Powered By Blogger

मंगलवार, 12 मई 2015

क्रोध और अभिमान

            
<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>
<!-- s.s.agrawal -->
<ins class="adsbygoogle"
     style="display:block"
     data-ad-client="ca-pub-1156871373620726"
     data-ad-slot="2252193298"
     data-ad-format="auto"></ins>
<script>
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
</script>
 दुनिया कोई व्यक्ति ऐसा नहीं हो सकता जिसे कभी भी क्रोध न आता हो. क्रोध इन्सान की एक भावावेश अभिव्यक्ति है, हँसना, रोना, क्रोध करना, इन्सान की मनोस्थिति का परिणाम है. क्रोध का भाव आने के भी अनेक कारण हो सकते हैं, जैसे शारीरिक व्याधियां,मानसिक व्याधियां,या प्रतिकूल अथवा विषम परिस्थितियां इत्यादि. आधुनिक भौतिकवादी युग में इन्सान जहाँ दिन रात भागदौड में लगा रहता है,अनेक प्रतिस्पर्द्धाओं का सामना करता है,अनेक बार तनाव का शिकार होता है,जो अक्सर उसके क्रोध के रूप में परिलक्षित होता है और इस प्रकार से आने वाले क्रोध को परिस्थितिजन्य क्रोध की संज्ञा दी जा सकती है.इसी प्रकार शरीरिक या मानसिक रोगों से त्रस्त व्यक्ति भी अनेक बार क्रोध का शिकार होता है.इन स्थितियों में आने वाले क्रोध को मानव की स्वाभाविक क्रिया माना जा सकता है, जिसमें मानव अपने आप को नियंत्रित नहीं कर पाता. 
              एक क्रोध बनावटी भी होता है जो सामने वाले को अपमानित करने के लिए किया जाता है, इस क्रोध के पीछे अनेक कुटिल इरादे छिपे होते हैं, जैसे सामने वाले को लज्जित करना, अपने गुनाह को छुपाने के इरादे से हावी होना, सामने वाले को स्वतंत्रता पूर्वक अपने विचारों को अभिव्यक्त करने से रोकना, अपने अधीनस्थ को नियंत्रित करने के लिए रौब मारना, या गुंडा गर्दी का मकसद हल करने के लिए सामने वाले को भय भीत करने के लिए नाटक करना. इस प्रकार से क्रोध को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.और इस प्रकार से किये गए क्रोध में व्यक्ति के पद, धन दौलत, बुद्धि मत्ता ,शारीरिक या सामाजिक ताकत का अभिमान झलकता है. ऐसे व्यक्ति को अभिमानी कहना अनुचित न होगा. पद,प्रतिष्ठा,दौलत,बुद्धिमत्ता,सामाजिक या शारीरिक ताकत का एक नशा होता है जिसे प्रत्येक व्यक्ति सम्हाल नहीं पाता और वह अपनी योग्यता या सामर्थ्य के जोश में होश खो बैठता है.अक्सर वह जमीनी हकीकत को झुठला देता है और वह असफल,निर्धन,अल्पशिक्षित व्यक्ति को हेय दृष्टि से देखता है. ऐसा व्यक्ति अपनी सफलता, अपनी दौलत या सामाजिक रुतबे को सिर्फ अपने परिश्रम का परिणाम मानता है.यह बात तो कटु सत्य है की बिना परिश्रम ,बिना लगन के कोई भी सफलता मिलना असंभव है,पर बहुत लोग ऐसे भी होते हैं जिन्होंने अथाह परिश्रम किया होता है, परन्तु नसीब ने उनका साथ नहीं दिया और वह यथा योग्य सफलता प्राप्त नहीं कर सका या असफल हो जाता है जबकि उनकी योग्यता किसी भी सफल व्यक्ति से कम नहीं होती.अतः किसी भी व्यक्ति की योग्यता को कम आंकना सदैव उचित नहीं होता.प्रत्येक व्यक्ति को अपने आत्मसम्मान की चाह होती है अपमानित होना किसी को भी स्वीकार्य नहीं होता.वैसे भी किसी भी महनत काश इन्सान को जो इमानदारी से पाने कर्तव्यों को निर्वहन करता है सम्मान का पात्र है.छोटे पद पर होना कम धनवान होना या निर्धन होना उसके अपमान का कारण नहीं होना चाहिए.अपमान का पात्र वो है जिसने अनैतिक तरीके से धन अर्जन किया है,धिक्कार का पात्र वह है जो गैर कानूनी कार्यों को अंजाम देता है,दौलत कमाने के लिए हिंसा,शोषण,अपराध धोखा धडी जैसे हथियारों का इस्तेमाल करता है.
            इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी व्यक्ति हैं जिन्हें शोहरत या दौलत पैत्रिक संपत्ति के रूप में प्राप्त हो गयी हो उनके लिए धन अर्जन का कोई महत्त्व नहीं होता, ऐसे लोगों के लिए किसी भी कम धनवान गरीब या अपेक्षतया कम स्तरीय कार्यों में लिप्त व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं होता.इस प्रकार के व्यक्ति अक्सर घमंडी होते हैं और हर व्यक्ति का अपमान करना उन पर क्रोध करना इनकी फितरत में शामिल होता है. 
           यदि प्रत्येक व्यक्ति यह सोच कर की यह जीवन,यह धन दौलत या प्रतिष्ठा कुछ भी स्थायी नहीं है,सब कुछ क्षण भंगुर है तो उसका किसी का भी अपमान करना उस पर क्रोध करना,किसी का दिल दुखाना उसके लिए उचित नहीं है,तो यह दुनिया अनेक कष्टों से मुक्त हो सकती है.हमें अपनी सफलता को अपना सौभाग्य समझना चाहिए न की किसी अन्य का दुर्भाग्य.सबका सम्मान करना ही उसका बड़प्पन है,अपने से किसी का हित साधन करना ही सफलता का द्योतक है.कोई भी असफल व्यक्ति या गरीब व्यक्ति पहले से ही अभिशप्त है उसका अपमान,या निरादर क्यों?

शनिवार, 9 मई 2015

साइबर क्राईम समाज को दीमक की भांति चाट रहे हैं


    गत दो दशक से सोशल साइट्स नित्य समाज में अपनी बढ़त करती जा रही हैं. परिणाम स्वरूप आज का युवा अपना बहुत बड़ा समय इस साइट्स पर ही बिताने लगा है.उसकी दिनचर्या का मुख्य हिस्सा बनता जा रहा है.इन सोशल साइट्स से अनेक प्रकार के लाभ हैं, आज हम हजारों किलो मीटर दूर बैठे अपने मित्र या रिश्तेदार से बात कर सकते हैं अपने सन्देश,समाचार उन्हें भेज सकते हैं. अनेक जानकारियों का आदान प्रदान इनके माध्यम से संभव हो सका है. अपने कारोबार भी इनके सहायता से आसान हो गए हैं.हम अपने चहेते कलाकार,नेता,या मनपसंद दुनिया के किसी व्यक्ति से सीधे संपर्क बना सकते हैं उनके बारे में जान सकते हैं उन्हें समझ सकते हैं. परन्तु जहाँ इसके अनेक लाभ हैं तो इसके अनेक प्रकार से नुकसान भी नजर आने लगे हैं.अनेक शातिर लोग इन साइट्स का दुरूपयोग भी कर रहे हैं और समाज को जाने अनजाने चूना लगा रहे हैं. अनेक बार तो पीड़ित व्यक्ति को भारी हानि हो जाने के पश्चात् आभास हो पाता है, की उसके साथ किसी ने धोकेबाजी की है.
    जनता को जागरूक करने के लिए चीटर लोगों द्वारा अपनाये जा रहे कुछ हथकंडे नीचे  प्रस्तुत किये जा रहे हैं;
<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>
<!-- s.s.agrawal -->
<ins class="adsbygoogle"
     style="display:block"
     data-ad-client="ca-pub-1156871373620726"
     data-ad-slot="2252193298"
     data-ad-format="auto"></ins>
<script>
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
</script>


1.    







1,कुछ लोग अपनी जालसाजी को अंजाम देने के लिए एक फर्म बनाते हैं, जिसे सर्वे करने वाली फर्म घोषित करते हैं. और सर्वे का जबाब देने अर्थात सर्वे को भरने के लिए कुछ धन भुगतान करने की तथाकथित व्यवस्था करते है.इस प्रकार से अपने विज्ञापन पढने वालों की संख्या बढाई जाती है और कमाई में बढ़त की जाती.और बाद में भुगतान के नाम पर टाल मटोल की जाती है. और अंतराल के बाद फर्म ही बंद कर दी जाती है.इस प्रकार लालच के वशीभूत हो कर आम व्यक्ति अपना अमूल्य समय साइट्स पर नष्ट करता है और नतीजा कुछ नहीं मिलता, इंटरनेट का खर्च भी बढ़ा लेता है.कभी कभी तो सर्वे से जुड़ने के लिए (सर्वे के सदस्य बनने के लिए) एक निश्चित राशी भी वसूल की जाती है, और विज्ञापन पढने के बदले में धन देने का झांसा भी दिया जाता है,तथा कथित अर्जित धन एकत्र हो जाने पर भी अनेक व्यवधान बता कर आपके द्वारा अर्जित राशी को देने में बहानेबाजी करते है और आप अपने को ठगा महसूस करते हैं.  
2.    अनेक बार आपको मेल द्वारा सूचित किया जाता है की आपकी लोटरी निकली है,और आप एक मोटी राशि (लाखों पोंड,या लाखों डॉलर,या करोडो रूपए) के मालिक बन सकते हैं,उसके लिए आपको उन्हें अपना पता, मोबाइल नंबर, बैंक खाता संख्या इत्यादि जानकारियां  भर कर भेजनी होती हैं .इस प्रकार से आपको लोटरी का लालच देकर आपसे आपके खाते की जानकारियां प्राप्त कर ली जाती है और आपके खाते पर खतरा छा जाता है.आपके बेंक खाते से उसमें जमा धन राशि हेक कर ली जाती है और आपको पता भी नहीं चलता की यह सब कैसे हो गया.
3.    घर बैठे कमाओ योजना,वर्तमान समय में अनेक युवा,एवं बुजुर्ग बेरोजगार हैं जो चाहते हैं घर बैठे उनके लिए कोई कमाई का जरिया बन जाय,विशेष रूप से इंटरनेट और सोशल साईट में रूचि रखने वाले इस माध्यम को अपनी आमदनी का स्रोत बनाना चाहते हैं.कुछ शातिर लोग जनता की इन्ही मजबूरियों या आवश्यकताओं का लाभ उठाते हैं,और घर बैठे मोटी कमाई की योजना जनता के समक्ष रखते हैं, इच्छुक एवं जरूरतमंद लोग इनके बहकावे में फंसते है, परन्तु कुछ धन और विपुल समय गंवाने के अतिरिक्त कुछ प्राप्त नहीं हो पाता.कुछ विज्ञापन में तो स्पष्ट रूप से बताया जाता है की घर बैठे कमाने के लिए आवश्यक ट्रेनिंग किट के लिए आपको  तीन हजार या पांच हजार देने होंगे और तत्पश्चात उन्हें घर बैठे तीन से पांच हजार रूपए रोज आमदनी होने लगेगी,ऐसी साईट वाले लोग व्यक्ति की न्यूनतम योग्यता भी कोई निर्धारित नहीं करते. क्योंकि उन्हें योग्य व्यक्ति नहीं बल्कि उनकी किट खरीदने वाले की जरूरत होती है.क्या यह संभव है की सिर्फ इंटरनेट खोलने की जानकारी वाला तीन से पांच हजार रूपए कमाने लगे वह भी घर बैठे मात्र दो या तीन घंटे खर्च करके.परन्तु किट बेचने वालों के लिए यह संभव है.जबकि हकीकत यह है सिर्फ साधारण कम्प्यूटर की जानकारी रखने वाले युवा दस से बारह हजार रुपया माह में काम करने  के लिए लाखों युवा पंक्ति लगाये खड़े मिल जायेंगे,फिर कम्पनी को तीन से पांच हजार मात्र दो या तीन घंटे के देने की क्या आवश्यकता हो सकती है.कभी कभी तो विज्ञापन के माध्यम से इतनी धोखाधड़ी भी देखी जा सकती है, विज्ञापन में सिर्फ कमाई का जिक्र करते है कोई ट्रेनिंग किट की कीमत का जिक्र  नहीं होता, सीधे सीधे साक्षात्कार के लिए आमंत्रित किया जाता है.इस प्रकार से पब्लिक को झांसा देकर साक्षात्कार के माध्यम से कमाई का लालच दिया जाता है और साक्षात्कार के बहाने उसकी आर्थिक स्थिति की जानकारी लेकर उसे चयनित कर लेने के लिए बधाई दी जाती है और उसकी आर्थिक स्थिति के अनुसार उससे ट्रेनिंग किट की कीमत वसूल की जाती है.इतनी लम्बी प्रक्रिया से गुजरने के पश्चात् जब उसे ट्रेनिंग किट के लिए धन खर्च करने के लिए आग्रह किया जाता है, तो वह ठगा सा अनुभव करता है और उसे हकीकत का पता चलता की उसको कैसे धोखे में रखा गया और उसका बहुमूल्य समय नष्ट किया गया कम्पनी हमारी कमाई नहीं बल्कि अपनी कमाई के साधन जुटा रही है और हमें धोखा देकर अपनी आय बढ़ा रही है.
    अतः विज्ञापन के झांसे में आने से पहले हमें ठन्डे दिमाग से सोचना होगा आखिर कोई भी कम्पनी उसे इतनी बड़ी आमदनी क्यों कराएगी जबकि मार्किट में बेरोजगारी भरी पड़ी है और कहीं कम पगार लेकर काम करने  तो तैयार बैठे हैं.

4.    अनेक ब्लॉग साईट भी दावा करती हैं की वे अच्छे और लोकप्रिय  ब्लॉग लेखक को कमाई करा सकती है सिर्फ जरूरत है, उस ब्लॉग साईट से जुड़ कर जनता तो सार्थक और लोकप्रिय विषयों पर अपने ब्लॉग बनाने की. ये साईट कितने लोगो को आमदनी कराती हैं यह तो मालूम नहीं,परन्तु अपनी साईट को अवश्य लोकप्रिय बनाकर विज्ञापनों द्वारा अपनी कमाई अवश्य कर लेती हैं.शायद कुछ प्रतिष्ठित कम्पनियां लेखकों को कमाई कराती भी हों.परन्तु अधिकतर कम्पनियां सिर्फ अपनी कमाई करती है विज्ञापन के जरिये.अतः विज्ञापन के झांसे में आने से पहले हमें ठन्डे दिमाग से सोचना होगा आखिर कोई भी कम्पनी उसे इतनी बड़ी आमदनी क्यों कराएगी जबकि मार्किट में बेरोजगारी भरी पड़ी है और कहीं कम पगार लेकर काम करने तो तैयार बैठे हैं.
5.    सहानुभूति अर्जित कर धन पाने की साजिश;अक्सर आपकी मेल में कुछ ऐसी भी मेल आ जाती हैं जिसमें मेल भेजने वाला या वाली अपनी दुःख भरी दास्ताँ बता कर आपको द्रवित कर देंगी और आपसे यथा संभव सहायता की याचना करेंगी/करेंगे. अक्सर कोई भी उनकी दर्द भरी दास्ताँ सुनकर कुछ न कुछ मदद करने को तैयार हो जाता है और अपने इंटरनेट के माध्यम से उसे धन भेज देता है,परन्तु उसे हकीकत का पता नहीं होता.इस प्रकार की मेल पर विश्वास नहीं किया जा सकता.अनेक लोग सिर्फ जनता की उदारता का लाभ उठाते हैं,और अपना धंधा करते हैं.
6.    यह भी संभव है की कोई आतंक वादी अपने कुटिल इरादों को पूर करने के लिए आपका उपयोग करे और जब तक आपको हकीकत पता चले, आप उसके बनाये जाल में फंस चुके होते हैं और देश द्रोही या फिर आतंकवादी घोषित कर दिए जाते हैं. जिस कुचक्र से निकलना आपके  लिए असंभव हो जाता है.अतः अनजान मेल से सावधान रहना आवश्यक है,उसमें उकसाने वाले तथ्यों पर विश्वास करना आत्मघाती हो सकता है.

7.      फर्जी परिचय देकर लुभावने वादे कर विवाह कर लेना;-अक्सर अखबारों में पढने को मिल जाता है की युवक युवती ने इंटरनेट के माध्यम से प्यार हुआ और फिर शादी हो गयी परन्तु शीघ्र ही पता चलता है की दूसरे पक्ष ने अनेक तथ्य छिपाए या झूठ बोले और झांसे  में लेकर शादी कर ली या शादी का झांसा देकर साथ रखा और फिर मझधार में छोड़ दिया.कभी कभी ऐसा भी देखने को मिलता है प्रेमी प्रेमिका के वैध रूप से अपिरिचित होने के कारण एक व्यक्ति युवक या युवती धोखा देकर अपने  साथी का सब सामान समेट कर ले गया या गयी.अज्ञात व्यक्ति को ढूंढ पाना भी असंभव हो जाता है.

8.      अफवाहों के जरिये;अनेक बार देखने सुनने में आया है की सोशल साइट्स पर भडकाने वाली जानकारी डाली गयी,जैसे किसी धर्म विशेष या क्षेत्र विशेष का विरुद्ध,किसी प्राकृतिक आपदा की गलत सूचना इत्यादि  जिसे अग्रसारित कर समाज में भय फैलाया गया. जिसने धार्मिक दंगों का रूप ले लिया,या आम जनता को बेचैन कर दिया उसे भय भीत कर दिया, और अपने कुटिल इरादों को अंजाम दिया.
  उपरोक्त उदहारण तो एक झलक मात्र है रोज नए नए प्रकार से ढोंग अपना कर मेल या सोशल साईट पर आपको धोखा देने की साजिश रची जाती रहती है.अतः हम सभी को इस प्रकार की धोखा देने वाली और अनजान मेल से सावधान रहना अत्यंत आवश्यक है.  


रविवार, 3 मई 2015

क्या वर्तमान दौर में भी तनाव मुक्त जीवन जी पाना संभव है?


        
<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>
<!-- s.s.agrawal -->
<ins class="adsbygoogle"
     style="display:block"
     data-ad-client="ca-pub-1156871373620726"
     data-ad-slot="2252193298"
     data-ad-format="auto"></ins>
<script>
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
</script>
वर्तमान भौतिकवादी युग में जहाँ हर स्तर पर गला काट प्रतिस्पर्द्धा हो रही 
है.प्रत्येक व्यक्ति कम से कम समय में अधिक से अधिक सुख सुविधाएँ जुटा  लेना चाहता है,समाज में अपने स्तर को निरंतर ऊंचाइयों पर देखना चाहता है,जो उसे दुनिया की चूहा दौड़ में शामिल होने को मजबूर करता है और इन्सान निरंतर तनाव का शिकार हो रहा है. स्वस्थ्य और सकारात्मक विचारों का स्थान ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, लालच, धोकाधडी, हिंसा जैसी दुर्भावनाओं ने ले लिया है जो स्वयं हमें सर्वाधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं,और समाज को छिन्न भिन्न करके रख दिया है. तनाव के कारण अनेक मानसिक रोगों के साथ साथ शरीरिक रोग भी अपना बसेरा डालते जा रहे हैं,जिनमे मुख्य तौर पर मधुमेह, केंसर, उच्च रक्तचाप, थाइरोइड जैसे गंभीर रोग  भी  शामिल हैं.  खान पान, जल वायु सभी कुछ प्रदूषित हो चुका है, रहन सहन में कृत्रिमता आ गयी है,जिसने अनेक प्रकार की शारीरिक व्याधियों को जन्म दिया है.हर समय तनाव में रहने के कारण मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा है.आज दुनिया में हर तीसरा व्यक्ति डिप्रेशन अर्थात अवसाद का शिकार हो चुका है.इसके अतिरिक्त भी शरीर में अनेक प्रकार की मानसिक बीमारियाँ बढती जा रही है.बढ़ते भौतिक वाद ने आम व्यक्ति को असुरक्षित कर दिया है उसे हर वक्त चिंता रहती है की आज जो काम वह कर रहा है उसका भविष्य क्या होगा?क्या यह कार्य उसे भविष्य में भी इतने ही साधन प्रदान करता रहेगा जो आज दे रहा है? कब उसका जीवन स्तर वर्तमान जीवन स्तर से नीचे आ जायेगा? यह प्रश्न भी तीन चौथाई लोगों के असंतोष का कारण बनता जा रहा है.नित्य समाज में अनेक प्रकार के संघर्ष को देखना पड़ता है.रिश्ते नातेदार भी एक दूसरे के लिए संवेदनहीन होते जा रहे हैं, हर तरफ षड्यंत्र की बू आने लगी है.सब एक दूसरे को नीचा दिखने तो तत्पर हो रहे हैं.अपनी उन्नति के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं.ऐसे वातावरण में कोई भी अपने मन को शांत कैसे रख सकता है.
     आज हम भौतिक सुख सुविधाएँ जुटा कर ख़ुशी ढूँढने का प्रयास करते हैं.क्या भौतिक वस्तुओं से प्राप्त ख़ुशी स्थायी होती है.सभी भौतिक वस्तुओं से हमें जो ख़ुशी प्राप्त होती है वह क्षणिक होती है.मेरा कहने का तात्पर्य है मान लीजिये आपने घर में नया टी वी लिया है जो बिलकुल नयी तकनिकी के अनुसार तैयार किया हुआ है निश्चित ही घर में ख़ुशी का माहौल बनेगा, या नयी कार खरीद लेते हैं तो अवश्य ही कुछ दिनों तक हमें अत्यंत ख़ुशी का अहसास होगा, तत्पश्चात यह ख़ुशी सामान्य व्यव्हार में आ जाएगी और हमारा उत्साह भी समाप्त हो जायेगा. इसी प्रकार से अन्य खुशियाँ भी समय के साथ विलुप्त हो जाती हैं.कभी कभी तो सारी खुशिया प्राप्त करके भी हमें बोरियत होने लगती है.यही वजह है सर्व साधन संपन्न व्यक्ति भी अवसाद का शिकार होते रहते हैं यदि भौतिक सुखो से ख़ुशी प्राप्त होती तो धनाड्य व्यक्ति कभी आत्महत्या नहीं करते और गरीब लोग कभी खुश नहीं रह पाते.गरीब लोग भी समय समय पर प्रसन्नता परिलक्षित करते हैं कुछ गरीब तो अपनी स्थिति से पूर्णतयः संतुष्ट देखे जा सकते हैं.इससे सिद्ध होता है विलासिता पूर्ण जीवन या भौतिक वस्तुएं ख़ुशी का स्थायी माध्यम नहीं हैं.असली ख़ुशी हमारे अंतर्मन में होती है, यदि हम अपने मन में सकारात्मक विचारों को पनपने का अवसर दे और निगेटिव विचारों को मन में न आने दें या मन में बैठे निगेटिव विचारों को निकल पायें, तो हम हर हाल में खुश रह सकते हैं और अपने सभी कार्य पूरी शक्ति से अधिक सक्षमता के साथ कर सकते हैं.
1,पराधीन ख़ुशी;-
             हमें लगता है जब हमारे परिजन अर्थात बेटा बेटी, माता पिता या भाई बहन खुश होंगे तो हम भी खुश हो जायेंगे.यानि की हमारी ख़ुशी परिवार के अन्य सदस्यों पर निर्भर हो जाती है. हम वही कार्य करने का प्रयास करते हैं जिससे हमारे प्रियजन खुश हो जाएँ,महिला बढ़िया भोजन इसलिए बनती है ताकि सब खुश होकर उसकी तारीफ करेंगे और वह खुश हो जाएगी,बच्चे इसलिए पढाई करते हैं जिससे उसके बड़े उनसे खुश रहे वे उन्हें डाटें नहीं. परिवार का मुखिया अधिक से अधिक धन एकत्र कर परिवार के लिए सुविधाएँ जुटाने का प्रयास करता ताकि परिवार के सभी सदस्य खुश रहें, तो वह भी खुश होगा.अर्थात हम जो कार्य करते हैं वह परिवार के सदस्यों को खुश देखने के लिए,कोई भी कार्य अपनी ख़ुशी के लिए नहीं करते यदि आपके कार्य से परिवार के लोग संतुष्ट नहीं होते तो आप भी दुखी हो जाते हैं और आपकी कार्य क्षमता घट जाती है,आपका उत्साह ठंडा हो जाता है
2, सुख और दुःख में तटस्थ जीवन,
                             अक्सर हम भौतिक सुख और दुखों से सुख और दुःख का अनुभव करते हैं.यदि कोई अपना परिजन या मित्र विपदा में होता है बीमार होता है तो हम अपना मानसिक संतुलन iखो बैठते हैं.अर्थात अत्यंत दुखी हो जाते हैं जो हमारे शरीर की ऊर्जा को नष्ट कर देता है हम कमजोर पड़ जाते हैं. कभीi कभी तो  इतनी हिम्मत भी नहीं रहती की उस बीमार या आपदा ग्रस्त व्यक्ति की आवश्यकता के अनुसार उसकी सहायता कर सकें, उसे उचित चिकित्सा दिला सकें.हमारा उसके प्रति लगाव तो उचित है परन्तु यदि हम स्वयं भी उसकी स्थिति तो देख कर विचलित हो जाते हैं, आत्म नियंत्रण खो बैठते हैं, तो हमारी मनः स्थिति उसके लिए हानिकारक हो सकती है. अतः दुखी होना स्वाभाविक है परन्तु अपने मन को विचलित कर देना हानिकारक हो सकता है.हमारे अन्दर ऊर्जा बनी रहेगी तो हम विपदा ग्रस्त मित्र या परिजन की सहायता कर पाएंगे और उसे स्वास्थ्य लाभ के अवसर आसानी से दे सकेंगे. अतः सुख और दुःख को अस्थायी मान कर मन को स्थिर रखने का प्रयास करना चाहिए, सुख में अत्यधिक खुश होना और दुःख में अपना मानसिक संतुलन खो देना या विचलित हो जाना स्वयं के लिए,परिवार के लिए और समाज के लिए भी हानिकारक है.किसी भी विपदा का सामना धैर्यता और साहस से ही किया जा सकता है और विपदा के समय साहस और धैर्यता जुटाने  लिए शरीर को शक्ति की आवश्यकता होती है.यह भी समझना आवश्यक  है की किसी भी विपदा से निकलने के लिए हम अपनी शक्ति से ही यथा संभव निकलने की चेष्टा कर सकते है.यदि परिस्थितियों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है तो उसके लिए परेशान  होने से कोई हित होने वाला नहीं है.शांत मन से ही समस्या का समाधान खोजा जा सकता है,मन को स्थिर रख कर ही हम परिस्थितियों पर नियंत्रण रखने का प्रयास कर सकते हैं, जिसके लिए शारीरिक और मानसिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है.
     उपरोक्त कथन का यही तात्पर्य है की हमें स्वास्थ्य एवं सुखी जीवन जीने के लिए आत्म नियंत्रण करना अत्यंत आवश्यक है.अपनी भावनाओं और आवेगों अर्थात क्रोध, इर्ष्या, द्वेष, साजिश, प्रतिद्वाद्विता इत्यादि पर विजय पानी होगी,ताकि हमारी कार्यक्षमता बनी रहे ,और तनाव ग्रस्त जीवन से मुक्ति मिल सके.


शनिवार, 25 अप्रैल 2015

क्यों न कृषि उत्पादन भी कॉर्पोरेट क्षेत्र के अंतर्गत किया जाय?

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>
<!-- s.s.agrawal -->
<ins class="adsbygoogle"
     style="display:block"
     data-ad-client="ca-pub-1156871373620726"
     data-ad-slot="2252193298"
     data-ad-format="auto"></ins>
<script>
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
</script>
     कृषि पेशा हमेशा से ही अनिश्चितता के वातावरण के साथ चलता रहा है समय समय पर अतिवृष्टि,अल्पवृष्टि आंधी तूफ़ान खेती के लिए चुनौती प्रस्तुत करते रहे हैं.जो किसान को भयानक अकाल का सामना करने को मजबूर करते रहे हैं.परन्तु वर्तमान समय में आधुनिक तकनिकी के होते हुए,आजादी के इतने लम्बे अरसे के बाद भी हमारे देश का किसान आत्महत्या करने को मजबूर होता है तो यह देश के लिए शर्म की बात है.यह संकेत है कि कही न कहीं हमारे देश के प्रबंधन, और नीतियों में दोष विद्यमान है.
      हमारा  देश एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ पर आज भी 65% लोगो की जीविका कृषि पर ही आधारित है,अतः देश की कृषि पर आयी आपत्ति देश की जनता के लिए विनाशकारक सिद्ध होती है. अधिकतर किसानो के पास छोटे छोटे खेत होने के कारण वे पर्याप्त आधुनिक कृषि उपकरण नहीं जुटा पाते और आवश्यकतानुसार मौसम की मार से बचाव के उपाय नहीं कर पाते हैं. इसी कारण आज भी हमारे देश में कृषि क्षेत्र मौसम की मेंहरबानी पर निर्भर है.मौसम में होने वाली थोड़ी सी भी अनियिमतता कृषि वयवस्था को पंगु बना देती है. इस वर्ष देश के उत्तरी क्षेत्रों में गत महीनों से हो रही  लगातार बरसात ने रबी की फसलों को बहुत बड़े पैमाने पर नुकसान पहुँचाया है. जिसके परिणाम स्वरूप देश के अनेक किसान आत्म हत्या करने को मजबूर हो रहे हैं,जबकि कुछ किसान अपने खेत की बर्बादी को देख कर होने वाली निराशा और हताशा के कारण दम तोड़ रहे हैं.जब एक छोटा किसान अपनी कमाई के एक मात्र सहारे को नष्ट होते हुए देखता है, वह उसके जीवन का सर्वाधिक ह्रदय विदारक समय होता है, यदि उस पर पहले ही कर्ज का बोझ है, तो आत्महत्या ही उसे एक मात्र रास्ता नजर आने लगता है.यद्यपि सरकारी स्तर पर किसानो के कष्टों को कम करने के प्रयास किये जाते हैंi,अब भी मुआवजा दिया जा रहा है और अब परन्तु सरकारी उपाय किसानों के कष्ट को मात्र मरहम ही साबित होते हैं,उसके नुकसान की भरपाई में सक्षम नहीं होते.परन्तु इस प्रकार से सरकार द्वारा की गयी भरपाई इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं है. समय समय पर होने वाले किसानों के आन्दोलन उनकी हताशा का प्रदर्शन है.क्या हमारा देश कभी किसान की इन समस्याओं से उभर पायेगा? क्या पर्यावरण में निरंतर आ रहे बदलावों के कारण होने वाले उपद्रवो का कोई सटीक उपाय निकाला जा सकता है? या फिर हमारे देश का किसान यूं ही लुटता पिटता और मरता रहेगा? हमारे देश में कृषि उद्योग को हर स्तर पर वरीयता दी गयी है.किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए बहुत सारे  उपाय भी किये जाते रहे हैं,जैसे कृषि से होने वाली आय को आय कर रहित किया गया है, उसे मुफ्त या रियायती दरों पर पानी बिजली उपलब्ध करायी जाती है,कृषि के लिए आवशयक खाद,और कीटनाशक रसायनों को सब्सिडी के साथ उपलब्ध कराया जाता है, उन्हें कृषि उपकरण खरीदने के लिए रियायती दरों पर कर्ज उपलब्ध कराये जाते हैं इत्यादि. फिर भी किसान अनिश्चित्तता की स्थिति से निकल पाने में अक्षम है.जिसका मुख्य कारण जो स्पष्ट तौर पर नजर आता है, वह है हमारे देश में किसान आज भी अशिक्षित है, उसे कृषि में हो रहे नए नए अनुसन्धान और आधुनिक कृषि उपकरण की जानकारी नहीं है,उसके पास खेती का रकबा बहुत छोटा है और निरंतर बटवारे के कारण उसका  क्षेत्रफल घटता जा रहा है,जिसके कारण वह आधुनिक कृषि उपकरणों को खरीदने में समर्थ नहीं हो पाता. आधुनिक शैली में खेती करने के लिए किसान के पास बड़े बड़े खेत होना आवश्यक है.(आज के दौर में अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए आधुनिक शैली अपनाना आवश्यक है) जो छोटे किसान के लिए संभव नहीं हो पाता. अतः वह मौसम के उतार चढाव का सामना नहीं कर पाता,जब कोई गंभीर अनियमितता मौसम में आती है, तो हमारे देश की कृषि व्यवस्था चरमरा जाती है.
       उपरोक्त सभी समस्याओं का एक निदान किया जा सकता है. यदि देश की जनता और सरकार एक क्रांतिकारी बदलाव लाने को सहमत हो सकें, तो शायद यह उपाय(निम्न लिखित) देश के कृषि उद्योग के लिए लाभकारी हो सकता है,और किसानों की दुर्दशा को रोका जा सकता है.

      कृषि उत्पादन को कॉर्पोरेट सेक्टर के अंतर्गत लाकर संगठित कर दिया जाय ताकि एक बड़े पैमाने पर सभी आवश्यक उपकरणों और तकनीकी ज्ञान के साथ कृषि पैदावार की जा सके. सभी स्थानीय किसानों की जमीनों को संगठित कर एक सिंडिकेट बनाया जाय, जो सरकार के नियंत्रण में कॉर्पोरेट सेक्टर द्वारा संचालित हो. जिसमें सभी किसानों की (जिनकी जमीने शामिल की गयी हैं) भागीदारी उनके जमीन के क्षेत्रफल के अनुरूप नियत की जाय, ताकि उसी अनुपात में उन्हें  कृषि से प्राप्त आय वितरित की जा सके.संस्थान में कार्यकर्ताओं की नियुक्ति  भागीदार किसानो में से ही प्राथमिकता और योग्यता के अनुसार सुनिश्चित हो.संस्थान को चलाने के लिए आवश्यक धन सरकार स्वयं उपलब्ध कराये और आवश्यकतानुसार कृषि विशेषज्ञों और प्रबंधकों की नियुक्ति करे. इस प्रकार से कृषि के लिए बहुत बड़ा रकबा एक जगह उपलब्ध हो सकेगा और मौसम की अनियमितताओं से जूझने में सुविधा होगी,उच्च तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकेगा,आधुनिकतम उपकरणों का उपयोग संभव हो सकेगा,नए नए अनुसन्धान भी किये जा सकेंगे, जिससे पैदावार की गुणवत्ता और मात्रा में iवृद्धि हो सकेगी.इस कदम से होने वाले अतिरिक्त लाभ निम्न हैं;
Ø  भागीदार किसानों को उनकी योग्यता अनुसार रोजगार भी मिल सकेगा, साथ ही पैदावार में हिस्सा नियमित रूप से मिलता रहेगा.
Ø  संस्थान को बड़े पैमाने पर खाद, बीज, कीटनाशक,कृषि उपकरण की खरीदारी होने के कारण सस्ते में उपलब्ध हो सकेगे.
Ø  बिजली पानी की व्यवस्था भी स्वतः के बलबूते पर नियमित रूप से उपलब्ध की जा सकेगी.
Ø  संस्थान द्वारा उत्पादित कृषि उत्पाद को पब्लिक ट्रांसपोर्ट या स्वयं के ट्रकों द्वारा पास और दूर दराज के इलाकों में जाकर उचित मूल्यों पर बेचा जा सकेगा.और यदि संभव हो और आवश्यक हो तो विदेशों को भी मॉल भेजा जा सकता है.
Ø  संस्थान द्वारा उत्पादित कृषि उत्पादों को करीब में इंडस्ट्री लगाकर और प्रसंस्करण कर मूल्यवान खाद्य पदार्थों में परिवर्तित किया जा सकता है,जिससे संस्थान को अतिरिक्त लाभ हो सकता है.
Ø  संस्थान द्वारा अन्य कृषि उत्पाद,या कृषि कार्य सम्बंधित उद्योग लगाया जा सकता है.
Ø  कृषि उत्पादों को संग्रह करने के लिए गोदाम या कोल्ड स्टोर की व्यवस्था के जा सकती है,और मार्किट में कीमत बढ़ने पर उन्हें बेचकर अतिरिक्त लाभ कमाया जा सकता है.
  इस प्रकार किसान की समस्याओं का निदान हमेशा के लिए हो सकेगा.किसान सुविधा संपन्न होगा देश को अधिक और गुणवत्ता सहित कृषि उत्पादन मिल सकेंगे.अधिक पैदावार होने पर iविदेशों को भी निर्यात किया जा सकेगा.देश समृद्धि की ओर बढ़ सकेगा.(SA-164C)   

                 

रविवार, 16 नवंबर 2014

देश के वरिष्ठ नागरिकों के लिए भी सोचें मोदी जी

       
अपने देश में करीब दस करोड़ ऐसे नागरिक हैं जो वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में आते हैं.   यह संख्या तेजी से बढ़ रही है. इस वर्ग के नागरिकों को अनुत्पादक नागरिक माना जाता है क्योंकि अधिकतर वरिष्ठ नागरिकों के स्वयं के आय स्रोत नहीं होते,इसलिए उनकी जिम्मेदारी परिवार या समाज उठाता है.आज सरकारी सेवाओं से निवृत सरकारी कर्मियों को सरकार पेंशन उपलब्ध कराकर उनके भविष्य को सुरक्षित कर चुकी है.परन्तु शेष वरिष्ठ नागरिकों के लिए सरकार की ओर से कोई आर्थिक सुरक्षा का प्रावधान नहीं है. 2010 में प्राप्त आंकड़ों के अनुसार लगभग 55%बुजुर्ग अपनी आर्थिक आवश्यकताओं के लिए अपनी संतान पर निर्भर हैं.जो उन्हें संतान पर बोझ बने रहने का अहसास कराता है. परन्तु यदि संतान लापरवाह और संवेदनहीन है तो स्थिति और भी भयावह हो जाती है.आज के बढ़ते भौतिक वाद के कारण भी बुढ़ापा एक समस्या बनता जा रहा है.यद्यपि हमारे देश की सरकार के लिए विकसित देशों की भांति सभी बुजुर्गो (विशाल संख्या)के भरण पोषण के लिए राजकोष से व्यवस्था कर पाना संभव नहीं है.परन्तु यदि हमारी सरकार कुछ छोटे कदम उठाकर बुजुर्गों को निम्न रूपों में सहायता दे सके तो शायद हमारे देश का बुढ़ापा, आर्थिक रूप से अधिक सुरक्षित हो सकेगा.
        अनेक  बुजुर्ग  ऐसे  भी  हैं  जिनकी  संतान  महत्वपूर्ण  पदों  पर  आसीन  है ,उद्योगपति  हैं ,व्यापारी  हैं और  आयकर  विभाग  को  टैक्स  के  रूप  में  भारी  भरकम  रकम  भी  चुकाते  हैं ,तथा  अपने  बुजुर्गों  को  जीवन  यापन  के  लिए अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए, अपने  आए  के  स्रोतों  से धन उपलब्ध  कराते  हैं,उनकी सभी आवश्यकताओं को पूर्ण करते हैं, या  उनके  बुजुर्ग  उन  पर  निर्भर  रहते  हुए  उनके  साथ  रहते  हैं . यदि उन्हें उनके द्वारा अदा किये जा रहे आयकर  में  इतनी  छूट  दी  जाये  जो  बुजुर्ग  के  भरण  पोषण  के  लिए  उसके  जीवन  स्तर  के  अनुसार  आवश्यक  हो ,.यह छूट उसके दवारा बुजुर्ग के खाते में स्थानांतरित रकम के अनुरूप प्रदान करने की व्यवस्था हो तो अवश्य ही हमारे देश के बुजुर्ग सम्माननीय जीवन जी सकेंगे और उन्हें संतान पर बोझ बन कर जीने का अहसास भी नहीं रहेगा.संतान के लिए भी उनका जीवन बोझ नहीं लगेगा क्योंकि उनके जीवन के कारण ही उन्हें उनके भरण पोषण के लिए आवश्यक राशि की आय कर में छूट मिल रही है.
     जैसा की हमारे देश में सभी वरिष्ठ नागरिकों को बेंकों में फिक्स डिपाजिट पर आधा प्रतिशत ब्याज अधिक दिया जाता है, जो बुजुर्गों के लिए विशेष लाभकारी सिद्ध नहीं होता.यदि यह अंतर दो प्रतिशत का दिया जाय तो अनेक बुजुर्गों का भरण पोषण अपेक्षाकृत आसान हो जाएगा.
     अनेक व्यापारी,या निजी कारोबारी भाई जो अपने अक्षम शरीर के कारण  व्यापार/कारोबार  चला पाने में अक्षम हैं,या वे अपने व्यापार/कारोबार  को अपनी संतान को स्थानातरित कर चुके हैं,अथवा किसी मजबूरी के कारण अपने व्यापार/कारोबार  को बंद कर चुके हैं.उन्हें भी सरकार भरण पोषण के लिए कोई योजना बनाये. जो उनके द्वारा अपने कार्यकाल में कुल जमा कराये सरकारी राजस्व के अनुपात में निश्चित की जाय तो इससे दो लाभ होंगे एक तो सरकार की बुजुर्गों के प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी हो सकेगी, दूसरी ओर एक आम व्यापारी या निजी कारोबारी सरकार द्वारा निर्धारित टेक्स को ईमानदारी से  अधिक से अधिक चुकाने में दिलचस्पी ले सकेगा जिसका लाभ सीधे तौर पर राजकोष पर पड़ेगा.
       प्रत्येक शहर में कम से कम एक वृद्ध आश्रम का सञ्चालन सुनिश्चित किया जाय,जो उक्त शहर के सभी इच्छुक वरिष्ठ नागरिकों को प्रवेश दे सके उनकी मूल आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके ताकि अकेले रहने को मजबूर या आर्थिक रूप से अक्षम वरिष्ठ नागरिक आश्रय प्राप्त कर सकें.प्रत्येक आश्रम का आर्थिक भार प्रदेश और केंद्र सरकार मिल कर वहन करें,परन्तु आश्रम का प्रबंधन निजी हाथों को सौंपा जाय.
      उपरोक्त कदम उठा कर सरकारी राजकोष पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा और कुछ वरिष्ठ नागरिकों का जीवन आसान हो जायेगा

     वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं पर आधारित पुस्तक “जीवन संध्या”  अब ऑनलाइन फ्री में उपलब्ध है.अतः सभी पाठकों से अनुरोध है www.jeevansandhya.wordpress.com पर विजिट करें और अपने मित्रों सम्बन्धियों बुजुर्गों को पढने के लिए प्रेरित करें और इस विषय पर अपने विचार एवं सुझाव भी भेजें.   


मेरा   इमेल पता है ----satyasheel129@gmail.com






<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>
<!-- s.s.agrawal -->
<ins class="adsbygoogle"
     style="display:block"
     data-ad-client="ca-pub-1156871373620726"
     data-ad-slot="2252193298"
     data-ad-format="auto"></ins>
<script>
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

</script>


मंगलवार, 12 अगस्त 2014

व्यापारियों को अपने अधिकारों के लिए जागरूक होना होगा


      
आज के समय में एक व्यापारी आम तौर पर सर्वाधिक असुरक्षित एवं दयनीय जीवन जीता है. कुछ उच्च स्तरीय व्यापरियों को छोड़ कर सभी व्यापारी अनेक प्रकार के तनाव झेलते हुए अपनी जीविका चलाते हैं, अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. व्यापरी छोटा हो,व्यापारी बड़ा हो या व्यापारी थोक बिक्रेता हो अथवा उद्योग पति हो उसका व्यापारिक कार्य स्थल हमेशा खतरे में रहता है. उसे अपने दुकान या गोदाम में आगजनी, लूटमार,चोरी, या बलवा का खतरा हमेशा मंडराता रहता है, जिसके कारण उसका वर्षों की मेहनत से जमाया कारोबार कभी भी हाशिये पर आ सकता है,और उसकी जीवनभर कमाई  पूँजी नष्ट हो जाती है, जिसकी भरपाई उसके लिए असंभव ही हो जाती है, यदि किसी प्रकार से वह दोबारा अपने व्यापर को जमा भी लेता है तो इस अन्तराल(दोबारा व्यापार को पटरी पर लाने में) में हुए उसके व्यापार के घाटे की भरपाई नहीं कर सकता. और तो और अपहरण कर्ताओं के निशाने पर व्यापारी या उद्योगपति स्वयं या उसका परिवार ही होता है,जब वह अपने परिजन की जान बचाने के लिए जीवन भर की कमाई गुंडों की भेंट चढाने को मजबूर होता है.
   किसी भी देश की सरकार के खजाने की आमदनी  का मुख्य स्रोत, विशेषकर व्यापारी वर्ग ही होता है अर्थात देश या प्रदेश की सरकारें व्यापारी द्वारा दिए गए टेक्स के धन से चलती हैं.जब देश में सरकार विदेशी शासकों से चलती थी तो देश की जनता पर थोपा जाने वाला टेक्स उस देश की गुलामी का प्रतीक था और जनता की मजबूरी थी की वह शोषण का शिकार होती रहे और उसकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं था.परन्तु आजाद देश में अब सरकार जनता की है जनता द्वारा  चुनी गयी है,और सरकार का कर्तव्य है कि वह जनता के हित में ,जनता के कल्याण के लिए कार्य करे और अपने कार्यों को अंजाम देने के लिए जनता से आर्थिक सहयोग के तौर पर टेक्स के रूप में धन प्राप्त करे और देश का विकास करे,जनता की समस्याओं का समाधान करे उसके सुखद वर्तमान और सुखद भविष्य के लिए योजनायें बनाये और उनका कार्यान्वयन करे.
     परन्तु के व्यापारी  से वसूले जाने वाला टेक्स का छोटा सा हिस्सा भी  व्यापारी के हित में प्रयोग नहीं होता.व्यापारी यदि टेक्स bबचाता है तो वह कर अपवंचक या टेक्स चोर कह कर अपमानित किया जाता है, यदि व्यापारी इमानदारी से टेक्स भरता है तो उसे भ्रष्ट नौकरशाही जीने नहीं देती उसके कार्यों में अडचने पैदा करती है.एक महत्त्व पूर्ण पहलू यह भी यह आज व्यापारी की मानसिकता बनती जा रही है, की उसके द्वारा सरकार को टेक्स दिए जाने का अर्थ है,अपनी गाढ़ी कमाई से भ्रष्ट नेताओं की तिजोरियां भरना, न की देश के विकास में योगदान देना और अपना भविष्य सुरक्षित करना. यही अनेक ऐसे कारण व्यापारी को टेक्स भरने की इच्छा से विमुख करते हैं,क्योंकि इमानदारी से टेक्स भरने के बाद उसके बदले में उसे कोई लाभ प्राप्त होने की उम्मीद नहीं होती,बल्कि सरकारी स्टाफ द्वारा शोषण किये जाने की सम्भावना बढ़ जाती है.इस प्रकार उसे हर स्तर पर टेक्स भुगतान करने के लिए हतोत्साहित किया जाता है.यदि सरकार द्वारा कर दाता को सम्मान और सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाएँ तो सरकार के पास राजस्व अधिक पहुँचने की सम्भावना बढ़ जाएगीi .
   काफी लम्बे समय की आजादी के पश्चात् भी आज बहुत सारे कानून ब्रिटिश शासको द्वारा बनाये गए कानून के अनुसार ही क्रियान्वित हो रहे हैं,जिनमे गुलामी की भावना निहित है.देश की नौकरशाही आज भी स्वयं को शासक और जनता को शासित मानती है,जो उसकी कार्य प्रणाली से स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है. वे आज भी सामंतवादी युग से बाहर नहीं आ पा रहे हैं.यहाँ तक की नए कानूनों का फोर्मेट भी पुरानी शैली(ब्रिटिश शासन के समय की) पर आधारित होता है.सरकार की इस कार्य शैली का सबसे अधिक कुप्रभाव व्यापारी को झेलना पड़ रहा है.मजेदार बात तो यह है की व्यापारी भी अपने अधिकारों के लिए जागरूक नहीं है,वह इसे अपने जीवन की नियति मान कर संतुष्ट रहता है.उपरोक्त व्यापारिक खतरों की चपेट में आने के बाद बदतर स्थिति में जीने को मजबूर होता है.कोई उसके आंसू पोंछने वाला नसीब नहीं होता.और उसके कार्यक्षमता ख़त्म होने के पश्चात् भी परनिर्भरता उसकी मजबूरी बन जाती है.(यदि संतान संवेदन शील है तो अन्यथा.....).व्यापारियों की उदासीनता के कारण ही आज अनेक मजबूत व्यापरिक संगठन होते हुए भी व्यापारियों के मूल अधिकारों के लिए आवाज नहीं उठाते. कारण भी स्पष्ट है व्यापारी नेता अपनी नेता गिरी से अपना भविष्य सुरक्षित मानते हैं,वे स्वयं सभी स्वयं को सभी व्यापारिक खतरों से परे मानते हैं. अतः उन्हें आम व्यापारी की समस्याओं की चिंता करने से क्या फायदा. अतः अब प्रत्येक आम और खास व्यापरी को अपने अधिकारों के लिए जागरूक होना होगा और अपने संगठनों के नेताओं पर दबाब बनाना होगा, ताकि वे व्यापारी के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए आवाज बुलंद करें.और सरकार को व्यापारियों के कल्याण के लिए आवश्यक कानून बनाने को मजबूर कर सकें.

(लेखन के माध्यम से व्यापारी भाइयों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने का मेरा  प्रयास
 जारी रहेगा,सभी पाठको से अनुरोध है वे इस विषय पर अपने सुझाव ईमेल--satyasheel129@gmail.com द्वारा अवश्य भेजें ताकि मैं इसे एक आन्दोलन का रूप दे सकूँ)           

शुक्रवार, 23 मई 2014

परिपक्व जनादेश-क्षेत्रीय दल पस्त


      २०१४ के लोकसभा के आम चुनावो के परिणाम चौकाने वाले थे. शायद इतने  स्पष्ट जनादेश की कल्पना किसी ने भी नहीं की थी.यह तो सभी जानते, समझते थे की कांग्रेस के विरुद्ध ही जनादेश आयेगा,क्योंकि जिस प्रकार से गत दस वर्षों में कांग्रेस शासन के दौरान भ्रष्टाचार,घोटाले निरंतर खुल कर जनता के समक्ष आ रहे थे और महंगाई ,बेरोजगारी ,अव्यवस्था आतंकवाद जैसी समस्यों से जनता क्षुब्ध हो चुकी थी, और कांग्रेसी नेता घमंड में चूर हो कर जनता की भावनाओं के प्रति  लापरवाह हो गए थे, कांग्रेस की हार तो निश्चित थी.परन्तु प्रत्येक भारतवासी के मन में यही आशंका बनी हुई थी की क्या कांग्रेस का सशक्त विकल्प कोई बन पायेगा,या देश को एक और गठबन्धन सरकार झेलने को मजबूर होना पड़ेगा. आम जनता खंडित जनादेश की आशंका से त्रस्त थी, क्योंकि गठजोड़ से बनी सरकार हमेशा अस्थिर बनी रहती है.उसके घटक दल(क्षेत्रीय दल),अपने या अपने क्षेत्र के हितों को लेकर आये दिन सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी करते रहते हैं,उन्हें देश हित या जनहित की परवाह नहीं होती.अतःसरकार के लिए देश के व्यापक हित में निर्णय लेना मुश्किल हो जाता है और देश का विकास प्रभावित होता है.ऐसी गठबन्धन सरकारें अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए जूझती रहती हैं,जनहित के बारे में  सोचने के लिए इच्छा शक्ति के अभाव से पीड़ित रहती हैं.घटक दल से बने मंत्री अपनी मनमानी करते हैं घोटाले करते हैं.और सत्तारूढ़ दल उनके व्यव्हार पर अंकुश लगा पाने में असमर्थ रहता है.गत तीस वर्षों से देश को गठबन्धन सरकारें नसीब हो रही थीं,(१९८४ के चुनावो में राजीव गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला था) जिन्होंने देश को दिशा हीन और कमजोर नेतृत्व वाला देश बना दिया था,प्रत्येक प्रधान मंत्री आता और किसी प्रकार अपने कार्यकाल पूरा कर चला जाता ,उसकी रूचि  अपनी कुर्सी बनाये रखने में ही होती थी.   
     हमारे देश में राष्ट्रिय स्तर की पार्टियों की कमी रही है जो कांग्रेस को कड़ी टक्कर दे सकें.और सशक्त विकल्प बन सके.जबकि क्षेत्रीय पार्टियों की भरमार है,जो स्थानीय स्तर पर तो सफल हो सकती है परन्तु राष्ट्रिय स्तर पर सरकार बनाने के लिए पर्याप्त समर्थन नहीं जुटा  पाती,और परिणाम स्वरूप गठजोड़ वाली सरकारे बनती रहीं हैं.१०१४ के आम चुनावों में जनता ने अपनी परिपक्वता दिखाते हुए भारतीय जनता पार्टी को एक सशक्त राष्ट्रिय दल के रूप में कांग्रेस का विकल्प प्रस्तुत कर दिया है.अब कम से कम दो राष्ट्रिय दल देश को पूर्ण बहुमत प्राप्त कर अपने बल पर देश को स्थायी सरकार दे पाएंगे    
   आम भारतीय नागरिक के लिए जहाँ वर्तमान चुनाव परिणाम चौकाने वाले है ,वही देश और देश की जनता के भविष्य के लिए सुखद भी है. श्री नरेंद्र मोदी देश की जनता की आकाँक्षाओं को पूर्ण कर पाने में कितने सक्षम होंगे,सफल होंगे यह तो  भविष्य ही बताएगा. सबसे सुखद बात यह है की अब कांग्रेस का एक विकल्प तैयार हो गया है जो अपने दम पर सरकार बनाने की क्षमता रखता है.अब जनता की कोई मजबूरी नहीं होगी की, वह स्थायी सरकार के नाम पर कांग्रेस को ही चुने ,जबकि वह उसके कामकाज से संतुष्ट न हो. अब भविष्य में कभी कांग्रेस सत्ता में आती भी है तो उसके कामकाज में तानाशाही व्यव्हार नहीं पनप पायेगा.वर्तमान चुनावों में जनता द्वारा दिया गया स्पष्ट जनादेश इस बात का संकेत देता है की अब जनता परिपक्व निर्णय लेने की क्षमता विकसित कर चुकी,यदि पार्टी उसके हितों के अनुरूप कार्य नहीं करती है तो वह तुरंत अन्य दल को सत्तारूढ़ कर देगी, जिसके लिए भारत की जनता वह बधाई की पात्र है.शायद अब क्षेत्रीय दलों की प्रासंगिकता भी ख़त्म हो जाएगी.क्षेत्रीय दल अपने क्षेत्र,अपने राज्य  तक ही सीमित रह पाएंगे या फिर वहां भी उनका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है.अब यदि वे अपने प्रतिनिधि संसद में भेजने में सफल भी होते हैं, तो भी केंद्र सरकार  के कामकाज को प्रभावित नहीं कर पाएंगे.अब कोई भी क्षेत्रीय दल या राष्ट्रिय दल जाति आधारित,धर्म आधारित,क्षेत्रवाद या भाषा वाद की राजनीति कर जनता को गुमराह नहीं कर पायेगा.       

    आज देश का प्रत्येक नागरिक गौरव के साथ कह सकता है की, वह दुनिया के सर्वाधिक विशाल और सशक्त लोकतान्त्रिक देश का नागरिक है.और आज देश का भविष्य सुरक्षित और सुखद है.अब हमारे देश को विकसित देशों की श्रेणी में ले जाने से कोई नहीं रोक सकता.और शायद हमारा देश पूरे विश्व को निर्देशित करने की क्षमता विकसित कर लेगा.