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रविवार, 3 मई 2015

क्या वर्तमान दौर में भी तनाव मुक्त जीवन जी पाना संभव है?


        
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वर्तमान भौतिकवादी युग में जहाँ हर स्तर पर गला काट प्रतिस्पर्द्धा हो रही 
है.प्रत्येक व्यक्ति कम से कम समय में अधिक से अधिक सुख सुविधाएँ जुटा  लेना चाहता है,समाज में अपने स्तर को निरंतर ऊंचाइयों पर देखना चाहता है,जो उसे दुनिया की चूहा दौड़ में शामिल होने को मजबूर करता है और इन्सान निरंतर तनाव का शिकार हो रहा है. स्वस्थ्य और सकारात्मक विचारों का स्थान ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, लालच, धोकाधडी, हिंसा जैसी दुर्भावनाओं ने ले लिया है जो स्वयं हमें सर्वाधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं,और समाज को छिन्न भिन्न करके रख दिया है. तनाव के कारण अनेक मानसिक रोगों के साथ साथ शरीरिक रोग भी अपना बसेरा डालते जा रहे हैं,जिनमे मुख्य तौर पर मधुमेह, केंसर, उच्च रक्तचाप, थाइरोइड जैसे गंभीर रोग  भी  शामिल हैं.  खान पान, जल वायु सभी कुछ प्रदूषित हो चुका है, रहन सहन में कृत्रिमता आ गयी है,जिसने अनेक प्रकार की शारीरिक व्याधियों को जन्म दिया है.हर समय तनाव में रहने के कारण मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा है.आज दुनिया में हर तीसरा व्यक्ति डिप्रेशन अर्थात अवसाद का शिकार हो चुका है.इसके अतिरिक्त भी शरीर में अनेक प्रकार की मानसिक बीमारियाँ बढती जा रही है.बढ़ते भौतिक वाद ने आम व्यक्ति को असुरक्षित कर दिया है उसे हर वक्त चिंता रहती है की आज जो काम वह कर रहा है उसका भविष्य क्या होगा?क्या यह कार्य उसे भविष्य में भी इतने ही साधन प्रदान करता रहेगा जो आज दे रहा है? कब उसका जीवन स्तर वर्तमान जीवन स्तर से नीचे आ जायेगा? यह प्रश्न भी तीन चौथाई लोगों के असंतोष का कारण बनता जा रहा है.नित्य समाज में अनेक प्रकार के संघर्ष को देखना पड़ता है.रिश्ते नातेदार भी एक दूसरे के लिए संवेदनहीन होते जा रहे हैं, हर तरफ षड्यंत्र की बू आने लगी है.सब एक दूसरे को नीचा दिखने तो तत्पर हो रहे हैं.अपनी उन्नति के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं.ऐसे वातावरण में कोई भी अपने मन को शांत कैसे रख सकता है.
     आज हम भौतिक सुख सुविधाएँ जुटा कर ख़ुशी ढूँढने का प्रयास करते हैं.क्या भौतिक वस्तुओं से प्राप्त ख़ुशी स्थायी होती है.सभी भौतिक वस्तुओं से हमें जो ख़ुशी प्राप्त होती है वह क्षणिक होती है.मेरा कहने का तात्पर्य है मान लीजिये आपने घर में नया टी वी लिया है जो बिलकुल नयी तकनिकी के अनुसार तैयार किया हुआ है निश्चित ही घर में ख़ुशी का माहौल बनेगा, या नयी कार खरीद लेते हैं तो अवश्य ही कुछ दिनों तक हमें अत्यंत ख़ुशी का अहसास होगा, तत्पश्चात यह ख़ुशी सामान्य व्यव्हार में आ जाएगी और हमारा उत्साह भी समाप्त हो जायेगा. इसी प्रकार से अन्य खुशियाँ भी समय के साथ विलुप्त हो जाती हैं.कभी कभी तो सारी खुशिया प्राप्त करके भी हमें बोरियत होने लगती है.यही वजह है सर्व साधन संपन्न व्यक्ति भी अवसाद का शिकार होते रहते हैं यदि भौतिक सुखो से ख़ुशी प्राप्त होती तो धनाड्य व्यक्ति कभी आत्महत्या नहीं करते और गरीब लोग कभी खुश नहीं रह पाते.गरीब लोग भी समय समय पर प्रसन्नता परिलक्षित करते हैं कुछ गरीब तो अपनी स्थिति से पूर्णतयः संतुष्ट देखे जा सकते हैं.इससे सिद्ध होता है विलासिता पूर्ण जीवन या भौतिक वस्तुएं ख़ुशी का स्थायी माध्यम नहीं हैं.असली ख़ुशी हमारे अंतर्मन में होती है, यदि हम अपने मन में सकारात्मक विचारों को पनपने का अवसर दे और निगेटिव विचारों को मन में न आने दें या मन में बैठे निगेटिव विचारों को निकल पायें, तो हम हर हाल में खुश रह सकते हैं और अपने सभी कार्य पूरी शक्ति से अधिक सक्षमता के साथ कर सकते हैं.
1,पराधीन ख़ुशी;-
             हमें लगता है जब हमारे परिजन अर्थात बेटा बेटी, माता पिता या भाई बहन खुश होंगे तो हम भी खुश हो जायेंगे.यानि की हमारी ख़ुशी परिवार के अन्य सदस्यों पर निर्भर हो जाती है. हम वही कार्य करने का प्रयास करते हैं जिससे हमारे प्रियजन खुश हो जाएँ,महिला बढ़िया भोजन इसलिए बनती है ताकि सब खुश होकर उसकी तारीफ करेंगे और वह खुश हो जाएगी,बच्चे इसलिए पढाई करते हैं जिससे उसके बड़े उनसे खुश रहे वे उन्हें डाटें नहीं. परिवार का मुखिया अधिक से अधिक धन एकत्र कर परिवार के लिए सुविधाएँ जुटाने का प्रयास करता ताकि परिवार के सभी सदस्य खुश रहें, तो वह भी खुश होगा.अर्थात हम जो कार्य करते हैं वह परिवार के सदस्यों को खुश देखने के लिए,कोई भी कार्य अपनी ख़ुशी के लिए नहीं करते यदि आपके कार्य से परिवार के लोग संतुष्ट नहीं होते तो आप भी दुखी हो जाते हैं और आपकी कार्य क्षमता घट जाती है,आपका उत्साह ठंडा हो जाता है
2, सुख और दुःख में तटस्थ जीवन,
                             अक्सर हम भौतिक सुख और दुखों से सुख और दुःख का अनुभव करते हैं.यदि कोई अपना परिजन या मित्र विपदा में होता है बीमार होता है तो हम अपना मानसिक संतुलन iखो बैठते हैं.अर्थात अत्यंत दुखी हो जाते हैं जो हमारे शरीर की ऊर्जा को नष्ट कर देता है हम कमजोर पड़ जाते हैं. कभीi कभी तो  इतनी हिम्मत भी नहीं रहती की उस बीमार या आपदा ग्रस्त व्यक्ति की आवश्यकता के अनुसार उसकी सहायता कर सकें, उसे उचित चिकित्सा दिला सकें.हमारा उसके प्रति लगाव तो उचित है परन्तु यदि हम स्वयं भी उसकी स्थिति तो देख कर विचलित हो जाते हैं, आत्म नियंत्रण खो बैठते हैं, तो हमारी मनः स्थिति उसके लिए हानिकारक हो सकती है. अतः दुखी होना स्वाभाविक है परन्तु अपने मन को विचलित कर देना हानिकारक हो सकता है.हमारे अन्दर ऊर्जा बनी रहेगी तो हम विपदा ग्रस्त मित्र या परिजन की सहायता कर पाएंगे और उसे स्वास्थ्य लाभ के अवसर आसानी से दे सकेंगे. अतः सुख और दुःख को अस्थायी मान कर मन को स्थिर रखने का प्रयास करना चाहिए, सुख में अत्यधिक खुश होना और दुःख में अपना मानसिक संतुलन खो देना या विचलित हो जाना स्वयं के लिए,परिवार के लिए और समाज के लिए भी हानिकारक है.किसी भी विपदा का सामना धैर्यता और साहस से ही किया जा सकता है और विपदा के समय साहस और धैर्यता जुटाने  लिए शरीर को शक्ति की आवश्यकता होती है.यह भी समझना आवश्यक  है की किसी भी विपदा से निकलने के लिए हम अपनी शक्ति से ही यथा संभव निकलने की चेष्टा कर सकते है.यदि परिस्थितियों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है तो उसके लिए परेशान  होने से कोई हित होने वाला नहीं है.शांत मन से ही समस्या का समाधान खोजा जा सकता है,मन को स्थिर रख कर ही हम परिस्थितियों पर नियंत्रण रखने का प्रयास कर सकते हैं, जिसके लिए शारीरिक और मानसिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है.
     उपरोक्त कथन का यही तात्पर्य है की हमें स्वास्थ्य एवं सुखी जीवन जीने के लिए आत्म नियंत्रण करना अत्यंत आवश्यक है.अपनी भावनाओं और आवेगों अर्थात क्रोध, इर्ष्या, द्वेष, साजिश, प्रतिद्वाद्विता इत्यादि पर विजय पानी होगी,ताकि हमारी कार्यक्षमता बनी रहे ,और तनाव ग्रस्त जीवन से मुक्ति मिल सके.


शनिवार, 25 अप्रैल 2015

क्यों न कृषि उत्पादन भी कॉर्पोरेट क्षेत्र के अंतर्गत किया जाय?

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     कृषि पेशा हमेशा से ही अनिश्चितता के वातावरण के साथ चलता रहा है समय समय पर अतिवृष्टि,अल्पवृष्टि आंधी तूफ़ान खेती के लिए चुनौती प्रस्तुत करते रहे हैं.जो किसान को भयानक अकाल का सामना करने को मजबूर करते रहे हैं.परन्तु वर्तमान समय में आधुनिक तकनिकी के होते हुए,आजादी के इतने लम्बे अरसे के बाद भी हमारे देश का किसान आत्महत्या करने को मजबूर होता है तो यह देश के लिए शर्म की बात है.यह संकेत है कि कही न कहीं हमारे देश के प्रबंधन, और नीतियों में दोष विद्यमान है.
      हमारा  देश एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ पर आज भी 65% लोगो की जीविका कृषि पर ही आधारित है,अतः देश की कृषि पर आयी आपत्ति देश की जनता के लिए विनाशकारक सिद्ध होती है. अधिकतर किसानो के पास छोटे छोटे खेत होने के कारण वे पर्याप्त आधुनिक कृषि उपकरण नहीं जुटा पाते और आवश्यकतानुसार मौसम की मार से बचाव के उपाय नहीं कर पाते हैं. इसी कारण आज भी हमारे देश में कृषि क्षेत्र मौसम की मेंहरबानी पर निर्भर है.मौसम में होने वाली थोड़ी सी भी अनियिमतता कृषि वयवस्था को पंगु बना देती है. इस वर्ष देश के उत्तरी क्षेत्रों में गत महीनों से हो रही  लगातार बरसात ने रबी की फसलों को बहुत बड़े पैमाने पर नुकसान पहुँचाया है. जिसके परिणाम स्वरूप देश के अनेक किसान आत्म हत्या करने को मजबूर हो रहे हैं,जबकि कुछ किसान अपने खेत की बर्बादी को देख कर होने वाली निराशा और हताशा के कारण दम तोड़ रहे हैं.जब एक छोटा किसान अपनी कमाई के एक मात्र सहारे को नष्ट होते हुए देखता है, वह उसके जीवन का सर्वाधिक ह्रदय विदारक समय होता है, यदि उस पर पहले ही कर्ज का बोझ है, तो आत्महत्या ही उसे एक मात्र रास्ता नजर आने लगता है.यद्यपि सरकारी स्तर पर किसानो के कष्टों को कम करने के प्रयास किये जाते हैंi,अब भी मुआवजा दिया जा रहा है और अब परन्तु सरकारी उपाय किसानों के कष्ट को मात्र मरहम ही साबित होते हैं,उसके नुकसान की भरपाई में सक्षम नहीं होते.परन्तु इस प्रकार से सरकार द्वारा की गयी भरपाई इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं है. समय समय पर होने वाले किसानों के आन्दोलन उनकी हताशा का प्रदर्शन है.क्या हमारा देश कभी किसान की इन समस्याओं से उभर पायेगा? क्या पर्यावरण में निरंतर आ रहे बदलावों के कारण होने वाले उपद्रवो का कोई सटीक उपाय निकाला जा सकता है? या फिर हमारे देश का किसान यूं ही लुटता पिटता और मरता रहेगा? हमारे देश में कृषि उद्योग को हर स्तर पर वरीयता दी गयी है.किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए बहुत सारे  उपाय भी किये जाते रहे हैं,जैसे कृषि से होने वाली आय को आय कर रहित किया गया है, उसे मुफ्त या रियायती दरों पर पानी बिजली उपलब्ध करायी जाती है,कृषि के लिए आवशयक खाद,और कीटनाशक रसायनों को सब्सिडी के साथ उपलब्ध कराया जाता है, उन्हें कृषि उपकरण खरीदने के लिए रियायती दरों पर कर्ज उपलब्ध कराये जाते हैं इत्यादि. फिर भी किसान अनिश्चित्तता की स्थिति से निकल पाने में अक्षम है.जिसका मुख्य कारण जो स्पष्ट तौर पर नजर आता है, वह है हमारे देश में किसान आज भी अशिक्षित है, उसे कृषि में हो रहे नए नए अनुसन्धान और आधुनिक कृषि उपकरण की जानकारी नहीं है,उसके पास खेती का रकबा बहुत छोटा है और निरंतर बटवारे के कारण उसका  क्षेत्रफल घटता जा रहा है,जिसके कारण वह आधुनिक कृषि उपकरणों को खरीदने में समर्थ नहीं हो पाता. आधुनिक शैली में खेती करने के लिए किसान के पास बड़े बड़े खेत होना आवश्यक है.(आज के दौर में अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए आधुनिक शैली अपनाना आवश्यक है) जो छोटे किसान के लिए संभव नहीं हो पाता. अतः वह मौसम के उतार चढाव का सामना नहीं कर पाता,जब कोई गंभीर अनियमितता मौसम में आती है, तो हमारे देश की कृषि व्यवस्था चरमरा जाती है.
       उपरोक्त सभी समस्याओं का एक निदान किया जा सकता है. यदि देश की जनता और सरकार एक क्रांतिकारी बदलाव लाने को सहमत हो सकें, तो शायद यह उपाय(निम्न लिखित) देश के कृषि उद्योग के लिए लाभकारी हो सकता है,और किसानों की दुर्दशा को रोका जा सकता है.

      कृषि उत्पादन को कॉर्पोरेट सेक्टर के अंतर्गत लाकर संगठित कर दिया जाय ताकि एक बड़े पैमाने पर सभी आवश्यक उपकरणों और तकनीकी ज्ञान के साथ कृषि पैदावार की जा सके. सभी स्थानीय किसानों की जमीनों को संगठित कर एक सिंडिकेट बनाया जाय, जो सरकार के नियंत्रण में कॉर्पोरेट सेक्टर द्वारा संचालित हो. जिसमें सभी किसानों की (जिनकी जमीने शामिल की गयी हैं) भागीदारी उनके जमीन के क्षेत्रफल के अनुरूप नियत की जाय, ताकि उसी अनुपात में उन्हें  कृषि से प्राप्त आय वितरित की जा सके.संस्थान में कार्यकर्ताओं की नियुक्ति  भागीदार किसानो में से ही प्राथमिकता और योग्यता के अनुसार सुनिश्चित हो.संस्थान को चलाने के लिए आवश्यक धन सरकार स्वयं उपलब्ध कराये और आवश्यकतानुसार कृषि विशेषज्ञों और प्रबंधकों की नियुक्ति करे. इस प्रकार से कृषि के लिए बहुत बड़ा रकबा एक जगह उपलब्ध हो सकेगा और मौसम की अनियमितताओं से जूझने में सुविधा होगी,उच्च तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकेगा,आधुनिकतम उपकरणों का उपयोग संभव हो सकेगा,नए नए अनुसन्धान भी किये जा सकेंगे, जिससे पैदावार की गुणवत्ता और मात्रा में iवृद्धि हो सकेगी.इस कदम से होने वाले अतिरिक्त लाभ निम्न हैं;
Ø  भागीदार किसानों को उनकी योग्यता अनुसार रोजगार भी मिल सकेगा, साथ ही पैदावार में हिस्सा नियमित रूप से मिलता रहेगा.
Ø  संस्थान को बड़े पैमाने पर खाद, बीज, कीटनाशक,कृषि उपकरण की खरीदारी होने के कारण सस्ते में उपलब्ध हो सकेगे.
Ø  बिजली पानी की व्यवस्था भी स्वतः के बलबूते पर नियमित रूप से उपलब्ध की जा सकेगी.
Ø  संस्थान द्वारा उत्पादित कृषि उत्पाद को पब्लिक ट्रांसपोर्ट या स्वयं के ट्रकों द्वारा पास और दूर दराज के इलाकों में जाकर उचित मूल्यों पर बेचा जा सकेगा.और यदि संभव हो और आवश्यक हो तो विदेशों को भी मॉल भेजा जा सकता है.
Ø  संस्थान द्वारा उत्पादित कृषि उत्पादों को करीब में इंडस्ट्री लगाकर और प्रसंस्करण कर मूल्यवान खाद्य पदार्थों में परिवर्तित किया जा सकता है,जिससे संस्थान को अतिरिक्त लाभ हो सकता है.
Ø  संस्थान द्वारा अन्य कृषि उत्पाद,या कृषि कार्य सम्बंधित उद्योग लगाया जा सकता है.
Ø  कृषि उत्पादों को संग्रह करने के लिए गोदाम या कोल्ड स्टोर की व्यवस्था के जा सकती है,और मार्किट में कीमत बढ़ने पर उन्हें बेचकर अतिरिक्त लाभ कमाया जा सकता है.
  इस प्रकार किसान की समस्याओं का निदान हमेशा के लिए हो सकेगा.किसान सुविधा संपन्न होगा देश को अधिक और गुणवत्ता सहित कृषि उत्पादन मिल सकेंगे.अधिक पैदावार होने पर iविदेशों को भी निर्यात किया जा सकेगा.देश समृद्धि की ओर बढ़ सकेगा.(SA-164C)   

                 

रविवार, 16 नवंबर 2014

देश के वरिष्ठ नागरिकों के लिए भी सोचें मोदी जी

       
अपने देश में करीब दस करोड़ ऐसे नागरिक हैं जो वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में आते हैं.   यह संख्या तेजी से बढ़ रही है. इस वर्ग के नागरिकों को अनुत्पादक नागरिक माना जाता है क्योंकि अधिकतर वरिष्ठ नागरिकों के स्वयं के आय स्रोत नहीं होते,इसलिए उनकी जिम्मेदारी परिवार या समाज उठाता है.आज सरकारी सेवाओं से निवृत सरकारी कर्मियों को सरकार पेंशन उपलब्ध कराकर उनके भविष्य को सुरक्षित कर चुकी है.परन्तु शेष वरिष्ठ नागरिकों के लिए सरकार की ओर से कोई आर्थिक सुरक्षा का प्रावधान नहीं है. 2010 में प्राप्त आंकड़ों के अनुसार लगभग 55%बुजुर्ग अपनी आर्थिक आवश्यकताओं के लिए अपनी संतान पर निर्भर हैं.जो उन्हें संतान पर बोझ बने रहने का अहसास कराता है. परन्तु यदि संतान लापरवाह और संवेदनहीन है तो स्थिति और भी भयावह हो जाती है.आज के बढ़ते भौतिक वाद के कारण भी बुढ़ापा एक समस्या बनता जा रहा है.यद्यपि हमारे देश की सरकार के लिए विकसित देशों की भांति सभी बुजुर्गो (विशाल संख्या)के भरण पोषण के लिए राजकोष से व्यवस्था कर पाना संभव नहीं है.परन्तु यदि हमारी सरकार कुछ छोटे कदम उठाकर बुजुर्गों को निम्न रूपों में सहायता दे सके तो शायद हमारे देश का बुढ़ापा, आर्थिक रूप से अधिक सुरक्षित हो सकेगा.
        अनेक  बुजुर्ग  ऐसे  भी  हैं  जिनकी  संतान  महत्वपूर्ण  पदों  पर  आसीन  है ,उद्योगपति  हैं ,व्यापारी  हैं और  आयकर  विभाग  को  टैक्स  के  रूप  में  भारी  भरकम  रकम  भी  चुकाते  हैं ,तथा  अपने  बुजुर्गों  को  जीवन  यापन  के  लिए अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए, अपने  आए  के  स्रोतों  से धन उपलब्ध  कराते  हैं,उनकी सभी आवश्यकताओं को पूर्ण करते हैं, या  उनके  बुजुर्ग  उन  पर  निर्भर  रहते  हुए  उनके  साथ  रहते  हैं . यदि उन्हें उनके द्वारा अदा किये जा रहे आयकर  में  इतनी  छूट  दी  जाये  जो  बुजुर्ग  के  भरण  पोषण  के  लिए  उसके  जीवन  स्तर  के  अनुसार  आवश्यक  हो ,.यह छूट उसके दवारा बुजुर्ग के खाते में स्थानांतरित रकम के अनुरूप प्रदान करने की व्यवस्था हो तो अवश्य ही हमारे देश के बुजुर्ग सम्माननीय जीवन जी सकेंगे और उन्हें संतान पर बोझ बन कर जीने का अहसास भी नहीं रहेगा.संतान के लिए भी उनका जीवन बोझ नहीं लगेगा क्योंकि उनके जीवन के कारण ही उन्हें उनके भरण पोषण के लिए आवश्यक राशि की आय कर में छूट मिल रही है.
     जैसा की हमारे देश में सभी वरिष्ठ नागरिकों को बेंकों में फिक्स डिपाजिट पर आधा प्रतिशत ब्याज अधिक दिया जाता है, जो बुजुर्गों के लिए विशेष लाभकारी सिद्ध नहीं होता.यदि यह अंतर दो प्रतिशत का दिया जाय तो अनेक बुजुर्गों का भरण पोषण अपेक्षाकृत आसान हो जाएगा.
     अनेक व्यापारी,या निजी कारोबारी भाई जो अपने अक्षम शरीर के कारण  व्यापार/कारोबार  चला पाने में अक्षम हैं,या वे अपने व्यापार/कारोबार  को अपनी संतान को स्थानातरित कर चुके हैं,अथवा किसी मजबूरी के कारण अपने व्यापार/कारोबार  को बंद कर चुके हैं.उन्हें भी सरकार भरण पोषण के लिए कोई योजना बनाये. जो उनके द्वारा अपने कार्यकाल में कुल जमा कराये सरकारी राजस्व के अनुपात में निश्चित की जाय तो इससे दो लाभ होंगे एक तो सरकार की बुजुर्गों के प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी हो सकेगी, दूसरी ओर एक आम व्यापारी या निजी कारोबारी सरकार द्वारा निर्धारित टेक्स को ईमानदारी से  अधिक से अधिक चुकाने में दिलचस्पी ले सकेगा जिसका लाभ सीधे तौर पर राजकोष पर पड़ेगा.
       प्रत्येक शहर में कम से कम एक वृद्ध आश्रम का सञ्चालन सुनिश्चित किया जाय,जो उक्त शहर के सभी इच्छुक वरिष्ठ नागरिकों को प्रवेश दे सके उनकी मूल आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके ताकि अकेले रहने को मजबूर या आर्थिक रूप से अक्षम वरिष्ठ नागरिक आश्रय प्राप्त कर सकें.प्रत्येक आश्रम का आर्थिक भार प्रदेश और केंद्र सरकार मिल कर वहन करें,परन्तु आश्रम का प्रबंधन निजी हाथों को सौंपा जाय.
      उपरोक्त कदम उठा कर सरकारी राजकोष पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा और कुछ वरिष्ठ नागरिकों का जीवन आसान हो जायेगा

     वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं पर आधारित पुस्तक “जीवन संध्या”  अब ऑनलाइन फ्री में उपलब्ध है.अतः सभी पाठकों से अनुरोध है www.jeevansandhya.wordpress.com पर विजिट करें और अपने मित्रों सम्बन्धियों बुजुर्गों को पढने के लिए प्रेरित करें और इस विषय पर अपने विचार एवं सुझाव भी भेजें.   


मेरा   इमेल पता है ----satyasheel129@gmail.com






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मंगलवार, 12 अगस्त 2014

व्यापारियों को अपने अधिकारों के लिए जागरूक होना होगा


      
आज के समय में एक व्यापारी आम तौर पर सर्वाधिक असुरक्षित एवं दयनीय जीवन जीता है. कुछ उच्च स्तरीय व्यापरियों को छोड़ कर सभी व्यापारी अनेक प्रकार के तनाव झेलते हुए अपनी जीविका चलाते हैं, अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. व्यापरी छोटा हो,व्यापारी बड़ा हो या व्यापारी थोक बिक्रेता हो अथवा उद्योग पति हो उसका व्यापारिक कार्य स्थल हमेशा खतरे में रहता है. उसे अपने दुकान या गोदाम में आगजनी, लूटमार,चोरी, या बलवा का खतरा हमेशा मंडराता रहता है, जिसके कारण उसका वर्षों की मेहनत से जमाया कारोबार कभी भी हाशिये पर आ सकता है,और उसकी जीवनभर कमाई  पूँजी नष्ट हो जाती है, जिसकी भरपाई उसके लिए असंभव ही हो जाती है, यदि किसी प्रकार से वह दोबारा अपने व्यापर को जमा भी लेता है तो इस अन्तराल(दोबारा व्यापार को पटरी पर लाने में) में हुए उसके व्यापार के घाटे की भरपाई नहीं कर सकता. और तो और अपहरण कर्ताओं के निशाने पर व्यापारी या उद्योगपति स्वयं या उसका परिवार ही होता है,जब वह अपने परिजन की जान बचाने के लिए जीवन भर की कमाई गुंडों की भेंट चढाने को मजबूर होता है.
   किसी भी देश की सरकार के खजाने की आमदनी  का मुख्य स्रोत, विशेषकर व्यापारी वर्ग ही होता है अर्थात देश या प्रदेश की सरकारें व्यापारी द्वारा दिए गए टेक्स के धन से चलती हैं.जब देश में सरकार विदेशी शासकों से चलती थी तो देश की जनता पर थोपा जाने वाला टेक्स उस देश की गुलामी का प्रतीक था और जनता की मजबूरी थी की वह शोषण का शिकार होती रहे और उसकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं था.परन्तु आजाद देश में अब सरकार जनता की है जनता द्वारा  चुनी गयी है,और सरकार का कर्तव्य है कि वह जनता के हित में ,जनता के कल्याण के लिए कार्य करे और अपने कार्यों को अंजाम देने के लिए जनता से आर्थिक सहयोग के तौर पर टेक्स के रूप में धन प्राप्त करे और देश का विकास करे,जनता की समस्याओं का समाधान करे उसके सुखद वर्तमान और सुखद भविष्य के लिए योजनायें बनाये और उनका कार्यान्वयन करे.
     परन्तु के व्यापारी  से वसूले जाने वाला टेक्स का छोटा सा हिस्सा भी  व्यापारी के हित में प्रयोग नहीं होता.व्यापारी यदि टेक्स bबचाता है तो वह कर अपवंचक या टेक्स चोर कह कर अपमानित किया जाता है, यदि व्यापारी इमानदारी से टेक्स भरता है तो उसे भ्रष्ट नौकरशाही जीने नहीं देती उसके कार्यों में अडचने पैदा करती है.एक महत्त्व पूर्ण पहलू यह भी यह आज व्यापारी की मानसिकता बनती जा रही है, की उसके द्वारा सरकार को टेक्स दिए जाने का अर्थ है,अपनी गाढ़ी कमाई से भ्रष्ट नेताओं की तिजोरियां भरना, न की देश के विकास में योगदान देना और अपना भविष्य सुरक्षित करना. यही अनेक ऐसे कारण व्यापारी को टेक्स भरने की इच्छा से विमुख करते हैं,क्योंकि इमानदारी से टेक्स भरने के बाद उसके बदले में उसे कोई लाभ प्राप्त होने की उम्मीद नहीं होती,बल्कि सरकारी स्टाफ द्वारा शोषण किये जाने की सम्भावना बढ़ जाती है.इस प्रकार उसे हर स्तर पर टेक्स भुगतान करने के लिए हतोत्साहित किया जाता है.यदि सरकार द्वारा कर दाता को सम्मान और सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाएँ तो सरकार के पास राजस्व अधिक पहुँचने की सम्भावना बढ़ जाएगीi .
   काफी लम्बे समय की आजादी के पश्चात् भी आज बहुत सारे कानून ब्रिटिश शासको द्वारा बनाये गए कानून के अनुसार ही क्रियान्वित हो रहे हैं,जिनमे गुलामी की भावना निहित है.देश की नौकरशाही आज भी स्वयं को शासक और जनता को शासित मानती है,जो उसकी कार्य प्रणाली से स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है. वे आज भी सामंतवादी युग से बाहर नहीं आ पा रहे हैं.यहाँ तक की नए कानूनों का फोर्मेट भी पुरानी शैली(ब्रिटिश शासन के समय की) पर आधारित होता है.सरकार की इस कार्य शैली का सबसे अधिक कुप्रभाव व्यापारी को झेलना पड़ रहा है.मजेदार बात तो यह है की व्यापारी भी अपने अधिकारों के लिए जागरूक नहीं है,वह इसे अपने जीवन की नियति मान कर संतुष्ट रहता है.उपरोक्त व्यापारिक खतरों की चपेट में आने के बाद बदतर स्थिति में जीने को मजबूर होता है.कोई उसके आंसू पोंछने वाला नसीब नहीं होता.और उसके कार्यक्षमता ख़त्म होने के पश्चात् भी परनिर्भरता उसकी मजबूरी बन जाती है.(यदि संतान संवेदन शील है तो अन्यथा.....).व्यापारियों की उदासीनता के कारण ही आज अनेक मजबूत व्यापरिक संगठन होते हुए भी व्यापारियों के मूल अधिकारों के लिए आवाज नहीं उठाते. कारण भी स्पष्ट है व्यापारी नेता अपनी नेता गिरी से अपना भविष्य सुरक्षित मानते हैं,वे स्वयं सभी स्वयं को सभी व्यापारिक खतरों से परे मानते हैं. अतः उन्हें आम व्यापारी की समस्याओं की चिंता करने से क्या फायदा. अतः अब प्रत्येक आम और खास व्यापरी को अपने अधिकारों के लिए जागरूक होना होगा और अपने संगठनों के नेताओं पर दबाब बनाना होगा, ताकि वे व्यापारी के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए आवाज बुलंद करें.और सरकार को व्यापारियों के कल्याण के लिए आवश्यक कानून बनाने को मजबूर कर सकें.

(लेखन के माध्यम से व्यापारी भाइयों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने का मेरा  प्रयास
 जारी रहेगा,सभी पाठको से अनुरोध है वे इस विषय पर अपने सुझाव ईमेल--satyasheel129@gmail.com द्वारा अवश्य भेजें ताकि मैं इसे एक आन्दोलन का रूप दे सकूँ)           

शुक्रवार, 23 मई 2014

परिपक्व जनादेश-क्षेत्रीय दल पस्त


      २०१४ के लोकसभा के आम चुनावो के परिणाम चौकाने वाले थे. शायद इतने  स्पष्ट जनादेश की कल्पना किसी ने भी नहीं की थी.यह तो सभी जानते, समझते थे की कांग्रेस के विरुद्ध ही जनादेश आयेगा,क्योंकि जिस प्रकार से गत दस वर्षों में कांग्रेस शासन के दौरान भ्रष्टाचार,घोटाले निरंतर खुल कर जनता के समक्ष आ रहे थे और महंगाई ,बेरोजगारी ,अव्यवस्था आतंकवाद जैसी समस्यों से जनता क्षुब्ध हो चुकी थी, और कांग्रेसी नेता घमंड में चूर हो कर जनता की भावनाओं के प्रति  लापरवाह हो गए थे, कांग्रेस की हार तो निश्चित थी.परन्तु प्रत्येक भारतवासी के मन में यही आशंका बनी हुई थी की क्या कांग्रेस का सशक्त विकल्प कोई बन पायेगा,या देश को एक और गठबन्धन सरकार झेलने को मजबूर होना पड़ेगा. आम जनता खंडित जनादेश की आशंका से त्रस्त थी, क्योंकि गठजोड़ से बनी सरकार हमेशा अस्थिर बनी रहती है.उसके घटक दल(क्षेत्रीय दल),अपने या अपने क्षेत्र के हितों को लेकर आये दिन सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी करते रहते हैं,उन्हें देश हित या जनहित की परवाह नहीं होती.अतःसरकार के लिए देश के व्यापक हित में निर्णय लेना मुश्किल हो जाता है और देश का विकास प्रभावित होता है.ऐसी गठबन्धन सरकारें अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए जूझती रहती हैं,जनहित के बारे में  सोचने के लिए इच्छा शक्ति के अभाव से पीड़ित रहती हैं.घटक दल से बने मंत्री अपनी मनमानी करते हैं घोटाले करते हैं.और सत्तारूढ़ दल उनके व्यव्हार पर अंकुश लगा पाने में असमर्थ रहता है.गत तीस वर्षों से देश को गठबन्धन सरकारें नसीब हो रही थीं,(१९८४ के चुनावो में राजीव गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला था) जिन्होंने देश को दिशा हीन और कमजोर नेतृत्व वाला देश बना दिया था,प्रत्येक प्रधान मंत्री आता और किसी प्रकार अपने कार्यकाल पूरा कर चला जाता ,उसकी रूचि  अपनी कुर्सी बनाये रखने में ही होती थी.   
     हमारे देश में राष्ट्रिय स्तर की पार्टियों की कमी रही है जो कांग्रेस को कड़ी टक्कर दे सकें.और सशक्त विकल्प बन सके.जबकि क्षेत्रीय पार्टियों की भरमार है,जो स्थानीय स्तर पर तो सफल हो सकती है परन्तु राष्ट्रिय स्तर पर सरकार बनाने के लिए पर्याप्त समर्थन नहीं जुटा  पाती,और परिणाम स्वरूप गठजोड़ वाली सरकारे बनती रहीं हैं.१०१४ के आम चुनावों में जनता ने अपनी परिपक्वता दिखाते हुए भारतीय जनता पार्टी को एक सशक्त राष्ट्रिय दल के रूप में कांग्रेस का विकल्प प्रस्तुत कर दिया है.अब कम से कम दो राष्ट्रिय दल देश को पूर्ण बहुमत प्राप्त कर अपने बल पर देश को स्थायी सरकार दे पाएंगे    
   आम भारतीय नागरिक के लिए जहाँ वर्तमान चुनाव परिणाम चौकाने वाले है ,वही देश और देश की जनता के भविष्य के लिए सुखद भी है. श्री नरेंद्र मोदी देश की जनता की आकाँक्षाओं को पूर्ण कर पाने में कितने सक्षम होंगे,सफल होंगे यह तो  भविष्य ही बताएगा. सबसे सुखद बात यह है की अब कांग्रेस का एक विकल्प तैयार हो गया है जो अपने दम पर सरकार बनाने की क्षमता रखता है.अब जनता की कोई मजबूरी नहीं होगी की, वह स्थायी सरकार के नाम पर कांग्रेस को ही चुने ,जबकि वह उसके कामकाज से संतुष्ट न हो. अब भविष्य में कभी कांग्रेस सत्ता में आती भी है तो उसके कामकाज में तानाशाही व्यव्हार नहीं पनप पायेगा.वर्तमान चुनावों में जनता द्वारा दिया गया स्पष्ट जनादेश इस बात का संकेत देता है की अब जनता परिपक्व निर्णय लेने की क्षमता विकसित कर चुकी,यदि पार्टी उसके हितों के अनुरूप कार्य नहीं करती है तो वह तुरंत अन्य दल को सत्तारूढ़ कर देगी, जिसके लिए भारत की जनता वह बधाई की पात्र है.शायद अब क्षेत्रीय दलों की प्रासंगिकता भी ख़त्म हो जाएगी.क्षेत्रीय दल अपने क्षेत्र,अपने राज्य  तक ही सीमित रह पाएंगे या फिर वहां भी उनका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है.अब यदि वे अपने प्रतिनिधि संसद में भेजने में सफल भी होते हैं, तो भी केंद्र सरकार  के कामकाज को प्रभावित नहीं कर पाएंगे.अब कोई भी क्षेत्रीय दल या राष्ट्रिय दल जाति आधारित,धर्म आधारित,क्षेत्रवाद या भाषा वाद की राजनीति कर जनता को गुमराह नहीं कर पायेगा.       

    आज देश का प्रत्येक नागरिक गौरव के साथ कह सकता है की, वह दुनिया के सर्वाधिक विशाल और सशक्त लोकतान्त्रिक देश का नागरिक है.और आज देश का भविष्य सुरक्षित और सुखद है.अब हमारे देश को विकसित देशों की श्रेणी में ले जाने से कोई नहीं रोक सकता.और शायद हमारा देश पूरे विश्व को निर्देशित करने की क्षमता विकसित कर लेगा.    

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

हिंदी के समर्थन के लिए अंग्रेजी की उपेक्षा घातक!


    हिंदी का उत्थान उसका  प्रचार प्रसार ,उसकी समृद्धि,उसकी लोकप्रियता सभी देश वासियों के लिए गौरव की बात है।विदेशों में हिंदी को सम्मान मिलना,उसको एक भारतीय भाषा के रूप में सम्मान मिलना प्रत्येक भारतवासी का सम्मान है।अतः प्रत्येक देशवासी का कर्तव्य है की वह अपनी राष्ट्र भाषा का सम्मान करे उसके प्रचार प्रसार में अपना योगदान दे,आपसी बातचीत में नित्य व्यव्हार में लाये।हिंदी साहित्य का अध्ययन करे और उसे समृद्ध करने में सहायक बने।हिंदी भाषा ही पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोकर वार्तालाप का सुलभ माध्यम बन सकती है, प्रत्येक देशवासी को अपनेपन का अहसास करा सकती है।
     सरकारी काम काज की भाषा हिंदी होने से  देश का प्रत्येक नागरिक,सरकारी कानून,सरकारी आदेश,सरकारी सन्देश,एवं समस्त सरकारी गतिविधियों का लेखा जोखा आसानी से समझ सकता है।उसे देश के कानूनों का पालन करने में आसानी होती है।देश का प्रत्येक नागरिक चुनावों में उचित एवं योग्य उम्मीदवार को वोट देकर देश के विकास में अपना सार्थक योगदान दे सकता है।अतः यह तो निश्चित  है,सर्वसाधारण द्वारा समझी जाने वाली भाषा ही देश के विकास में सहायक सिद्ध हो सकती है।समाज में शान्ति की स्थापना में सहायता मिल सकती है।किसी भी सरकार के लिए जनता से संपर्क बनाना और शासन व्यवस्था बनाये रखना आसान हो सकता है। 
    वर्तमान में हिंदी भाषी राज्यों में जनता दो वर्गों में विभाजित है,एक वर्ग बोलने में तो हिंदी का ही प्रयोग करता है परन्तु अपने कामकाज अंग्रेजी में करना अपनी शान समझता है,अपनी विद्वता की निशानी मानता है।उसके विचार से अंग्रेजी में कामकाज करना उसे आम व्यक्ति से ऊंचा करता है।इसलिए अंग्रेजी को छोड़ना नहीं चाहता,अंग्रेजी के पक्ष में अपनी आवाज को बुलंद करता है,वह हिंदी का समर्थन करने वालों को कम पढ़े लिखे या कम बुद्धिमान कह कर नकारता है।एक दूसरा वर्ग जो हिंदी समर्थक है अंग्रेजी को विदेशी भाषा बताकर उसका विरोध करता है,उसका हर संभव तिरस्कार भी करता है।शायद ये वो लोग हैं जो स्वयं को अंग्रेजी लिखने और पढने में असमर्थ पाते हैं।अतः अपनी अयोग्यता को ढकने के लिए यह वर्ग  अंग्रेजी का विरोध करता है।यह वर्ग हिंदी भाषी राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश,बिहार, राजस्थान,इत्यादि में मिलता है,और यह भी सर्व विदित है ये सभी राज्य अन्य राज्यों से पिछड़े हुए भी हैं।शायद अंग्रेजी से दुराव भी उनकी गरीबी या बेरोजगारी का एक कारण हो।दक्षिण भारत के विद्यार्थी अपनी स्थानीय भाषा के साथ साथ,अंग्रेजी और हिंदी पर भी अपनी पकड़ बनाते हैं और राष्ट्रिय प्रतिस्पर्द्धा में आगे बढ़ जाते हैं।  
    वैश्वीकरण के वर्तमान दौर में अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में अंग्रेजी भाषा का अपना महत्त्व बढ़ गया है,वैश्विक स्तर पर किसी  अन्य देश के व्यक्ति से संपर्क करने के लिए (व्यापार करते समय,विदेशों में कोई जॉब करते समय )वार्तालाप का माध्यम अंग्रेजी भाषा ही होती है जिसे लगभग सभी देश के पढ़े लिखे व्यक्ति समझते हैं बोलते हैं।अतः सिर्फ धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने वाला युवक बिना किस अन्य योग्यता के भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में जॉब पा लेता है,और अच्छी खासी जिंदगी जीने योग्य हो जाता है।अतः वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में अपने विकास के लिए अंग्रेजी को अपनाना अत्यंत आवश्यक हो गया है, इससे  ही हमारी अपनी और देश की उन्नति निर्भर है।हिंदी भाषा को अपनाते हुए उसे पूर्ण सम्मान देता हुए, अंग्रेजी पर अपनी पकड़ बनाना कोई अपनी संस्कृति का अपमान  नहीं है और न ही देश के सम्मान के साथ कोई खिलवाड़।
     यदि हमें अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए,अपने व्यवसाय को अंतर्राष्ट्रीय स्तर  पर स्थापित करने के लिए,अपने समाज और देश को विकास की ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए ,अंग्रेजी को सीखना और समझना आवश्यक है तो इसमें बुराई क्या है।हिंदी को समर्थन देने का अर्थ यही नहीं हो सकता की हम अंग्रेजी को एक विदेशी भाषा होने के कारण नकार दें।अंग्रेजी की उपेक्षा करना स्वयं अपने साथ अन्याय होगा।वर्तमान दौर में हमारा देश विकासोन्मुख है,हमें विश्व स्तर पर अपनी योग्यता,अपनी कार्यक्षमता एवं गुणवत्ता साबित करनी है,विश्व में हमें विकसित देश के तौर पर अपनी पहचान बनानी है।जब हम अपने देश को विकसित देशो की श्रेणी में खड़ा कर लेंगे,तो अन्य  देश वासियों को मजबूर कर सकेंगे की वे हमारी भाषा में हमसे व्यव्हार करें,जब हम अपनी शर्तों पर व्यापार कर सकेंगे। दुनिया हमारे सामने नत मस्तक होगी और हमारी भाषा को सीखने को मजबूर होगी। तब हम वास्तव में अंग्रेजी को नकार सकते हैं।अतः अभी अपने देश को अपने समाज को उन्नत बनाने के लिए अंग्रेजी का तिरस्कार करना आत्मघाती हो सकता है।  



 

गुरुवार, 2 जनवरी 2014

दिल्ली के मुख्य मंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल

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<!-- End BidVertiser code --> हमारे देश के इतिहास में पहली बार व्यवस्था परिवर्तन,भ्रष्टाचार,काला धन महंगाई जैसे मुद्दों को लेकर समाज सेवी श्री अन्ना हजारे के नेतृत्व में आन्दोलन करने के पश्चात् कोई पार्टी (आप पार्टी) अस्तित्व में आयी और दिल्ली विधानसभा के चुनावों में हिस्सा लिया, और मात्र चौदह महीने के जीवन में ही चुनावों में अप्रत्याशित जीत प्राप्त की. आप पार्टी ने अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली विधानसभा की सत्तर सीटों में अठाईस सीटों पर कब्ज़ा जमा कर पूरे देश को आश्चर्य चकित कर दिया,जिसका शायद स्वयं आप पार्टी को आभास भी नहीं होगा. देश की सभी सत्तासीन पार्टियों में खलबली मच गयी. जिससे स्पष्ट है की जनता वर्तमान सभी पार्टीयों से त्रस्त थी और उनके विकल्प की तलाश में थी. जो उनकी समस्याओं को सुलझा सके,देश में व्याप्त महंगाई ,भ्रष्टाचार,एवं अव्यवस्था से छुटकारा दिला सके. अन्ना जी के नेतृत्व में भ्रष्टाचार और अव्यवस्था के विरुद्ध चलाए गये आन्दोलन के दौरान मिले जनता के विशाल समर्थन से जनता में आक्रोश सर्वविदित हो गया था. और जनता की मंशा का आंकलन करते हुए श्री अरविन्द केजरीवाल ने आप पार्टी का गठन कर राजनीति में उतरने का निर्णय लिया.और प्रथम बार दिल्ली विधान सभा के लिए जी तोड़ महनत कर जनता को आश्वस्त किया की वे उनकी आकाँक्षाओं के अनुरूप विकल्प देने को तैयार हैं और जनता ने उन्हें चुनावों के माध्यम से विशाल समर्थन दिया. सभी भ्रष्ट राजनेताओं को एक सन्देश दे दिया की अब उनके दिन लदने वाले हैं.अब यदि जनता का नेतृत्व करना है तो भ्रष्ट आचरणों को त्यागना होगा.

विधानसभा में बहुमत प्राप्त करने के लिए,और सरकार बनाने के लिए छतीस विधायकों के समर्थन की आवश्यकता थी. अतः स्पष्ट बहुमत न मिलने के कारण केजरीवाल ने विपक्ष में अपनी भूमिका निभाते हुए जनता की सेवा करने का फैसला लिया.परन्तु भा.ज.पा के पास बत्तीस सीटें होते हुए भी सरकार बनाने में अपनी असमर्थता जाहिर की, वह भी आवश्यक बहुमत प्राप्त करने के लिए मात्र चार विधायक भी नहीं जुटा सकी. शायद उसे उम्मीद नहीं थी जोड़ तोड़ कर खरीदे गए विधायकों पर धन खर्च करना विपक्ष में आप पार्टी के रहते,बेकार जायेगा.और जनता के समक्ष भी गलत सन्देश जायेगा, जिसका खामियाजा उसे १०१४ के लोक सभा के आम चुनावों में भुगतना पड़ सकता है.अतः हमेशा सत्ता के लिए लड़ने वाली पार्टी ने सरकार बनाने में कोई रूचि नहीं ली और अपनी असमर्थता व्यक्त कर दी.और गेंद आप पार्टी के पाले में डाल दी.भारत के इतिहास में यह पहली बार देखा गया की बहुमत के इतना करीब आने के बाद भी किसी पार्टी ने सत्ता सँभालने में असमर्थता दिखाई. अतः सबसे बड़ी पार्टी के न करने के पश्चात् दूसरी सबसे बड़ी पार्टी यानि आप पार्टी की सरकार बनाने की जिम्मेदारी थी. परन्तु स्पष्ट बहुमत के अभाव में केजरीवाल सरकार बनाने के इच्छुक नहीं थे. क्योंकि वे अपनी सरकार बनाने के लिए किसी पार्टी से समर्थन न लेने की निती पर कायम थे.परन्तु इस बीच कांग्रेस ने अपना पासा फैंकते हुए,जनता की सहानुभूति पाने के लिए,आप पार्टी को सरकार बनाने के लिए बिना शर्त समर्थन देने की पेशकश कर दी. अब दोनों पार्टियाँ केजरीवाल को जिम्मेदारी से भागने का आरोप भी लगाने लगीं. उनका कहना था ‘जनता को ऐसे सपने दिखाए गए हैं जिन्हें आप पार्टी पूरा नहीं कर सकती अतः सत्ता में आने से कतरा रही है.आप पार्टी जनादेश का अपमान कर रही है और जनता को एक बार फिर चुनाव में घसीट कर जनता पर आर्थिक बोझ डालना चाहती है.
इस प्रकार से आप पार्टी को दोनों पार्टियों ने अपने षड्यंत्र में फंसा दिया.अब केजरीवाल के पास एक ही विकल्प बचा था की वे कांग्रेस से मिल रहे बिना शर्त समर्थन से अपनी सरकार बनायें या फिर अपनी जिम्मेदारी से भागने का आरोप झेलें और चुनावों का सामना करें.यद्यपि पार्टी मुखिया अरविन्द केजरीवाल भी दोबारा चुनाव कराकर स्पष्ट बहुमत पाने के पश्चात् सरकार बनाने के पक्ष में थे.अप्रत्याशित समर्थन देने वाली पार्टी कांग्रेस की बदनियत को भांपते हुए उन्होंने कांग्रेस को अपने कार्यक्रम की अट्ठारह सूत्री लिस्ट भेजी, जिन कार्यक्रमों को उसे समर्थन देना होगा.जब कांग्रेस की ओर से सकारात्मक संकेत मिले तो उसने जनता से जनमत संग्रह कर जनता की राय मांगी,क्या उन्हें सरकार बनानी चाहिए. जब जनता की ओर से पर्याप्त समर्थन मिल गया तो वे अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए जनता की आकाँक्षाओं को पूरा करने के लिए सरकार बनाने को तैयार हुए. केजरीवाल जी जानते हैं की कांग्रेस पार्टी कभी भी अपना समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा सकती है,परन्तु कांग्रेस पार्टी कानूनी बाध्यता के चलते एक बार समर्थन देने के पश्चात् छः माह से पहले समर्थन वापिस नहीं ले सकती. अतः श्री केजरीवाल के लिए परीक्षा की घडी है की वे मात्र छः माह में या इससे पूर्व ही जनता की उम्मीदों को पूरा करने का प्रयास करें.लोकसभा के होने वाले २०१४ के आम चुनावों में जनता का दिल जीतने के लिए अपनी नयी राजनीती का उदाहरण भी प्रस्तुत करना होगा.
उपरोक्त घटना क्रम से स्पष्ट है की आप पार्टी सत्ता की लालची नहीं है बल्कि वह यह आरोप भी नहीं झेलना चाहती की पार्टी अपने वायदे पूरे करने से बच रही है.अर्थात उसने अव्यवहारिक वायदे कर चुनाव जीता है. इन्ही परिस्थितियों को देखते हुए उसने सरकार बनाने का मन बनाया. विरोधी मानसिकता के लोग तो उनके प्रत्येक कदम का विरोध ही करेंगे,और अरविन्द केजरीवाल को मौका परस्त साबित करने का प्रयास करेंगे. परन्तु आप पार्टी ने सिर्फ जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार बनाने का कदम उठाया है,न की अपनी या अपनी पार्टी की महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए.अब क्योंकि जनता की राय लेकर केजरीवाल ने सरकार बनाने का निर्णय लिया है.और यह भी सर्व विदित है की केजरीवाल ने किसी पार्टी से समर्थन नहीं माँगा या पाने का प्रयास किया. अतः जनता में सत्ता के लालची होने का सन्देश जाने का कोई कारण नहीं रह गया है. उन्होंने हालातो के अनुसार जो भी कदम उठाया है वह पूर्णतया उचित है. पार्टी या श्री अरविन्द केजरीवाल का स्वार्थ कहीं भी सिद्ध नहीं होता,परन्तु जिसे इस पूरे घटनाक्रम को अपने अतार्किक चश्मे से देखना है तो उसके लिए कुछ भी ठीक नहीं हो सकता
    .किसी भी न्याय प्रिय,ईमानदार नागरिक को श्री केजरीवाल का हौसला बढ़ने के प्रयास करने चाहिए और आशा करनी चाहिए, की आप पार्टी अपने मकसद में कामयाब हो और देश का कल्याण करे.

शनिवार, 12 अक्टूबर 2013

उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ता हमारा देश

 
पिछले कुछ समय से घटित देश की राजनैतिक गतिविधियों को देखें तो लगता है हमारा  देश उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ने लगा है.देश में  नित्य बढ़ रही अराजकता ,अत्याचार ,अनाचार ,हिंसा,विषमता को लगाम लगने की आशा जगी है.         जानते हैं कैसे;--
  १, गुजरात के मुख्य मंत्री  नरेन्द्र मोदी को अपनी पार्टी भारतीय जनता पार्टी की और से भावी प्रधान मंत्री का उम्मीदवार घोषित किया गया है.यहाँ पर यह बताना उचित होगा की मोदी को बी. जे. पी. का उम्मीदवार घोषित किया गया यह महत्वपूर्ण नहीं है ,महत्त्व पूर्ण है बहुत समय पश्चात् राष्ट्र पटल पर एक ऐसा नेता उभर कर आया है जिसके  पास देश के विकास के लिए अपनी सोच है.उसके अन्दर देश को विक्सित करने की इच्छा शक्ति  है,उसके पास अनेक उत्साहवर्द्धक योजनायें हैं,और उन योजनाओं को कार्यरूप देने की क्षमता भी है,अतः यदि आज का निराश मतदाता उस पर विश्वास करके उसे जिताता है और देश के सुखद भविष्य के सपने देखता है कुछ भी गलत न होगा।
२,अन्ना हजारे जैसे क्रांतिकारी नेताओं के प्रयास से देश को सूचना का अधिकार प्राप्त हुआ(RTI) ,जिस कानून के कारण सरकार  और नौकर शाही के काले कारनामे जनता के समक्ष आ सके,सत्तारूढ़ नेताओं की कार्यशैली का भंडाफोड़ हुआ.जनता की गाढ़ी कमाई से प्राप्त टैक्स की बर्बादी जनता के सामने आ सकी.
३,सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश के अंतर्गत फैसला  दिया की जो भी व्यक्ति किसी भी अदालत द्वारा दोषी ठहराया जाता है और उसे दो वर्ष या उससे अधिक सजा दी जाती है,तो वह जनप्रतिनिधि के पद से वंचित हो जायेगा,और सजा काटने के उपरांत अगले छः वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकेगा। 
४,हमारे नेताओं ने तुरंत सुप्रीम कोर्ट के आदेश को प्रभावहीन करने के लिए अध्यादेश तैयार कर लागू करने का प्रस्ताव किया, जो जनता के सर्वव्यापी विरोध के कारण,और माननीय राष्ट्रपति महोदय की सक्रियता के कारण, सरकार को वापस लेना पड़ा,जिसे जनता की बहुत बड़ी जीत के रूप में देखा जा सकता है. और सभी पार्टियों को उस अध्यादेश का विरोध करने का उपक्रम करना पड़ा.इस अध्यादेश के रद्द हो जाने से सभी पार्टियों को दागी नेताओं को चुनाव लडाने से बचना होगा, जो देश के विकास के  लिए सकारात्मक उपलब्धि सिद्ध होगा 
      यदि देश के नेता अपराधी नहीं होगे, स्वच्छ छवि वाले, मेधावी और राष्ट्रभक्त होंगे,देश की सेवा की भावना से ओत  प्रोत होगे तो,वे अपनी तिजोरी भरने की कम देश की और देश की जनता के भलाई के  लिए अधिक  सोच पाएंगे,सार्थक योजनायें बनायेंगे, जिससे देश का विकास निश्चित है। कानून व्यवस्था सुधरेगी,भ्रष्टाचार को लगाम लग सकेगी, जो जनता के लिए राहत कारी होगा,कल्याणकारी  होगा,देश का भविष्य उज्जवल बन सकेगा।     
​ 
 
 
 

  सत्य शील अग्रवाल 
  

गुरुवार, 19 सितंबर 2013

हिंदी के समर्थन के लिए अंग्रेजी की उपेक्षा घातक!

हिंदी के समर्थन के लिए अंग्रेजी की उपेक्षा घातक!
    हिंदी का उत्थान उसका  प्रचार प्रसार ,उसकी समृद्धि,उसकी लोकप्रियता सभी देश वासियों के लिए गौरव की बात है।विदेशों में हिंदी को सम्मान मिलना,उसको एक भारतीय भाषा के रूप में सम्मान मिलना प्रत्येक भारतवासी का सम्मान है।अतः प्रत्येक देशवासी का कर्तव्य है की वह अपनी राष्ट्र भाषा का सम्मान करे उसके प्रचार प्रसार में अपना योगदान दे,आपसी बातचीत में नित्य व्यव्हार में लाये।हिंदी साहित्य का अध्ययन करे और उसे समृद्ध करने में सहायक बने।हिंदी भाषा ही पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोकर वार्तालाप का सुलभ माध्यम बन सकती है, प्रत्येक देशवासी को अपनेपन का अहसास करा सकती है।
     सरकारी काम काज की भाषा हिंदी होने से  देश का प्रत्येक नागरिक,सरकारी कानून,सरकारी आदेश,सरकारी सन्देश,एवं समस्त सरकारी गतिविधियों का लेखा जोखा आसानी से समझ सकता है।उसे देश के कानूनों का पालन करने में आसानी होती है।देश का प्रत्येक नागरिक चुनावों में उचित एवं योग्य उम्मीदवार को वोट देकर देश के विकास में अपना सार्थक योगदान दे सकता है।अतः यह तो निश्चित  है,सर्वसाधारण द्वारा समझी जाने वाली भाषा ही देश के विकास में सहायक सिद्ध हो सकती है।समाज में शान्ति की स्थापना में सहायता मिल सकती है।किसी भी सरकार के लिए जनता से संपर्क बनाना और शासन व्यवस्था बनाये रखना आसान हो सकता है। 
    वर्तमान में हिंदी भाषी राज्यों में जनता दो वर्गों में विभाजित है,एक वर्ग बोलने में तो हिंदी का ही प्रयोग करता है परन्तु अपने कामकाज अंग्रेजी में करना अपनी शान समझता है,अपनी विद्वता की निशानी मानता है।उसके विचार से अंग्रेजी में कामकाज करना उसे आम व्यक्ति से ऊंचा करता है।इसलिए अंग्रेजी को छोड़ना नहीं चाहता,अंग्रेजी के पक्ष में अपनी आवाज को बुलंद करता है,वह हिंदी का समर्थन करने वालों को कम पढ़े लिखे या कम बुद्धिमान कह कर नकारता है।एक दूसरा वर्ग जो हिंदी समर्थक है अंग्रेजी को विदेशी भाषा बताकर उसका विरोध करता है,उसका हर संभव तिरस्कार भी करता है।शायद ये वो लोग हैं जो स्वयं को अंग्रेजी लिखने और पढने में असमर्थ पाते हैं।अतः अपनी अयोग्यता को ढकने के लिए यह वर्ग  अंग्रेजी का विरोध करता है।यह वर्ग हिंदी भाषी राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश,बिहार, राजस्थान,इत्यादि में मिलता है,और यह भी सर्व विदित है ये सभी राज्य अन्य राज्यों से पिछड़े हुए भी हैं।शायद अंग्रेजी से दुराव भी उनकी गरीबी या बेरोजगारी का एक कारण हो।दक्षिण भारत के विद्यार्थी अपनी स्थानीय भाषा के साथ साथ,अंग्रेजी और हिंदी पर भी अपनी पकड़ बनाते हैं और राष्ट्रिय प्रतिस्पर्द्धा में आगे बढ़ जाते हैं।  
    वैश्वीकरण के वर्तमान दौर में अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में अंग्रेजी भाषा का अपना महत्त्व बढ़ गया है,वैश्विक स्तर पर किसी  अन्य देश के व्यक्ति से संपर्क करने के लिए (व्यापार करते समय,विदेशों में कोई जॉब करते समय )वार्तालाप का माध्यम अंग्रेजी भाषा ही होती है जिसे लगभग सभी देश के पढ़े लिखे व्यक्ति समझते हैं बोलते हैं।अतः सिर्फ धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने वाला युवक बिना किस अन्य योग्यता के भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में जॉब पा लेता है,और अच्छी खासी जिंदगी जीने योग्य हो जाता है।अतः वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में अपने विकास के लिए अंग्रेजी को अपनाना अत्यंत आवश्यक हो गया है, इससे  ही हमारी अपनी और देश की उन्नति निर्भर है।हिंदी भाषा को अपनाते हुए उसे पूर्ण सम्मान देता हुए, अंग्रेजी पर अपनी पकड़ बनाना कोई अपनी संस्कृति का अपमान  नहीं है और न ही देश के सम्मान के साथ कोई खिलवाड़।
     यदि हमें अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए,अपने व्यवसाय को अंतर्राष्ट्रीय स्तर  पर स्थापित करने के लिए,अपने समाज और देश को विकास की ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए ,अंग्रेजी को सीखना और समझना आवश्यक है तो इसमें बुराई क्या है।हिंदी को समर्थन देने का अर्थ यही नहीं हो सकता की हम अंग्रेजी को एक विदेशी भाषा होने के कारण नकार दें।अंग्रेजी की उपेक्षा करना स्वयं अपने साथ अन्याय होगा।वर्तमान दौर में हमारा देश विकासोन्मुख है,हमें विश्व स्तर पर अपनी योग्यता,अपनी कार्यक्षमता एवं गुणवत्ता साबित करनी है,विश्व में हमें विकसित देश के तौर पर अपनी पहचान बनानी है।जब हम अपने देश को विकसित देशो की श्रेणी में खड़ा कर लेंगे,तो अन्य  देश वासियों को मजबूर कर सकेंगे की वे हमारी भाषा में हमसे व्यव्हार करें,जब हम अपनी शर्तों पर व्यापार कर सकेंगे। दुनिया हमारे सामने नत मस्तक होगी और हमारी भाषा को सीखने को मजबूर होगी। तब हम वास्तव में अंग्रेजी को नकार सकते हैं।अतः अभी अपने देश को अपने समाज को उन्नत बनाने के लिए अंग्रेजी का तिरस्कार करना आत्मघाती हो सकता है। 

-    सत्य शील अग्रवाल,  532/6, शास्त्री नगर मेरठ