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आज देश मे सहिष्णुता और असहिष्णुता के बीच एक जंग छिड़ चुकी है. असहिष्णुता के पक्षधर कलाकार, पत्रकार, वैज्ञानिक, साहित्यकार अपने सम्मान सरकार को लौटा रहे हैं, तो सहिष्णुता के समर्थक,सम्मान लौटने वालों के विरोध में एक आन्दोलन का रूप दे चुके हैं, असहिष्णुता की समस्या जब खड़ी हुई जब देश के प्रतिष्ठित साहित्यकार, पत्रकार, कलाकार, वैज्ञानिक जैसे विद्वान् लोगों द्वारा भारत सरकार से प्राप्त अपने सम्मान वापस करने वालों की झड़ी लगा दी, जैसे देश में कोई तूफ़ान आ गया हो,या कोई ऐसी अप्रत्याशित घटना घट गयी हो अथवा घट रही हो, जो देश के इतिहास में अभूतपूर्व हो. सम्मान लौटने वालों का कहना है,गत दिनों में हुई कुछ घटनाओं जैसे गौ मांस को लेकर हुई एक मुस्लिम मोहम्मद अख़लाक़ की हत्या,शाहजहांपुर में पत्रकार जोगिन्दर सिंह की जीवित जलाकर हत्या,या फिर फरीदाबाद में दो दलित बच्चो को जीवित जलाकर मार डालना और दक्षिण में हुई एक कन्नड़ साहित्यकार डा.एम्.एम्.कलबर्गी की हत्या इत्यादि से वे आहत हैं और इस प्रकार से देश को असहिष्णुता की ओर बढ़ते हुए नहीं देख सकते. जिन घटनाओं का सम्मान आपिस करने वालों द्वारा जिक्र किया जा रहा है, इस प्रकार की घटनाएँ हर काल खंड में होती आयी हैं. हाँ अब इन घटनाओं की बारम्बारता पहले से अधिक अवश्य हो गयी है, उसका कारण है कानून और व्यवस्था की कमी. जिसके कारण अपराधी अधिक निर्भय हो गए हैं. आजादी के पश्चात् सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता ने गत पैंसठ वर्षों में अपराधियों के हौंसले बुलंद कर दिए है, अपराधी प्रकृति के लोग शासन के उच्च पदों तक पहुँच गए है. यह विषय आज अचानक पैदा नहीं हो गया,और जिसका कारण वर्तमान में केंद्र की भा.ज.पा. सरकार को मान लिया जाय, जैसे उसने सत्तारूढ़ होते ही सारी व्यवस्था को अस्त व्यस्त कर दिया हो. आज की भयानक स्थिति के लिए जिम्मेदार गत पैसंठ वर्षों से सत्ता संभाले काग्रेस की नीतियां हैं. वैसे भी न्याय व्यवस्था राज्यों का विषय है और अलग अलग राज्य में अलग अलग दलों की सरकारें मौजूद है, जो वर्त्तमान घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं. केंद्र सरकार को दोषी मानना सिर्फ उसके विरुद्ध किया जा रहा विपक्षी पार्टियों का षड्यंत्र है.
आज देश मे सहिष्णुता और असहिष्णुता के बीच एक जंग छिड़ चुकी है. असहिष्णुता के पक्षधर कलाकार, पत्रकार, वैज्ञानिक, साहित्यकार अपने सम्मान सरकार को लौटा रहे हैं, तो सहिष्णुता के समर्थक,सम्मान लौटने वालों के विरोध में एक आन्दोलन का रूप दे चुके हैं, असहिष्णुता की समस्या जब खड़ी हुई जब देश के प्रतिष्ठित साहित्यकार, पत्रकार, कलाकार, वैज्ञानिक जैसे विद्वान् लोगों द्वारा भारत सरकार से प्राप्त अपने सम्मान वापस करने वालों की झड़ी लगा दी, जैसे देश में कोई तूफ़ान आ गया हो,या कोई ऐसी अप्रत्याशित घटना घट गयी हो अथवा घट रही हो, जो देश के इतिहास में अभूतपूर्व हो. सम्मान लौटने वालों का कहना है,गत दिनों में हुई कुछ घटनाओं जैसे गौ मांस को लेकर हुई एक मुस्लिम मोहम्मद अख़लाक़ की हत्या,शाहजहांपुर में पत्रकार जोगिन्दर सिंह की जीवित जलाकर हत्या,या फिर फरीदाबाद में दो दलित बच्चो को जीवित जलाकर मार डालना और दक्षिण में हुई एक कन्नड़ साहित्यकार डा.एम्.एम्.कलबर्गी की हत्या इत्यादि से वे आहत हैं और इस प्रकार से देश को असहिष्णुता की ओर बढ़ते हुए नहीं देख सकते. जिन घटनाओं का सम्मान आपिस करने वालों द्वारा जिक्र किया जा रहा है, इस प्रकार की घटनाएँ हर काल खंड में होती आयी हैं. हाँ अब इन घटनाओं की बारम्बारता पहले से अधिक अवश्य हो गयी है, उसका कारण है कानून और व्यवस्था की कमी. जिसके कारण अपराधी अधिक निर्भय हो गए हैं. आजादी के पश्चात् सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता ने गत पैंसठ वर्षों में अपराधियों के हौंसले बुलंद कर दिए है, अपराधी प्रकृति के लोग शासन के उच्च पदों तक पहुँच गए है. यह विषय आज अचानक पैदा नहीं हो गया,और जिसका कारण वर्तमान में केंद्र की भा.ज.पा. सरकार को मान लिया जाय, जैसे उसने सत्तारूढ़ होते ही सारी व्यवस्था को अस्त व्यस्त कर दिया हो. आज की भयानक स्थिति के लिए जिम्मेदार गत पैसंठ वर्षों से सत्ता संभाले काग्रेस की नीतियां हैं. वैसे भी न्याय व्यवस्था राज्यों का विषय है और अलग अलग राज्य में अलग अलग दलों की सरकारें मौजूद है, जो वर्त्तमान घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं. केंद्र सरकार को दोषी मानना सिर्फ उसके विरुद्ध किया जा रहा विपक्षी पार्टियों का षड्यंत्र है.
जरा
देश के इतिहास पर नजर डालें,क्या पहले जब सिक्खों का कत्लेआम हो रहा था तब
असहिष्णुता नहीं थी,जब देश में आपातकल घोषित कर दिया गया था जब देश में सहिष्णुता
का वातावरण था ?, कश्मीर में निरंतर
हिन्दुओं का शोषण होता रहा है हजारों
हिन्दू आज भी अपने ही देश में शरणार्थी बने हुए हैं,घर बार से दूर हैं, वह
सहिष्णुता है ? गोधरा कांड जिसमे
तीर्थ यात्रियों को जिन्दा जला दिया गया था, वह असहिष्णुता नहीं थी ? कांग्रेस के शासन
में बार बार धार्मिक दंगे हुए वह क्या था ? 2013 के मुज्जफ्फरनगर के दंगे हुए जब देश के
सम्माननीय(सम्मान प्राप्त) लोग कहाँ थे.क्या एक दादरी कांड से देश में असहिष्णुता
फ़ैल गयी, क्या एक साहित्यकार
डा.कलबर्गी एवं एक पत्रकार की हत्या
होना देश की पहली घटना है, जिसे लेकर देश विदेशों में अपने देश की छवि को बिगाड़ा
जा रहा है,देश को अपमानित किया जा रहा है.क्या इन सभी विद्वानों के समक्ष अपना
विरोध व्यक्त करने का कोई और माध्यम नहीं बचा था.अपनी अभिव्यक्ति का एक ही माध्यम
मिला. सम्मान वापस करना विरोध नहीं है बल्कि देश का अपमान है जिसके द्वारा प्रदत्त
सम्मान अस्वीकार किया जा रहा है.
कांग्रेस समेत सभी दलों में यह चलन रहा है वे
एक मुस्लमान के साथ होने वाले अत्याचार,दुर्व्यवहार को अधिक गंभीरता से लेते हैं
और व्यापक रूप से प्रचार करते हैं, किसी अन्य धर्म या समुदाय के साथ होने वाले
हादसों को नजर अंदाज कर देते हैं.जो मुस्लिमों के विरुद्ध कार्य करता है
साम्प्रदायिक कहलाता है परन्तु अन्य समुदायों के प्रति होने वाले अन्याय उनके लिए
सांप्रदायिक नहीं होते.कांग्रेस का यही धर्मनिरपेक्ष स्वरूप है.इन घटनाओं ने साबित
कर दिया है ये वही सम्मान प्राप्त लोग हैं जो कांग्रेस के समर्थक रहे हैं,उन्होंने
यह सम्मान चापलूसी से या सिफारिश से प्राप्त किया था. अतः अपनी बफादारी दिखाने के लिए
पुरस्कार लौटाने की घोषणाएं कर रहे हैं, जिससे वर्तमान सरकार को आरोपित किया जा
सके उसकी छवि को देश विदेश में ख़राब किया जा सके,और विपक्षी कांग्रेस को लाभ
पहुँचाया जा सके.यदि हम गंभीरता से विश्लेषण करे तो ऐसा लगता है लचर कानून और
न्याय व्यवस्था के कारण आम जनता में आक्रोश का परिणाम भी हो सकता है,जब जब जनता का
कानून और व्यवस्था पर विश्वास उठता है तब तब जनता अन्याय के विरोध में कानून अपने
हाथ में लेने नहीं हिचकती.अतः असहिष्णुता की समस्या जनता को न्याय और चुस्त दुरस्त
कानून व्यवस्था दिला कर ही हल की जा सकती है,सम्मान लौटाकर नहीं.लेखको को न्याय के
विरोध में अपनी लेखनी को धारदार बनाना होगा,कलाकारों को अपने कला के माध्यम से
सरकारों को मजबूर करना होगा ताकि वे जनता को भेद भाव रहित न्याय दिलाने के लिए
उपाय करें.(SA-180B)
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