यौहार की प्रतीक्षा क्यों करे. वर्तमान में त्यौहारों में उत्साह में निरंतर हो रही कमी इस बात का प्रमाण है। अब त्यौहार मनाना प्रतीकात्मक अधिक होता जा रहा है.(SA-179C)

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